वर्ष 2021 में एथलेटिक्स : ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतकर महानायक बने नीरज चोपड़ा

By भाषा | Updated: December 25, 2021 13:21 IST2021-12-25T13:21:40+5:302021-12-25T13:21:40+5:30

Athletics in the year 2021: Neeraj Chopra becomes a superhero by winning Olympic gold medal | वर्ष 2021 में एथलेटिक्स : ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतकर महानायक बने नीरज चोपड़ा

वर्ष 2021 में एथलेटिक्स : ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतकर महानायक बने नीरज चोपड़ा

नयी दिल्ली, 25 दिसंबर नीरज चोपड़ा ने वर्ष 2021 में तोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर भारतीय एथलेटिक्स में नये युग की शुरुआत की। उन्होंने ऐसी सफलता हासिल की जिसका देश एक सदी से भी अधिक समय से इंतजार कर रहा था और जिसने उन्हें देश में महानायक का दर्जा दिला दिया।

किसान के बेटे नीरज ने सात अगस्त को 57.58 मीटर भाला फेंककर भारतीय एथलेटिक्स ही नहीं भारतीय खेलों में नया इतिहास रचा जिसकी धमक वर्षों तक सुनायी देगी।

यह उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रयास भी नहीं था, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि चोपड़ा निशानेबाज अभिनव बिंद्रा के बाद ओलंपिक में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले केवल दूसरे भारतीय बन गये थे।

चोपड़ा को शुरू से ही पदक का दावेदार माना जा रहा था लेकिन उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों को पीछे छोड़कर वह कारनामा कर दिखाया जिसके बारे में कभी भारतीय एथलीट सपने में ही सोचा करते थे। भारत का यह एथलेटिक्स में पहला स्वर्ण पदक था।

चोपड़ा ने स्वर्ण पदक जीतने के बाद कहा था, ‘‘यह अविश्वसनीय है। यह मेरे लिये और मेरे देश के लिये गौरवशाली क्षण है। यह क्षण हमेशा मेरे साथ बना रहेगा। ’’

चोपड़ा का स्वर्ण पदक जहां भारतीय एथलेटिक्स में एक नयी शुरुआत है, वहीं देश ने इस वर्ष महान मिल्खा सिंह के निधन के साथ एक युग का अंत भी देखा। स्वतंत्र भारत के सबसे महान खिलाड़ियों में से एक मिल्खा सिंह रोम ओलंपिक 1960 की 400 मीटर की दौड़ में मामूली अंतर से कांस्य पदक से चूक गये थे।

चोपड़ा की ऐतिहासिक उपलब्धि से दो महीने पहले उड़न सिख मिल्खा सिंह का चंडीगढ़ में निधन हो गया था। वह 91 वर्ष के थे। चोपड़ा ने अपने पदक को इस महान एथलीट को समर्पित किया था।

चक्का फेंक की एथलीट कमलप्रीत सिंह भी ओलंपिक में कुछ समय के लिये चर्चा में रही। वह क्वालीफाईंग दौर में दूसरे स्थान पर रही थी लेकिन फाइनल में उन्हें छठा स्थान मिला था।

पुरुषों की 4x400 मीटर रिले टीम ने एशियाई रिकार्ड तोड़ा लेकिन फिर भी फाइनल में जगह बनाने में नाकाम रही, जिससे पता चलता है कि ओलंपिक में कितनी कड़ी प्रतिस्पर्धा है।

अविनाश साबले एक अन्य भारतीय थे जिन्होंने पुरुषों की 3000 मीटर स्टीपलचेज में अपने राष्ट्रीय रिकार्ड को बेहतर किया, लेकिन फाइनल में जगह नहीं बना सके जबकि फर्राटा धाविका दुती चंद ने निराश किया। हिमा दास तो खेलों के लिये क्वालीफाई ही नहीं कर पायी थी।

इस वर्ष भी भारतीय युवा एथलीटों ने कीनिया में विश्व जूनियर चैंपियनशिप में अच्छा प्रदर्शन किया। अंजू बॉबी जॉर्ज की शिष्या और लंबी कूद की एथलीट शैली सिंह और 10,000 मीटर पैदल चाल के एथलीट अमित खत्री ने रजत जीते।

बेलारूस के मध्यम और लंबी दूरी की दौड़ के कोच निकोलाई स्नेसारेव का एनआईएस पटियाला में एक प्रतियोगिता से कुछ घंटे पहले निधन हो गया था। एशियाई खेल 1951 के पदक विजेता और ओलंपिक 1952 में मैराथन में भाग लेने वाले सूरत सिंह माथुर का भी इस साल कोविड-19 के कारण निधन हो गया था।

पीटी ऊषा के गुरू और दिग्गज कोच ओपी नांबियार ने भी इस साल अंतिम सांस ली। उन्हें साल के शुरू में ही पदम श्री से सम्मानित किया गया था।

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