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इस बार कई मायनों में अलग है अमरनाथ यात्रा, जानें क्या है खास

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: July 2, 2024 10:57 IST

उम्मीद तो यह है कि इस बार शिरकत करने वाले 8 लाख से अधिक हो सकते हैं क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देश की जनता को इस बार अमरनाथ यात्रा में शामिल होने को प्रेरित कर रहे हैं जिससे 3 हजार करोड़ की कमाई की उम्मीद रखी गई है।

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जम्मू: इस बार की अमरनाथ यात्रा कई मायनों में पूरी तरह से अलग है। हर वर्ष की भांति यात्रा पर आतंकी खतरा नए किस्म का है हवा के रास्ते ड्रोन भी आसमान पर छाए हुए हैं। परफ्यूम बमों, स्टिकी बमों और तरल बमों के खतरे के बीच इस बार चार गुणा अधिक सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गई है। 

उम्मीद तो यह है कि इस बार शिरकत करने वाले 8 लाख से अधिक हो सकते हैं क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देश की जनता को इस बार अमरनाथ यात्रा में शामिल होने को प्रेरित कर रहे हैं जिससे 3 हजार करोड़ की कमाई की उम्मीद रखी गई है। वैसे यात्रा को लेकर जो मुद्दे कई सालों से, खासकर 1995 की त्रासदी के बाद से उत्पन्न हुए हैं वे आज भी जिन्दा हैं। 

अगर अमरनाथ यात्रा को लेकर जो प्रचारित किया जा रहा है उसे गौर से देखें और पढ़ें-सुनें तो 8 लाख से अधिक को इस यात्रा में शामिल होने की खातिर न्यौता दिया गया है। आस भी है प्रशासन को कि इतने लोग अवश्य शामिल होंगें और उनमें से आधों को पर्यटक बना उनके बीच वह कश्मीर की खूबसूरती को बेच पाएगी। इसके लिए अमरनाथ यात्रा पैकेजों को भी बेचने का कार्य जारी है। 

यह बात अलग है कि सरकार के इन प्रयासों से कई पक्ष नाराज भी हैं। वे कहते हैंः‘कश्मीर की खूबसूरती की ओर लोगों को आकर्षित करने के और भी तरीके हो सकते हैं लेकिन अगर आप लोगों को अमरनाथ यात्रा के नाम पर न्यौता दे रहे हैं तो आप भयानक गलती कर रहे हैं। वर्ष 1995 की अमरनाथ त्रासदी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।’

सच्चाई यही है कि वर्ष 1995 की अमरनाथ त्रासदी से कोई सबक नहीं सीखा गया। तब प्राकृतिक आपदा से 300 अमरनाथ यात्री मौत का ग्रास बन गए थे। उसके बाद भी अक्सर प्राकृतिक आपदा कहर ढहाती रही। आतंकियों का कहर जो बरपता रहा सो अलग। अमरनाथ त्रासदी के उपरांत डा नीतिन सेन गुप्ता जांच आयोग की रपट को लागू कर दिया गया। 

यात्रा में हिस्सा लेने वालों की संख्या 75000 तक निर्धारित करने के साथ-साथ शामिल होने वालों की आयु सीमा भी तय कर दी गई। चिकित्सा प्रमाणपत्र के साथ ही पंजीकरण अनिवार्य कर दिया। मगर यह सब ढकोसले ही साबित हुए। और अगर यह कहा जाए कि अमरनाथ यात्रा और प्रकृति के कहर का साथ जन्म-जन्म का है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हर साल औसतन 100 के करीब श्रद्धालु प्राकृतिक हादसों में जानें कई सालों से गंवा रहे हैं। अमरनाथ यात्रा के अभी तक के ज्ञात इतिहास में दो बड़े हादसों में 400 श्रद्धालु प्रकृति के कोप का शिकार हो चुके हैं। यह बात अलग है कि अब प्रकृति का एक रूप ग्लोबल वार्मिंग के रूप में भी सामने आया था जिसका शिकार पिछले कई सालों से हिमलिंग भी हो रहा है। अमरनाथ यात्रा कब आरंभ हुई थी कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है। 

पर हादसों ने इसे कब से अपने चपेट में लिया है, वर्ष 1969 में बादल फटने के कारण 100 के करीब श्रद्धालुओं की मौत की जानकारी जरूर दस्तावेजों में दर्ज है। यह शायद पहला बड़ा प्राकृतिक हादसा था इसमें शामिल होने वालों के साथ। 

दूसरा हादसा था तो प्राकृतिक लेकिन इसके लिए इंसानों को अधिक जिम्मेदार इसलिए ठहराया जा सकता है क्योंकि यात्रा मार्ग के हालात और रास्ते के नाकाबिल इंतजामों के बावजूद एक लाख लोगों को जब वर्ष 1996 में यात्रा में इसलिए धकेला गया क्योंकि आतंकी ढांचे को ‘राष्ट्रीय एकता’ के रूप में एक जवाब देना था तो 300 श्रद्धालु मौत का ग्रास बन गए। 

प्रत्यक्ष तौर पर इस हादसे के लिए प्रकृति जिम्मेदार थी मगर अप्रत्यक्ष तौर पर  जिम्मेदार तत्कालीन राज्य सरकार थी जिसने अधनंगे लोगों को यात्रा में शामिल होने के लिए न्यौता दिया तो बर्फबारी ने उन्हें मौत का ग्रास बना दिया। अगर देखा जाए तो प्राकृतिक तौर पर मरने वालों का आंकड़ा यात्रा के दौरान प्रतिवर्ष 70 से 100 के बीच रहा है। 

इसमें प्रतिदिन बढ़ौतरी इसलिए हो रही है क्यांेकि अब यात्रा में शामिल होने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। पहले ये संख्या इसलिए कम थी क्योंकि यात्रा में इतने लोग शामिल नहीं होते थे जितने अब हो रहे हैं।

अगर मौजूद दस्तावेजी रिकार्ड देखें तो वर्ष 1987 में 50 हजार के करीब श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा में शामिल हुए थे और आतंकवाद के चरमोत्कर्ष के दिनों में वर्ष 1990 में यह संख्या 48 सौ तक सिमट गई थी। लेकिन उसके बाद जब इसे एकता और अखंडता की यात्रा के रूप में प्रचारित किया जाने लगा तो इसमें अब 3 से 5 लाख के करीब श्रद्धालु शामिल होने लगे हैं।

टॅग्स :अमरनाथ यात्राJammu
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