विरोध प्रदर्शन की वर्षगांठ मनाने के लिए सिंघू बॉर्डर पर लड्डू बांटे गए, भांगड़ा हुआ

By भाषा | Updated: November 26, 2021 22:05 IST2021-11-26T22:05:04+5:302021-11-26T22:05:04+5:30

To celebrate the anniversary of the protest, laddus were distributed on the Singhu border, Bhangra happened | विरोध प्रदर्शन की वर्षगांठ मनाने के लिए सिंघू बॉर्डर पर लड्डू बांटे गए, भांगड़ा हुआ

विरोध प्रदर्शन की वर्षगांठ मनाने के लिए सिंघू बॉर्डर पर लड्डू बांटे गए, भांगड़ा हुआ

नयी दिल्ली, 26 नवंबर सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का एक साल पूरा होने के उपलक्ष्य में शुक्रवार को यहां सिंघू बॉर्डर पर उत्सव जैसा माहौल नजर आया। प्रदर्शन स्थल पर ट्रैक्टरों, पंजाबी और हरियाणवी गीत-संगीत के साथ प्रदर्शनकारी किसान बेहद खुश नजर आ रहे थे।

किसानों ने इस अवसर पर लड्डू-जलेबी बांटे, भांगड़ा किया और प्रतीकात्मक मार्च निकाला तथा रक्तदान शिविर का भी आयोजन किया।

रंग-बिरंगी पगड़ी पहने किसान लंबी दाढ़ी को संवारते और मुड़ी हुई मूंछों पर ताव लगाते नजर आए तथा उन्होंने ट्रैक्टरों पर नृत्य किया। उन्होंने मिठाइयां बांटी और एक-दूसरे को गले लगाया। यह अवसर किसी बड़े त्योहार की तरह लग रहा था।

इनमें से हजारों किसान पिछले कुछ दिनों में पहुंचे हैं, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा किए जाने के बाद गजब का उत्साह है। पिछले एक साल में प्रदर्शन स्थल एक अस्थायी नगर बन गया है, जहां सभी बुनियादी सुविधाएं मौजूद हैं।

ढोल नगाड़ों की थाप के बीच अपने-अपने किसान संगठनों के झंडे लिए बच्चे और बुजुर्ग, स्त्री और पुरुष "इंकलाब जिंदाबाद" तथा "मजदूर किसान एकता जिंदाबाद" के नारे लगाते नजर आए।

प्रदर्शन स्थल पर आज वैसी ही भीड़ दिखी जैसी कि आंदोलन के शुरू के दिनों में हुआ करती थी। इन लोगों में किसान परिवारों से संबंध रखने वाले व्यवसायी, वकील और शिक्षक भी शामिल थे।

पटियाला के सरेंदर सिंह (50) ने प्रदर्शन स्थल पर भीड़ का प्रबंधन करने के लिए छह महीने बिताए हैं। उन्होंने कहा, "यह एक विशेष दिन है। यह किसी त्योहार की तरह है। लंबे समय के बाद इतनी बड़ी संख्या में लोग यहां एकत्र हुए हैं।"

आज के विशेष दिन बनाए गए विशेष नाश्ते के बारे में उन्होंने कहा "आज जलेबी, पकौड़े, खीर और छोले पूड़ी बने हैं।"

दिल्ली-हरियाणा सीमा पर कृषि कानूनों का विरोध कर रहे पंजाब के बरनाला निवासी लखन सिंह (45) ने इस साल की शुरुआत में अपने पिता को खो दिया था।

लखन ने कहा, "अच्छा होता कि आज वह यहां होते। लेकिन मैं जानता हूं कि उनकी आत्मा को अब शांति मिलेगी।"

पटियाला के मावी गाँव निवासी भगवान सिंह (43) ने विरोध के सातवें महीने में अपने दोस्त नज़र सिंह (35) को खो दिया था, जिन्हें याद करते हुए वह फूट-फूटकर रो पड़े।

उन्होंने कहा, "मेरा दोस्त, अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला व्यक्ति था, जो अपने पीछे तीन छोटी बेटियों और बुजुर्ग माता-पिता को छोड़ गया है। हमें उसकी बहुत कमी खलती है।"

पिछले साल दिसंबर में सिंघू बॉर्डर पहुंचे कृपाल सिंह (57) ने अपने दाहिने पैर में चोट का निशान दिखाया, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह पुलिस की लाठी से लगा था।

उन्होंने कहा कि किसानों को रोकने के लिए तमाम बाधाएं उत्पन्न की गईं, लेकिन फिर भी किसान नहीं रुके।

लाउडस्पीकर पर किसान नेताओं और कार्यकर्ताओं ने लोगों से कहा कि अभी पूरी तरह संतुष्ट होने का वक्त नहीं आया है।

किसान नेता शिव कुमार कक्का ने आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले 732 किसानों के परिवारों को मुआवजा दिए जाने और एमएसपी कानून की मांग को दोहराते हुए कहा, "जीत का जश्न मनाएं, लेकिन इसी से संतुष्ट न हों। हम तब तक एक इंच भी नहीं हिलेंगे जब तक कि हमारी सभी मांगें पूरी नहीं हो जातीं।"

किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही कृषि कानूनों को रद्द कर दिया होता तो यहां 700 से ज्यादा लोग जिंदा होते।

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