Vijay Diwas, 16 December: पाकिस्तान के 93000 सैनिकों ने जब भारत के सामने टेके घुटने, कहानी सबसे बड़े आत्मसमर्पण की
By विनीत कुमार | Published: December 16, 2019 07:53 AM2019-12-16T07:53:01+5:302019-12-16T07:53:01+5:30
Vijay Diwas 16, December: पाकिस्तान बनने के कुछ वर्षों बाद से ही पूर्वी पाकिस्तान में विरोध की लहरे उठने लगी थीं। पश्चिमी पाकिस्तान के आकाओं द्वारा बार-बार पूर्वी पाकिस्तान के साथ दोयम दर्जे के व्यवहार ने इस विरोध को और हवा दी और यहां गृह युद्ध के हालात बनने लगे।
भारत-पाकिस्तान के बीच तल्ख रिश्ते से पूरी दुनिया वाकिफ है। दोनों देशों के बीच जब भी युद्ध हुए, भारतीय सैनिक पाकिस्तान पर भारी पड़े। इन्हीं जंगों में से एक है 1971 की भी जंग, जब भारत ने पाकिस्तान को न केवल घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया बल्कि उसे दो टुकड़ों में भी बांट दिया।
उस समय के पूर्वी पाकिस्तान और अब के बांग्लादेश में 93000 पाक सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। दुनिया के इतिहास में ये अब तक का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण है जो एक देश ने दूसरे देश के सामने किया। पाकिस्तान की हार के बाद दुनिया के नक्शे पर एक नये देश का जन्म हुआ जिसे हम बांग्लादेश के नाम से जानते हैं।
पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में जब उठी विरोध की आवाज
पाकिस्तान के बनने के कुछ वर्षों बाद से ही पूर्वी पाकिस्तान में विरोध की लहरे उठने लगी थीं। पश्चिमी पाकिस्तान के आकाओं द्वारा बार-बार पूर्वी पाकिस्तान के साथ दोयम दर्जे के व्यवहार ने इस विरोध को और हवा दी और यहां गृह युद्ध के हालात बनने लगे। 1970 में पाकिस्तान में हुए आम चुनाव हुए।
चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान की बड़ी पार्टी आवामी लीग सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पार्टी ने 160 सीटें जीती। दूसरी ओर पश्चिमी पाकिस्तान से जुल्फिकार अली भुट्टो की पार्टी पीपीपी ने केवल 81 सीटें हासिल की। पाकिस्तान के राष्ट्रपति याहया खान और पीपीपी नहीं चाहते थे कि पूर्वी पाकिस्तान से किसी पार्टी की सरकार बने।
यहीं से हालात ज्यादा खराब हो गये। जनता अपने ही सैनिकों के खिलाफ हो गई। पश्चिमी पाकिस्तान से अलग होने की मांग और मुखर होती चली गई। पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में आजादी के संघर्ष के लिए हथियारबंद मुक्ति बाहिनी सेना का निर्माण हो गया और पाकिस्तानी सेना से इसकी लड़ाई शुरू हो गई। भारत ने मुक्ति बाहिनी सेना का समर्थन किया।
पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सैनियों की एंट्री और 13 दिन का युद्ध
भारत मुक्ति बाहिनी को समर्थन जरूर दे रहा था लेकिन सीधे तौर पर और सैन्य रूप से इस लड़ाई का वह हिस्सा नहीं था। हालाकि, पूर्वी पाकिस्तान में छिड़े गृह युद्ध के कारण कई बांग्लादेशी शरणार्थी भारत में भाग-भाग कर दाखिल होने की कोशिश करने लगे। भारत के लिए ये मुश्किल घड़ी थी। आखिरकार भारत ने इस समस्या से निपटने के लिए पूर्वी पाकिस्तान में दाखिल होने का फैसला किया।
इसका मौका पाकिस्तान ने ही भारत को दिया। तीन दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की ओर से भारतीय ठिकानों पर हमले के बाद भारतीय सैनिक खुल कर इस अभियान में कूद पड़े। भारत पूरी ताकत से पाकिस्तान से भिड़ गया। पाकिस्तान के लिए मुश्किल ये थी कि उसे दो मोर्चों पर लड़ाई करनी पड़ रही थी। एक मोर्चा पश्चिमी पाकिस्तान का था जबकि दूसरा मोर्चा पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) का था।
आखिरकार पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। पाकिस्तानी सेना का मनोबल टूटता चला गया और आखिरकार 16 दिसंबर को उन्हें समर्पण के लिए मजबूर होना पड़ा।
30 मिनट में पाक सैनिकों ने किया आत्मसमर्पण
भारतीय सेना जीत हासिल करती हुई 16 दिसंबर की सुबह ढाका पहुंची। इस मोर्चे पर भारतीय सेना की कमान संभाल रहे कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जैकब ने अपने 3 हजार सैनियों के साथ गजब का साहस और बेजोड़ रणनीति दिखाई और पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी के नेतृत्व वाली पाकिस्तानी सैनिकों को 30 मिनट में ही घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।
कहते हैं कि जब जैकब पाकिस्तान में दाखिल हुए तब नियाजी के पास इस मोर्चे पर 30 हजार सैनिक थे लेकिन उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा। इसके साथ ही पूर्वी पाकिस्तान में तब मौजूद 90 हजार से ज्यादा सैनिक भी आत्मसमर्पण के लिए मजबूर हो गये। इसके साथ ही बांग्लादेश का जन्म हुआ।