औरंगाबाद: कभी ब्रिटिश सैन्य अधिकारी से किया था प्रेम, अब उस महिला के मकबरे की होगी मरम्मत

By भाषा | Updated: May 26, 2020 15:40 IST2020-05-26T15:40:35+5:302020-05-26T15:40:35+5:30

औरंगाबाद की विश्व प्रसिद्ध अजंता की गुफाओं की पुन:खोज में ब्रिटिश सेना के अधिकारी मेजर रॉबर्ट गिल की सहायता करने वाली महिला पारो के मकबरे की मरम्मत प्रसिद्ध मराठी कवि एन डी महानोर करेंगे।

Tomb of woman who loves British military officer will be repaired | औरंगाबाद: कभी ब्रिटिश सैन्य अधिकारी से किया था प्रेम, अब उस महिला के मकबरे की होगी मरम्मत

साल 1844 में गुफाओं का पता लगाने के बाद, उन्होंने बौद्ध गुफा के चित्रों की व्यापक प्रतियां बनाईं। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsमहानोर ने लिखा कि लेनपुर बस्ती की एक स्थानीय आदिवासी लड़की पारो के प्रेम, साहचर्य और सहयोग के कारण ही गिल अपना काम पूरा कर पाए।अधिकारी ने अजंता में पारो के लिए एक छोटा स्मारक बनाया लेकिन जिस संगमरमर की पट्टिका पर पारो की भूमिका को उकेरा गया था उसे उपद्रवियों ने क्षतिग्रस्त कर दिया।

औरंगाबाद: प्रसिद्ध मराठी कवि एन डी महानोर ने कहा है कि वह औरंगाबाद की विश्व प्रसिद्ध अजंता की गुफाओं की पुन:खोज में ब्रिटिश सेना के अधिकारी मेजर रॉबर्ट गिल की सहायता करने वाली महिला पारो के मकबरे की मरम्मत का काम करेंगे। मेजर गिल (1804-1879) एक चित्रकार और फोटोग्राफर भी थे। उन्हें औरंगाबाद से 110 किलोमीटर दूर स्थित अजंता की गुफाओं के भित्ति चित्रों की प्रतियां बनाने के लिए जाना जाता था। 

साल 1844 में गुफाओं का पता लगाने के बाद, उन्होंने बौद्ध गुफा के चित्रों की व्यापक प्रतियां बनाईं। अजंता में पहली बौद्ध गुफा दूसरी या पहली सदी ईसापूर्व बनायी गई थी। उसके बाद गुप्त काल (पांचवी-छठी सदी ईस्वी) के दौरान गुफाओं के इस मूल समूह में कई अधिक समृद्ध शिल्प कला वाली गुफाएं बनायी गईं। इन गुफाओं में बौद्ध धार्मिक कला की सर्वोत्कृष्ट कृति मानी जाने वाली अजंता की चित्र भित्तियां और मूर्तियां काफी कलात्मक प्रभाव रखती हैं। महानोर ने गुफाओं से 10 किमी दूर अजंता गांव में पारो के मकबरे की संगमरमर की पट्टिका के क्षतिग्रस्त होने पर अपना गुस्सा और पीड़ा व्यक्त करते हुए अपनी फेसबुक पोस्ट में कहा, “पिछले पांच-छह साल में इस मकबरे की दुर्दशा देखकर मेरा मन विचलित हो उठता है।’’ 

महानोर ने लिखा कि लेनपुर बस्ती की एक स्थानीय आदिवासी लड़की पारो के प्रेम, साहचर्य और सहयोग के कारण ही गिल अपना काम पूरा कर पाए। अधिकारी ने अजंता में पारो के लिए एक छोटा स्मारक बनाया लेकिन जिस संगमरमर की पट्टिका पर पारो की भूमिका को उकेरा गया था उसे उपद्रवियों ने क्षतिग्रस्त कर दिया। 

पद्म श्री और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित महानोर ने कहा कि वह वहां पर एक नई संगमरमर की पट्टिका स्थापित करेंगे और पुलिस थाने के बगल में स्थित कब्र का जीर्णोद्धार भी करवाएंगे। मेजर गिल की मृत्यु 74 वर्ष की अवस्था में हो गई और उन्हें जलगांव जिले से सटे भुसावल में दफनाया गया था। पारो और ब्रिटिश सेना के अधिकारी मेजर गिल की प्रेम कहानी पर एक मराठी फिल्म, अजिंठा 2012 में रिलीज हुई थी जिसे बॉक्स ऑफिस पर मिलीजुली प्रतिक्रिया मिली। 

Web Title: Tomb of woman who loves British military officer will be repaired

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