प्रणब मुखर्जीः कटहल लेकर दिल्ली आते थे, मन में हमेशा अपने गांव के प्रति आकर्षण रहा
By भाषा | Updated: September 1, 2020 15:44 IST2020-09-01T15:44:51+5:302020-09-01T15:44:51+5:30
वेंटिलेटर पर रखे जाने से पहले उन्होंने उनसे मिराती से 'कटहल' लाने को कहा था। अभिजीत कोलकाता से मिराती गए और तीन अगस्त को 25 किलोग्राम का कटहल लेकर ट्रेन से दिल्ली रवाना हो गये।

पैतृक घर पहुंची सुष्मिता ने कहा, " इस गांव के लोगों के लिए वह प्रणब दा, प्रणब काकू या जेथू (चाचा) थे। (file photo)
मिराती (पश्चिम बंगाल)- दिल्ली के सत्ता गलियारे में शीर्ष तक पहुंचने के बावजूद प्रणब मुखर्जी के मन में हमेशा अपने गांव के प्रति आकर्षण बना रहा। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के मिराती गांव में सोमवार को जब मुखर्जी के निधन की खबर पहुंची तो हर तरफ शोक की लहर दौड़ गई।
राजधानी कोलकाता से 200 किलोमीटर दूर यह गांव भारत के 13वें राष्ट्रपति का पैतृक स्थान है। मिराती गांव की धूल भरी गलियों से राष्ट्रपति भवन पहुंचने तक के सफर के दौरान मुखर्जी की जिंदगी में अपने गांव के लिए विशेष स्थान रहा, बल्कि बंधन और मजबूत हुआ। कई सालों में यह पहली बार होगा जब दुर्गा पूजा के दौरान उनकी गैर मौजूदगी महसूस की जाएगी।
धोती-कुर्ता पहन कर मुखर्जी मां दुर्गा की आरती किया करते थे। मुखर्जी पिछले साल भी दुर्गा पूजा पर अपने गांव में थे, जो पश्चिम बंगाल और पूरे भारत के कोरोना वायरस की चपेट में आने से कुछ महीने पहले की बात है। मुखर्जी भी इस जानलेवा संक्रमण से संक्रमित हो गए थे और उनका ऑपरेशन भी हुआ, जिसके बाद वह कॉमा में चले गए थे। पूर्व राष्ट्रपति के निधन की खबर सुनकर उनके पैतृक घर पहुंची सुष्मिता ने कहा, " इस गांव के लोगों के लिए वह प्रणब दा, प्रणब काकू या जेथू (चाचा) थे।
उन्होंने कभी हमें यह एहसास नहीं कराया कि वह वरिष्ठ मंत्री या राष्ट्रपति हैं। वह बच्चों से प्यार करते थे। " सुष्मिता की तरह ही लगभग हर गांववासी मुखर्जी के यहां होने वाली दुर्गा पूजा में नियमित तौर पर जाता था। मुखर्जी परिवार के करीबी सहयोगी राबी चट्टोराज ने पीटीआई-भाषा से कहा, " मुखर्जी के घर पर होने वाली दुर्गा पूजा हमारे गांव का सबसे बड़ा कार्यक्रम होता था। पांच दिन के उत्सव के दौरान हम सभी उनके घर पर भोजन करते थे। वह हमारे थे।
मिराती में दुर्गा पूजा अब कभी वैसी नहीं होगी। " उन्होंने कहा, " हर साल पूजा से दो महीने पहले, वह हमें फोन करते थे और हर ब्यौरे के बारे में पूछते थे। पांच दिन की पूजा के दौरान वह खुद चंडी पाठ करते थे। " राष्ट्रीय राजधानी में स्थित सेना के रिसर्च एवं रेफरल अस्पताल में कोमा में रहने के दौरान मुखर्जी का सोमवार को निधन हो गया। चट्टोराज ने बताया, " वह गंभीर रूप से बीमार थे, लेकिन हमें लग रहा था कि अदम्य भावना और मां दुर्गा की कृपा से वह स्वस्थ हो जाएंगे। हम उनके ठीक होने की प्रार्थना कर रहे थे। मगर वह हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए। "
मुखर्जी ने करीब के किनाहर के शिबचंद्र हाई स्कूल से पढ़ाई की थी। वह राष्ट्रपति बनने के बाद तीन बार स्कूल गए। स्कूल के प्रधान अध्यापक नीलकमल बनर्जी ने बताया, " 2012 में (जब वह राष्ट्रपति बने थे) तब हमने उन्हें सम्मानित किया था। वह 2013 और 2014 में फिर स्कूल आए। वह जब भी स्कूल आते, शिक्षकों तथा छात्रों से बात करते।"
मुखर्जी के बेटे और कांग्रेस के पूर्व सांसद अभिजीत मुखर्जी ने हाल में एक राष्ट्रीय दैनिक से कहा था कि वेंटिलेटर पर रखे जाने से पहले उन्होंने उनसे मिराती से 'कटहल' लाने को कहा था। अभिजीत कोलकाता से मिराती गए और तीन अगस्त को 25 किलोग्राम का कटहल लेकर ट्रेन से दिल्ली रवाना हो गये।