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उप्र सरकार ने आज़म खान के जौहर विवि की जमीन वापस ली

By भाषा | Updated: September 10, 2021 22:35 IST

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रामपुर, 10 सितंबर उत्तर प्रदेश सरकार ने यहां मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की 170 एकड़ जमीन को वापस ले लिया है। इस विश्वविद्यालय का संचालन समाजवादी पार्टी के नेता आज़म खान की अगुवाई वाले न्यास के हाथ में है। अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।

कुछ शर्तों का पालन नहीं करने पर विश्वविद्यालय की भूमि को वापस लेने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई कार्यवाही के खिलाफ दायर याचिका को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार को खारिज कर दिया था, जिसके बाद यह घटनाक्रम हुआ है। इन शर्तों पर ही जमीन को 2005 में न्यास को दिया गया था।

अधिकारियों ने बताया कि स्थानीय राजस्व विभाग के कर्मचारियों की एक टीम बृहस्पतिवार को 170 एकड़ भूमि को अपने कब्जे में लेने की औपचारिकताएं पूरी करने विश्वविद्यालय गई थी।

उन्होंने बताया कि इसके बाद अब विश्वविद्यालय के पास करीब 12.5 एकड़ जमीन रह गई है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सूचना सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी ने घटनाक्रम की मीडिया रिपोर्ट पोस्ट करते हुए ट्वीट किया, “सरकार की संपत्ति, सरकार के हाथों में, यही है मोदी योगी राज !!”

बहरहाल, विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने कहा कि इस घटनाक्रम के बावजूद विश्वविद्यालय में कक्षाएं एवं अगले सत्र के लिए दाखिला प्रक्रिया तय कार्यक्रम के मुताबिक जारी रहेगी।

साल 2006 में स्थापित विश्वविद्यालय, मोहम्मद अली जौहर न्यास द्वारा संचालित किया जाता है। समाजवादी पार्टी के सांसद आजम खान न्यास के अध्यक्ष और विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं। यह विश्वविद्यालय अनियमितताओं और भूमि अतिक्रमण के आरोपों को लेकर विवादों में है।

खान और उनके बेटे अब्दुल्ला फिलहाल सीतापुर जेल में बंद हैं। अब्दुल्ला भी न्यास के सदस्य हैं। एसडीएम की रिपोर्ट का हवाला देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि जमीन पर एक मस्जिद का निर्माण किया गया है, जो केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए दी गई थी। इस प्रकार, यह राज्य सरकार द्वारा दी गई अनुमति का उल्लंघन है।

वर्ष 2005 में, तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार ने मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय अधिनियम बनाया, जिससे विश्वविद्यालय निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ।

इसके बाद, राज्य सरकार ने कुछ शर्तों के साथ विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए 12.5 एकड़ की सीमा के विपरीत जाकर 400 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करने की न्यास को इजाजत दे दी। एक शर्त यह भी थी कि भूमि का उपयोग केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा।

कानून के अनुसार, अगर ऐसी शर्त का उल्लंघन किया जाता है, तो राज्य सरकार द्वारा दी गई अनुमति वापस ले ली जाएगी।

विश्वविद्यालय के दाखिला प्रकोष्ठ के एक अधिकारी ने फोन पर पीटीआई-भाषा को बताया, “तय कार्यक्रम के अनुसार कक्षाएं चलेंगी और अगले सत्र के लिए प्रवेश प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं होगा।”

इस विश्वविद्यालय की स्थापना अल्पसंख्यक संस्थान के तौर पर हुई है और अब इसके पास 12.5 एकड़ जमीन बची है। माना जाता है कि विश्वविद्यालय ने सबसे पहले यही जमीन खरीदी थी। खान विश्वविद्यालय से जुड़ी भूमि पर कब्जा करने के आरोप समेत कई अन्य आरोपों में जांच का सामना कर रहे हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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