32000 छात्र ले रहे थे शिक्षा, कामिल और फाजिल की डिग्रियां ‘असंवैधानिक’?, सुप्रीम कोर्ट आदेश के बाद नए विकल्प तलाश रहे छात्र

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 7, 2025 17:45 IST2025-12-07T17:45:10+5:302025-12-07T17:45:50+5:30

मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को कामिल (स्नातक) और फाजिल (स्नातकोत्तर) की डिग्रियां दिए जाने को यह कहते हुए ‘‘असंवैधानिक’’ घोषित कर दिया था कि यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अधिनियम के खिलाफ है।

up sarkar 32000 students receiving education Kamil and Fazil degrees unconstitutional Students looking new options Supreme Court order | 32000 छात्र ले रहे थे शिक्षा, कामिल और फाजिल की डिग्रियां ‘असंवैधानिक’?, सुप्रीम कोर्ट आदेश के बाद नए विकल्प तलाश रहे छात्र

file photo

Highlightsविभिन्न मदरसों में लगभग 32 हजार विद्यार्थी इन पाठ्यक्रमों की शिक्षा ले रहे थे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अधिनियम के तहत विनियमित विश्वविद्यालयों के पास ही है।जामिया फारुकिया में फाजिल डिग्री के छात्र सकलैन रजा ने बताया, ''कॅरियर तो देखना ही पड़ेगा।

लखनऊः उत्तर प्रदेश के मदरसों में कामिल और फाजिल पाठ्यक्रमों में पंजीकृत कई छात्र अब नये शैक्षणिक विकल्प तलाश रहे हैं, क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने ये डिग्री प्रदान करने के राज्य मदरसा शिक्षा परिषद के प्राधिकार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अधिनियम का उल्लंघन बताते हुए रद्द कर दिया है।

उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल पांच नवंबर को अपने एक आदेश में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद द्वारा राज्य के अनुदानित और उससे मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को कामिल (स्नातक) और फाजिल (स्नातकोत्तर) की डिग्रियां दिए जाने को यह कहते हुए ‘‘असंवैधानिक’’ घोषित कर दिया था कि यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अधिनियम के खिलाफ है।

उच्चतम न्यायालय ने जब यह आदेश दिया था, उस समय राज्य के विभिन्न मदरसों में लगभग 32 हजार विद्यार्थी इन पाठ्यक्रमों की शिक्षा ले रहे थे। उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि ऐसा प्राधिकार केवल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अधिनियम के तहत विनियमित विश्वविद्यालयों के पास ही है।

वाराणसी के मदरसा जामिया फारुकिया रेवड़ी तालाब में फाजिल प्रथम वर्ष की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुके सकलैन रजा अपना भविष्य बनाने के लिए अब काशी विद्यापीठ में बी.ए. में दाखिला लेने जा रहे हैं। ऐसे ही कई अन्य मदरसा छात्र भी हैं जो अब नयी राहें तलाश रहे हैं। वाराणसी स्थित मदरसा जामिया फारुकिया में फाजिल डिग्री के छात्र सकलैन रजा ने बताया, ''कॅरियर तो देखना ही पड़ेगा।

हालात को देखते हुए मैं काशी विद्यापीठ से बी.ए. और एम.ए. करूंगा।'' उन्होंने कहा, ''मैंने आलिम का कोर्स किया है तो उसके आधार पर मेरा काशी विद्यापीठ में बी.ए. में दाखिला हो जाएगा। यह अलग बात है कि कामिल कोर्स पर खर्च किये गये तीन साल और फाजिल पर गया मेरा एक साल बर्बाद जाएगा।’’ रजा अकेले नहीं हैं।

मदरसों में उच्च धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने वाले कई छात्र अपने शैक्षणिक करियर को लेकर अनिश्चित हैं। सिद्धार्थ नगर के मदरसा दारुल उलूम फैज-उर-रसूल बरांव शरीफ में कामिल प्रथम वर्ष का इम्तेहान दे चुके छात्र गुलाम मसीह ने भी ऐसे ही विचार जाहिर करते हुए कहा कि उन्होंने भी किसी विश्वविद्यालय से बी.ए. और फिर एम.ए. की डिग्री लेने का इरादा किया है।

हालांकि उन्होंने यह भी कहा, ''चूंकि मदरसों में कामिल और फाजिल की डिग्री कोर्स पढ़ रहे छात्रों को ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कराने को लेकर मामला अदालत में चल रहा है तो उम्मीद है कि कोई हल निकलेगा।'' दूसरी ओर, कुछ छात्रों का कहना है कि उनके पास मदरसे में पढ़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।

