कसरत, अखबार, सेवा है घरों से मील दूर सिंघू बार्डर पर बैठे किसानों की दिनचर्या

By भाषा | Updated: December 15, 2020 17:09 IST2020-12-15T17:09:51+5:302020-12-15T17:09:51+5:30

Workout, newspaper, service is the routine of farmers sitting on the Singhu border, miles away from their homes. | कसरत, अखबार, सेवा है घरों से मील दूर सिंघू बार्डर पर बैठे किसानों की दिनचर्या

कसरत, अखबार, सेवा है घरों से मील दूर सिंघू बार्डर पर बैठे किसानों की दिनचर्या

(अंजलि पिल्लै एवं त्रिशा मुखर्जी)

नयी दिल्ली, 15 दिसंबर नये कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर यहां सिंघू बार्डर पर पिछले 20 दिनों से डेरा डाले हुए किसानों के लिए सामुदायिक रसोई में सेवा, धर्मोपदेश में भाग लेना, अखबार पढ़ना और कसरत करना दिनचर्या बन गयी है। वे अपने आंदोलन का तत्काल समापन नजर नहीं आता देख यहां रहने के तौर तरीके ढूढने में लगे हैं।

जब वे नारे नहीं लगा रहे होते हैं या भाषण नहीं सुन रहे होते हैं तब वे यहां दिल्ली की सीमाओं पर जीवन के नये तौर-तरीके से परिचित होते हैं। ज्यादातर किसान पंजाब और हरियाणा के हैं।

केंद्र के नये कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन के मुख्य स्थल सिंघू बार्डर पर कुछ किसान शुरू से ही डटे हुए हैं। उनमें से कई ने कहा कि अब उन्हें घर जैसा लगने लगा है। उनमें युवा, वृद्ध, महिलाएं और पुरूष सभी हैं। यहां सड़कें काफी चौड़ी हैं और यह प्रदर्शन के लिए मुफीद है।

27 नवंबर से ही यहां ठहरे हुए बिच्चित्तर सिंह (62) ने कहा कि वह यहां प्रदर्शन स्थल पर प्रतिदिन सुबह और शाम कीर्तन में हिस्सा ले रहे हैं।

उन्होंने कहा,‘‘पथ पर बैठने के बाद मैं कुछ किलोमीटर तक टहलता हूं ताकि इस ठंड में हमारी मांसपेशियां काम करती रहीं।’’

बिच्चित्तर सिंह 32 लोंगों के उस पहले जत्थे में शामिल हैं जो पटियाला से प्रारंभ में ही दो ट्रकों और दो ट्रोलियों में आया था। ये सभी लोग दो ट्रकों के बीच रखे गये अस्थायी बेड, गद्दे, प्लास्टिक शीट आदि पर सोते है। ट्रकों के उपर तिरपाल लगाया गया है।

इस समूह में 30 वर्षीय कुलविंदर सिंह जैसे युवा लोग उन कामों को करते हैं जिनमें अधिक मेहनत लगती है ।

उसने कहा, ‘‘ जब हम खेतों में काम करते थे तब हमारा अभ्यास हो जाया करता था। अब , वह तो हो नहीं रहा है तो मैं यहां हर सुबह दौड़ता हूं और कसरत करता हूं। दिन में ज्यादातर समय मैं अपने नेताओं का भाषण सुनता हूं। शाम को मैं अपने फोन पर अपने प्रदर्शन के बारे खबरें पढता हूं। ’’

पंजाब के मोगा के गुरप्रीत सिंह ने कहा, ‘‘ यदि सरकार सोचती है कि हम कुछ दिनों में चले जायेंगे तो वह अपने आप को ही बेवकूफ बना रही है। यह स्थान हमारे गांव से कहीं ज्यादा अपना घर लगने लगा है। यदि सरकार हमारी मांगें नहीं मानती है तो हम यहां अपनी झोपड़ियां बना लेंगे और रहने लगेंगे।

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Web Title: Workout, newspaper, service is the routine of farmers sitting on the Singhu border, miles away from their homes.

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