त्रिपुरा हिंसा : न्यायालय ने पुलिस को बलपूर्वक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया

By भाषा | Updated: November 17, 2021 16:40 IST2021-11-17T16:40:42+5:302021-11-17T16:40:42+5:30

Tripura violence: Court directs police not to act coercively | त्रिपुरा हिंसा : न्यायालय ने पुलिस को बलपूर्वक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया

त्रिपुरा हिंसा : न्यायालय ने पुलिस को बलपूर्वक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया

नयी दिल्ली, 17 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने त्रिपुरा में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ ‘‘लक्षित हिंसा’’ के बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए सख्त यूएपीए के प्रावधानों के तहत नागरिक समाज के तीन सदस्यों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के मामले में उनके विरुद्ध कोई बलपूर्वक कार्रवाई नहीं करने का राज्य पुलिस को बुधवार को निर्देश दिया। नागरिक समाज के इन सदस्यों में एक पत्रकार भी शामिल है।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना तथा न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने वकील मुकेश, अनसारुल हक और पत्रकार श्याम मीरा सिंह की याचिका पर अगरतला पुलिस को नोटिस जारी किया है। पुलिस ने इनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है।

इस घटना के तथ्य खोजने संबंधी समिति का हिस्सा रहे नागरिक समाज के सदस्यों ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून, 1967 के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी है। उन्होंने इस आधार पर प्रावधानों को चुनौती दी है कि ‘‘गैरकानूनी गतिविधियों’’ की परिभाषा अस्पष्ट और व्यापक है और साथ ही कहा कि इससे आरोपी को जमानत मिलना बहुत मुश्किल हो जाता है।

प्राथमिकी में नागरिक समाज के एक सदस्य के उस ट्वीट का भी जिक्र किया गया है जिसमें उन्होंने कहा था, ‘‘त्रिपुरा जल रहा है।’’

हाल में पूर्वोत्तर राज्य में आगजनी, लूटने और हिंसा की घटनाएं देखी गयी। यह हिंसा बांग्लादेश से आ रही उन खबरों के बाद हुई कि वहां ईशनिंदा के आरोपों पर ‘दुर्गा पूजा’ के दौरान हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमला किया गया।

शीर्ष अदालत ने 11 नवंबर को वकील प्रशांत भूषण की दलीलों पर गौर किया था और नागरिक समाज के तीन सदस्यों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई के लिए राजी हो गया था।

भूषण ने कहा था कि दो वकीलों और एक पत्रकार पर उनके सोशल मीडिया पोस्ट के लिए यूएपीए के तहत त्रिपुरा पुलिस ने मामला दर्ज किया और एक प्राथमिकी दर्ज की गयी और उन्हें आपराधिक दंड संहिता के तहत एक नोटिस जारी किया गया।

याचिका में त्रिपुरा में अक्टूबर में ‘‘मुस्लिम अल्पसंख्यकों’’ के खिलाफ लक्षित राजनीतिक हिंसा का आरोप लगाया गया। याचिका में कहा गया है, ‘‘अगर राज्य को तथ्यों का पता लगाने और रिपोर्टिंग का अपराधीकरण करने दिया जाता है और वह भी यूएपीए के सख्त प्रावधानों के तहत, जिसमें अग्रिम जमानत पर रोक है और जमानत का विचार एक दूरस्थ संभावना है तो फिर अभिव्यक्ति की आजादी और नागरिक समाज के सदस्यों की अभिव्यक्ति पर ‘कुठाराघात’ के कारण केवल वही तथ्य सामने आएंगे जो राज्य के लिए सुविधाजनक हैं। अगर सच की तलाश और उसकी रिपोर्टिंग अपराधीकरण है तो इस प्रक्रिया में पीड़ित न्याय का विचार है।’’

इसमें कहा गया है कि 14 अक्टूबर के आसपास बांग्लादेश से ईशनिंदा के आरोपों पर दुर्गा पूजा के दौरान हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की खबरें आनी शुरू हुई और ‘‘इसकी प्रतिक्रिया में त्रिपुरा में राजनीतिक दक्षिणपंथी ताकतों ने मुस्लिम अल्पंसख्यकों के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को भड़काना शुरू कर दिया।’’

इसमें कहा है, ‘‘एक लक्षित और सुनियोजित तरीके से मुस्लिम नागरिकों के प्रतिष्ठानों में आगजनी, लूटपाट और हिंसा तथा त्रिपुरा में विभिन्न स्थानों पर मस्जिदों को जलाने की घटनाएं हुई। विश्व हिंदू परिषद जैसी दक्षिणपंथी ताकतों की एक रैली में 26 अक्टूबर को बड़ी हिंसा हुई। इसके बाद हुई हिंसा की खबरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में व्यापक तौर पर छपी।’’

बाद में तथ्यों का पता लगाने वाला वकीलों का चार सदस्यीय दल त्रिपुरा गया और हिंसा से प्रभावित लोगों के साथ उनकी बातचीत के आधार पर उन्होंने ‘‘त्रिपुरा में मानवता पर हमला, मुस्लिमों की जान भी मायने रखती है’’ शीर्षक से तथ्यों का पता लगाने वाली एक रिपोर्ट सार्वजनिक की। इसके बाद प्राथमिकी दर्ज की गयी और याचिकाकर्ताओं से उनके पोस्ट हटाने और आपराधिक जांच में भाग लेने को कहा गया।

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Web Title: Tripura violence: Court directs police not to act coercively

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