मऊ जिले में स्थित मदरसा तालीमउद्दीन के फाजिल प्रथम वर्ष की परीक्षा दे चुके मोहम्मद साद निजामी ने बताया, ''अभी तो पढ़ाई बंद है। मैंने फरवरी 2024 में फाजिल प्रथम वर्ष की परीक्षा दी थी। मेरे लगभग पौने दो साल तो वैसे भी बर्बाद हो चुके हैं। मेरी सरकार से दरखास्त है कि अदालत के आदेश के बाद उत्पन्न स्थिति का कोई हल निकाले।''

कोई हल नहीं निकल पाने की स्थिति में क्या करेंगे, इस सवाल पर निजामी ने कहा, ''अभी तो कुछ समझ नहीं आ रहा है। पढ़ाई छोड़ दें या कोई नौकरी या कारोबार करें।'' इस बीच, उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री दानिश आजाद अंसारी ने बताया कि सरकार इस मसले का हल निकालने पर विचार कर रही है।

उन्होंने कहा, ''हम इस मामले के तमाम विधिक पहलुओं पर बारीकी से विचार-मंथन करने के बाद जल्द ही कोई निर्णय लेंगे।'' अंसारी ने बताया कि वर्तमान में कामिल और फाजिल की डिग्रियों के आधार पर अनुदानित मदरसों में नौकरी कर रहे शिक्षकों पर कोई आंच नहीं आयेगी।

टीचर्स एसोसिएशन मदारिस-ए-अरबिया उत्तर प्रदेश ने इसी साल मई माह में उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दाखिल की है जिसमें अनुरोध किया गया है कि मदरसा छात्रों को ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय से संबद्ध किया जाए ताकि उनकी परीक्षाएं और डिग्री नियमित हो सकें।

संगठन के महासचिव दीवान साहब जमां ख़ां ने बताया कि याचिका में न्यायालय के गुजारिश की गयी है कि वह सरकार को आदेश दे कि प्रदेश के सभी अनुदानित और मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त मदरसों में कामिल और फाजिल डिग्रियों की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों को लखनऊ स्थित 'ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ची भाषा विश्वविद्यालय' से सम्बद्ध करे और उनकी परीक्षा कराकर उन्हें डिग्रियां दिलवाये।

उन्होंने बताया कि अदालत ने विगत 30 मई को सुनवाई करते हुए सरकार, यूजीसी और ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय और मदरसा बोर्ड से भी जवाब मांगा है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष कुंवर बासित अली प्रदेश के विभिन्न मदरसों में पढ़ रहे कामिल और फाजिल के छात्रों को भाषा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कराए जाने के विचार को ही गलत मानते हैं। उन्होंने कहा, "मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि मदरसा बोर्ड ने कामिल और फाजिल की डिग्रियों का पाठ्यक्रम उस स्तर का नहीं बनाया था, जैसा कि विश्वविद्यालयों में इन्हीं डिग्रियों का होता है।

ऐसे में मदरसा बोर्ड का पाठ्यक्रम पढ़ रहे कामिल और फाजिल के छात्रों को बीच सत्र में भाषा विश्वविद्यालय से जोड़ना अव्यावहारिक है। अगर उन्हें जोड़ना ही है तो विश्वविद्यालय में उनका नए सिरे से डिग्री कोर्स में दाखिला कराया जाना चाहिए।" अली ने कहा कि वह जल्द ही इस मसले को लेकर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर से मिलेंगे।

और इस सिलसिले में कोई वाजिब रास्ता निकालने की गुजारिश करेंगे। विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित कामिल और फाजिल पाठ्यक्रमों में अपने खर्चे पर दाखिला लेने की संभावना के सवाल पर टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया उत्तर प्रदेश के महासचिव दीवान साहब जमां ख़ां ने कहा कि मदरसों में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे गरीब और कमजोर वर्ग के होते हैं।

उन्होंने कहा कि ऐसे में उनमें से ज्यादातर बच्चों का महंगी फीस देकर किसी कॉलेज या विश्वविद्यालय में पढ़ाई करना बहुत मुश्किल है। इस बीच, भाषा विश्वविद्यालय के एक जिम्मेदार पदाधिकारी ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर इस बारे में बताया कि चूंकि मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है, इसलिए इस बारे में वह कोई टिप्पणी नहीं कर सकते।

Web Title: up sarkar 32000 students receiving education Kamil and Fazil degrees unconstitutional Students looking new options Supreme Court order

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे