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एनजीटी के पास स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है या नहीं, न्यायालय 25 अगस्त को करेगा सुनवायी

By भाषा | Updated: August 4, 2021 19:13 IST

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नयी दिल्ली, चार अगस्त उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के पास किसी मामले का स्वत: संज्ञान लेने के अधिकार के सवाल पर विचार करते हुए बुधवार को कहा कि अगर उसके समक्ष कोई औपचारिक आवेदन नहीं है तो वह प्रदूषण से पीड़ित व्यक्तियों को ‘‘कुछ राहत’’ प्रदान करने की जिम्मेदारी क्यों नहीं ले सकता।

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह 25 अगस्त को इस पहलू पर दलीलें सुनेगी कि क्या पर्यावरण से संबंधित मामलों से निपटने के लिये 2010 में स्थापित हरित अधिकरण को मामलों का स्वत: संज्ञान लेनेका अधिकार है या नहीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि मामलों पर विचार करते समय एनजीटी अधिनियम के प्रावधानों के उद्देश्य और मंशा को ध्यान में रखना होगा।

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा, ‘‘यहां आम आदमी है, प्रदूषण से संबंधित मुद्दों के पीड़ित हैं। अब, अधिकरण के समक्ष यदि कोई औपचारिक अर्जी नहीं है तो वह जिम्मेदारी क्यों नहीं ले सकता है और इसका समाधान क्यों नहीं कर सकता है और इन पीड़ितों को कुछ राहत प्रदान क्यों नहीं कर सकता है।’’

शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी उस समय की जब मामले में एक पक्षकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ए एन एस नादकर्णी ने तर्क दिया कि अधिकरण के समक्ष एक विवाद होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि उसके समक्ष एक अर्जी होनी चाहिये।

पीठ स्वत: संज्ञान लेने की एनजीटी की शक्ति के संबंध में याचिकाओं की सुनवायी कर रही थी। पीठ ने कहा कि अर्जी दाखिल नहीं करने के कई कारण हो सकते हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘तर्क को स्वीकार करना वस्तुत: एक अधिकरण की शक्तियों को कमतर करना होगा जिसके पास बहुत महत्वपूर्ण शक्तियां हैं।’’ पीठ ने कहा कि अधिकरण की शक्ति और कर्तव्य जैसे मुद्दों पर गौर किया जाना चाहिए।

नादकर्णी ने पीठ को बताया कि वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर इससे सहमत थे कि एनजीटी के पास स्वत: संज्ञान लेने का कोई अधिकार नहीं है जिन्हें इस मामले में शीर्ष अदालत की सहायता के लिए न्याय मित्र नियुक्त किया गया था।

पीठ ने इस मामले में न्याय मित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर से पूछा, ‘‘आप उनके इस दलील से सहमत हैं कि अधिकरण के पास स्वत: संज्ञान लेने का कोई अधिकार नहीं है?’’ ग्रोवर ने कहा कि वह इस पर नादकर्णी की राय से सहमत हैं।

नादकर्णी ने कहा, ‘‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि एनजीटी के पास अधिकार क्षेत्र नहीं है। मुद्दा यह है कि क्या अधिकरण के पास स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है।’’

पीठ ने इस मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त तय की। पीठ ने कहा कि पक्षकार अधिकरण के स्वत: संज्ञान के अधिकार के मुद्दे पर अपनी लिखित दलीलें दाखिल कर सकते हैं।

एनजीटी ने पहले महाराष्ट्र में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया था और नगर निगम पर पांच करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था।

शीर्ष अदालत को बताया गया था कि बम्बई उच्च न्यायालय पहले से ही महाराष्ट्र में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दे की निगरानी कर रहा है और एनजीटी को इस मामले में स्वत: संज्ञान नहीं लेना चाहिए था।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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