यह आपात स्थिति है, तत्काल कदम उठाया जाना जरूरी : न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण पर कहा

By भाषा | Updated: November 13, 2021 19:10 IST2021-11-13T19:10:22+5:302021-11-13T19:10:22+5:30

This is an emergency situation, urgent steps need to be taken: Court on air pollution in Delhi-NCR | यह आपात स्थिति है, तत्काल कदम उठाया जाना जरूरी : न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण पर कहा

यह आपात स्थिति है, तत्काल कदम उठाया जाना जरूरी : न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण पर कहा

नयी दिल्ली, 13 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी को शनिवार को ‘आपात’ स्थिति करार दिया और राष्ट्रीय राजधानी में लॉकडाउन लागू करने का सुझाव दिया।

न्यायालय ने केंद्र एवं दिल्ली सरकार से कहा कि वे वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए आपात कदम उठाएं।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि प्रदूषण की स्थिति इतनी खराब है कि लोग अपने घरों के भीतर मास्क पहन रहे हैं। इस पीठ में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल थे।

पीठ ने कहा कि वायु प्रदूषण के लिये सिर्फ पराली जलाए जाने को वजह बताना सही नहीं है, इसके लिए वाहनों से होने वाला उत्सर्जन, पटाखे और धूल जैसे अन्य कारक भी जिम्मेदार हैं।

न्यायालय ने इस बात पर चिंता जताई कि राष्ट्रीय राजधानी में स्कूल खुल गए हैं और बच्चों को गंभीर प्रदूषण के बीच बाहर निकलना पड़ रहा है।

पीठ ने कहा, ‘‘हर किसी में किसानों को जिम्मेदार ठहराने की धुन सवार है। सत्तर प्रतिशत। पहले दिल्ली के लोगों को नियंत्रित होने दीजिए। पटाखों, वाहनों से होने वाले प्रदूषण आदि को रोकने लिए प्रभावी तंत्र कहां है?’’

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम समझते हैं कि कुछ प्रतिशत (प्रदूषण) पराली जलाने की वजह से है। बाकी पटाखों, वाहनों, उद्योगों, धूल आदि का प्रदूषण है। आप हमें बताइए कि दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 500 से 200 पर कैसे लेकर आएंगे। दो दिन के लॉकडाउन जैसे कुछ तात्कालिक कदम उठाइए।’’

शीर्ष अदालत ने केंद्र से सोमवार तक जवाब देने को कहा है।

न्यायालय ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि राष्ट्रीय राजधानी में स्कूल खुल गए हैं और प्रशासन से कहा कि वाहनों को रोकने या लॉकडाउन लगाने जैसे कदम तत्काल उठाए जाएं।

पीठ ने केंद्र सरकार की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘‘आप देखिए कि कितनी खराब स्थिति है कि लोग घरों के भीतर भी मास्क पहन रहे हैं। क्या कदम उठाए गए हैं?’’

मेहता ने कहा, ‘‘हर कोई मौजूदा वैधानिक आयोग के सहयोग से अपनी-अपनी लड़ाई लड़ रहा है।’’

उन्होंने कहा कि पंजाब में पराली जलाई जा रही है और राज्य को इसे लेकर कुछ करना होगा।

मेहता ने कहा, ‘‘राज्य सरकारों को निर्देश दिया गया है कि खेतों में पराली जलाए जाने पर पर्यावरण मुआवजा लगाया जाए।"

उन्होंने स्पष्ट किया कि वह यह कतई नहीं कह रहे हैं कि वायु प्रदूषण के लिए केवल किसान जिम्मेदार हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘हमें इससे कोई मतलब नहीं है कि यह राज्य सरकार को करना है या केंद्र सरकार को। प्रश्न यह है कि प्रदूषण को नियंत्रित कैसे करना है और कौन जिम्मेदार है? तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। स्थिति को दो-तीन दिन में काबू कैसे किया जा सकता है?अल्पकालिक स्थिति क्या है?’’

उसने कहा कि जहां तक किसानों की बात है, तो पराली रोकने के लिए आदेशों का क्रियान्वयन समस्या नहीं है, बल्कि उन्हें प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। उसने कहा, ‘‘यदि आप प्रोत्साहन देते हैं, तो कोई किसान अन्य तरीका क्यों नहीं अपनाएगा? आप इन चीजों को लागू नहीं कर सकते।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि हालांकि पराली प्रबंधन की मशीनें उपलब्ध हैं, लेकिन गरीब किसान इन मशीनों का खर्च वहन नहीं कर सकते। उसने सवाल किया कि केंद्र और राज्य सरकारें ये मशीन उपलब्ध क्यों नहीं करा सकतीं?

न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने कहा, ‘‘क्या आपका सहयोग कर रहे अधिकारी सब्सिडी के बाद मशीन की वास्तविक कीमत बता सकते हैं? क्या किसान इसका खर्च वहन कर सकते हैं? मैं किसान हूं और मैं जानता हूं। प्रधान न्यायाधीश भी किसान परिवार से संबंध रखते हैं, वह भी यह जानते हैं और मेरे भाई (न्यायमूर्ति चंद्रचूड़़) भी इस बात से अवगत हैं।’’

मेहता ने पीठ को बताया कि मशीन 80 प्रतिशत सब्सिडी दर पर उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली के 300 किलोमीटर के दायरे में थर्मल संयंत्रों में धान की पराली के उपयोग के लिए वैधानिक निर्देश जारी किए गए हैं।

पीठ ने जानना चाहा कि क्या जमीनी स्तर पर खेतों से पराली एकत्र करने और उसे संयंत्रों तक पहुंचाने के लिए कोई तंत्र है। मेहता ने कहा कि सरकार इसके लिए एजेंसियां की मदद लेने की योजना बना रही है और इसके लिए निविदाएं भी जारी की गई हैं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि कटाई के बाद अगले मौसम के लिए खेत तैयार करना किसानों की बाध्यता होती है और इसके लिए एक त्वरित तंत्र बनाया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत पर्यावरण कार्यकर्ता आदित्य दुबे और कानून के छात्र अमन बंका द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने छोटे और सीमांत किसानों को मुफ्त में पराली हटाने वाली मशीन उपलब्ध कराने का निर्देश देने की मांग की है।

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