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जंगलों बचाने आदिवासी ग्रामीणों ने की तीन सौ किलोमीटर की पदयात्रा

By भाषा | Updated: October 14, 2021 00:22 IST

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रायपुर, 13 अक्टूबर छत्तीसगढ़ के उत्तर क्षेत्र में मौजूद जंगलों को बचाने के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण 10 दिनों में तीन सौ किलोमीटर की पैदल यात्रा करके बुधवार को रायपुर पहुंचे। ग्रामीणों ने हसदेव अरण्य क्षेत्र की कोयला खनन परियोजनाओं को निरस्त करने की मांग की है।

हसदेव बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य आलोक शुक्ला ने बुधवार को यहां बताया कि हसदेव अरण्य क्षेत्र को बचाने और ग्राम सभाओं के अधिकारों के हनन के खिलाफ न्याय की गुहार लगाने के लिए लगभग 350 की संख्या में ग्रामीण तीन सौ किलोमीटर की पदयात्रा करके आज रायपुर पहुंचे। उन्होंने बताया कि इनमें ज्यादातर महिलाएं हैं।

शुक्ला ने बताया कि पिछले एक दशक से हसदेव अरण्य को बचाने के लिए वहां निवासरत गोंड, उरांव, पंडो और कंवर आदिवासी समुदाय संघर्षरत है। उन्होंने कहा कि यहां के ग्राम सभाओं ने क्षेत्र में कोयला खनन परियोजनाओं का विरोध किया है।

उन्होंने दावा करते हुए कहा, ‘‘क्षेत्र में खनन परियोजनाओं के आवंटन और स्वीकृति प्रक्रियाओं में गड़बड़ियों को उजागर करते हुए आदिवासियों और ग्रामीणों ने ‘हजारों पत्र’ लिखे तथा जिम्मेदार लोगों से मिलने का लगातार प्रयास किया। आदिवासी यहां लगातार अपने जल-जंगल-ज़मीन तथा उसपर निर्भर जीवन-यापन, आजीविका और संस्कृति को बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं लेकिन जन विरोध के बावजूद क्षेत्र में खनन परियोजनाओं को आगे बढ़ाया जा रहा है।’’

उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में, अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने तथा हसदेव-अरण्य क्षेत्र को बचाने के लिए बड़ी संख्या में क्षेत्र के आदिवासी ग्रामीणों ने दो अक्टूबर गांधी जंयती के दिन सरगुजा जिले के फतेपुर गांव से पदयात्रा की शुरूआत की थी जो 10 दिन बाद आज रायपुर पहुंची।

शुक्ला ने बताया कि राजधानी में पदयात्रा के पहुंचने के बाद राज्य भर से आए कई अन्य समाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों ने प्रदयात्रियों से मिलकर आंदोलन को समर्थन दिया।

उन्होंने बताया कि बृहस्पतिवार को हसदेव अरण्य से आए ग्रामवासी रायपुर के बूढ़ा-तालाब के करीब धरना प्रदर्शन और सम्मेलन आयोजित करेंगे। उन्होंने बताया कि ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल से मिलने का समय मांगा है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल अनुसूइया ऊईके ने पदयात्रियों के एक दल से संवाद का समय दिया है।

शुक्ला ने बताया कि छत्तीसगढ़ के सरगुजा और कोरबा जिले में स्थित हसदेव अरण्य वन क्षेत्र मध्य भारत के सबसे समृद्ध, जैव विविधता से परिपूर्ण वन-क्षेत्रों में गिना जाता है।

पद यात्रा के रायपुर पहुंचने के बाद राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और अंबिकापुर क्षेत्र के विधायक टी एस सिंहदेव ने पदयात्रियों से मुलकात की और उनकी मांगों का समर्थन किया।

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘देश में ऐसा कोई कानून नहीं है जो सरकार को ग्रामीणों से जमीन लेने की इजाजत देता है, अगर वे देना नहीं चाहते हैं।’’

उन्होंने कहा कि अगर ‘कोल बेयरिंग एक्ट’ या किसी अन्य कानून के माध्यम से, ‘‘आप कोयला खनन में लगे लोगों को अनैतिक लाभ पहुंचाना चाहते हैं, तो यह गलत है।’’

सिंह देव ने कहा, ‘‘इसे प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। ग्लोबल वार्मिंग (वैश्चिक तापमान बढ़ना) और प्रदूषण वैश्विक स्तर पर ऐसे स्तर पर पहुंच रहा है कि आप उस स्तर से वापस नहीं आ पाएंगे।’’

ग्रामीणों की मांगों का समर्थन करते हुए मंत्री ने कहा कि जब भी सरकार के स्तर पर बातचीत होगी, वह उनके रुख का समर्थन करेंगे।

'छत्तीसगढ़ के फेफड़े' के रूप में जाने जाने वाला हसदेव अरण्य वन मध्य भारत के सबसे बड़े अक्षुण्ण घने वन क्षेत्रों में से एक हैं जो 170,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है।

ये वन जैव विविधता में समृद्ध हैं (इनमें वनस्पतियों और जीवों की 450 से अधिक प्रजातियां हैं) और कुछ गंभीर रूप से लुप्तप्राय वन्यजीव प्रजातियों का आवास है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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