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जाकिया की याचिका: सांप्रदायिक हिंसा ज्वालामुखी के लावा के समान, सिब्बल ने न्यायालय में कहा

By भाषा | Updated: November 10, 2021 17:45 IST

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नयी दिल्ली, 10 नवंबर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि सांप्रदायिक हिंसा ज्वालामुखी से निकलने वाले लावा की तरह है जो जमीन पर दाग छोड़ देता है। सिब्बल 2002 के दंगों के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 64 लोगों को एसआईटी की क्लीनचिट को चुनौती देने वाली जाकिया जाफरी की ओर से दलीलें दे रहे थे।

सिब्बल ने न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ से कहा कि सांप्रदायिक हिंसा भविष्य में बदला लेने के लिए एक "उपजाऊ जमीन" है और उन्होंने भी पाकिस्तान में अपने नाना-नानी को खो दिया था।

उन्होंने कहा, ‘‘सांप्रदायिक हिंसा ज्वालामुखी से निकलने वाले लावा के समान है। यह संस्थागत हिंसा है... लावा पृथ्वी पर दाग छोड़ देता है। यह भविष्य में बदला लेने के लिए एक उपजाऊ जमीन है।’’

भावुक सिब्बल ने जाफरी की याचिका पर सुनवाई कर रही पीठ से कहा, "मैंने इसमें पाकिस्तान में अपने नाना-नानी को खो दिया था।"

सिब्बल ने कहा कि वह किसी पर आरोप नहीं लगा रहे हैं, लेकिन विश्व को एक संदेश दिया जाना चाहिए कि यह "अस्वीकार्य" है और "इसे सहन नहीं किया जा सकता।’’ उन्होंने कहा कि यह एक "ऐतिहासिक मामला" है क्योंकि चयन इन दोनों में से एक के बीच है कि यह सुनिश्चित होगा कि कानून का शासन कायम रहेगा या लोगों को छोड़ दिया जाएगा।

जाफरी दिवंगत कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी हैं जिनकी 28 फरवरी 2002 को हिंसा के दौरान अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में हत्या कर दी गई थी। हिंसा में एहसान जाफरी सहित 68 लोगों की मौत हुयी थी।

इस घटना से एक दिन पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई थी और गुजरात में दंगे हुए थे।

उच्चतम न्यायालय ने 26 अक्टूबर को कहा था कि वह 64 व्यक्तियों को क्लीन चिट देने वाली विशेष जांच दल (एसआईटी) की मामला बंद करने संबंधी ‘क्लोजर रिपोर्ट’ और मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा दिए गए औचित्य पर गौर करना चाहेगी।

इससे पहले, सिब्बल ने दलील थी कि जाफरी की शिकायत यह थी कि "एक बड़ी साजिश थी जहां अधिकारियों की निष्क्रियता, पुलिस की संलिप्तता, नफरत फैलाने वाले भाषण के साथ हिंसा को बढ़ावा दिया गया।"

एसआईटी ने आठ फरवरी, 2012 को मोदी (अब प्रधानमंत्री) और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों सहित 63 अन्य लोगों को क्लीन चिट देते हुए मामला बंद करने के लिए ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की थी जिसमें कहा गया था कि उनके खिलाफ "मुकदमा चलाने योग्य कोई सबूत नहीं" था।

जाकिया जाफरी ने 2018 में उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर गुजरात उच्च न्यायालय के पांच अक्टूबर 2017 के आदेश को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने एसआईटी के फैसले के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी थी।

याचिका में यह भी कहा गया है कि एसआईटी ने निचली अदालत में मामला बंद करने संबंधी क्लोजर रिपोर्ट में क्लीन चिट दिए जाने के बाद, जाकिया जाफरी ने विरोध याचिका दायर की थी जिसे मजिस्ट्रेट ने "ठोस आधारों’’ पर गौर किए बिना खारिज कर दिया।

उच्च न्यायालय ने अपने अक्टूबर 2017 के फैसले में कहा था कि एसआईटी जांच की निगरानी सर्वोच्च अदालत द्वारा की गयी थी। हालांकि, उच्च न्यायालय ने जाकिया जाफरी की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया जो मामले में आगे की जांच की मांग से जुड़ा हुआ था। अदालत ने कहा था कि याचिकाकर्ता आगे के अनुरोध के साथ मजिस्ट्रेट की अदालत, उच्च न्यायालय की खंडपीठ या उच्चतम न्यायालय सहित किसी उचित मंच के पास जा सकती हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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