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अमेरिकी कंपनी को एल्गार मामले में राय देने का अधिकार नहीं: उच्च न्यायालय से महाराष्ट्र सरकार

By भाषा | Updated: July 13, 2021 18:48 IST

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मुंबई, 13 जुलाई महाराष्ट्र सरकार ने बंबई उच्च न्यायालय से कहा है कि एल्गार परिषद माओवादी संबंध मामले में कुछ आरोपियों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में सबूत डालने का दावा करने वाली अमेरिकी डिजिटल फोरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग को अदालत के आदेश के बिना अपनी राय देने का अधिकार नहीं है।

महाराष्ट्र सरकार ने एक जुलाई को उच्च न्यायालय में दायर एक हलफनामे में यह दलील दी है। इस हलफनामे को मंगलवार को रिकॉर्ड में लिया गया। हलफनामा मामले में एक आरोपी कार्यकर्ता रोना विल्सन की रिट याचिका के विरोध में दायर किया गया है, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी और आरोप पत्र रद्द करने का आग्रह किया है।

इस साल की शुरुआत में जारी आर्सेनल की एक रिपोर्ट के अनुसार, विल्सन के कंप्यूटर में अपराध संकेती पत्र "डाला” गया था। राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि 2018 में विल्सन और अन्य आरोपियों के घरों पर छापेमारी करते हुए मामले में तत्कालीन अभियोजन एजेंसी पुणे पुलिस (मामले को बाद में एनआईए को सौंप दिया गया था) ने उचित प्रक्रिया का पालन किया था।

राज्य सरकार ने कहा कि विल्सन को पुलिस ने निशाना नहीं बनाया है। इसमें कहा गया है कि विल्सन ने अपनी याचिका में दावा किया है कि किसी ने उनके कंप्यूटर को हैक कर लिया और अपराध संकेती सामग्री उसमें डाल दी। हलफनामे में कहा गया है कि लिहाज़ा यह विल्सन पर है कि वह अदालत को बताएं कि सबूतों से छेड़छाड़ के कथित कृत्य के पीछे कौन है।

राज्य ने हलफनामे में कहा, " (विल्सन की) याचिका में दी गई सभी दलीलें आर्सेनल कंसल्टिंग की रिपोर्ट पर आधारित हैं। यह रिपोर्ट एनआईए (राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण) या वर्तमान प्रतिवादी (पुणे पुलिस) द्वारा दायर आरोप पत्र का हिस्सा नहीं है।"

इसमें कहा गया है कि आर्सेनल की रिपोर्ट आरोप पत्र का हिस्सा नहीं है, इसलिए उच्च न्यायालय इस पर भरोसा नहीं कर सकता है। हलफनामे में कहा गया है, "जब मुकदमा लंबित है और मामला विचाराधीन है, तो आर्सेनल के पास माननीय अदालत की अनुमति के बिना इस तरह की राय देने का कोई अधिकार नहीं है।" राज्य सरकार ने अदालत से विल्सन की याचिका को खारिज करने का आग्रह किया।

विल्सन और सह-आरोपी प्रोफेसर शोमा सेन ने इस साल की शुरुआत में वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर के माध्यम से दो याचिकाएं दायर की थी और आर्सेनल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए आग्रह किया था कि उनके खिलाफ आरोप रद्द किए जाएं।

इन याचिकाओं को सोमवार को उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और न्यायमूर्ति एनजे जमादार की पीठ ने सुनवाई को 26 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया क्योंकि याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कुछ फैसलों की निर्णयों की प्रतियां जमा नहीं की थी। वकील चाहते हैं कि अदालत उन फैसलों को देखे।

इस साल की शुरुआत में, एनआईए ने विल्सन और सेन द्वारा दायर याचिकाओं का विरोध करते हुए दो एक जैसे हलफनामे दायर किए थे। महाराष्ट्र सरकार ने अभी तक सेन की याचिका पर अपना जवाब दाखिल नहीं किया है। 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन से संबंधित मामले में एक दर्जन से अधिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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