UP Ki Taja Khabar: अपने तीन साल के बच्चे को आखिरी बार गले नहीं लगा पाया 'कोरोना वॉरियर'

By भाषा | Updated: May 6, 2020 20:29 IST2020-05-06T20:29:16+5:302020-05-06T20:29:16+5:30

लोकबंधु अस्पताल में कार्यरत 27 वर्षीय 'कोरोना योद्धा' मनीष कुमार अपने तीन साल के बेटे को आखिरी बार गले नहीं लगा पाए। उनके तीन साल के बेटे हर्षित को सांस लेने में तकलीफ और पेट में दर्द हो रहा था, जिसके बाद उसे किंग जॉर्ज मेडिकल यूनीवर्सिटी ले जहा गया, जहां उसकी रात करीब दो बजे मृत्यु हो गई।

This 'corona warrior' from Lucknow was not able to embrace his three-year-old child for the last time | UP Ki Taja Khabar: अपने तीन साल के बच्चे को आखिरी बार गले नहीं लगा पाया 'कोरोना वॉरियर'

मनीष ने बताया, ''जब मुझे घर से फोन आया तो मैं बेचैन हो गया। मैं फौरन अस्पताल से जा भी नहीं सकता था। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsयह हृदयविदारक किस्सा लोकबंधु अस्पताल में तैनात 27 वर्षीय 'कोरोना योद्धा' मनीष कुमार का है।  तैनात एक बाप कोरोना संक्रमण फैलने के डर के कारण अपने मृत पुत्र को आखिरी बार गले तक नहीं लगा सका।

लखनऊ: कोविड-19 (COVID-19) महामारी में एक पिता की मजबूरी की यह दास्तां किसी की भी आंखों में आंसू लाने के लिये काफी है। राजधानी लखनऊ के एक अस्पताल में वार्ड ब्वॉय के तौर पर तैनात एक बाप कोरोना संक्रमण फैलने के डर के कारण अपने मृत पुत्र को आखिरी बार गले तक नहीं लगा सका। यह हृदयविदारक किस्सा लोकबंधु अस्पताल में तैनात 27 वर्षीय 'कोरोना योद्धा' मनीष कुमार का है। 

लोकबंधु अस्पताल को लेवल-2 कोरोना अस्पताल बनाया गया है। शनिवार की रात जब मनीष पृथक वार्ड में मरीजों की देखभाल कर रहे थे, तभी उन्हें घर से फोन आया कि उनके तीन साल के बेटे हर्षित को सांस लेने में तकलीफ और पेट में दर्द हो रहा है। मनीष ने बताया, ''जब मुझे घर से फोन आया तो मैं बेचैन हो गया। मैं फौरन अस्पताल से जा भी नहीं सकता था। परिवार के लोग मेरे बेटे को किंग जॉर्ज मेडिकल यूनीवर्सिटी (केजीएमयू) ले गये। मुझे दिलासा देने के लिये वे व्हाट्सऐप पर हर्षित की फोटो भेजते रहे। रात करीब दो बजे वह दुनिया को छोड़ गया।'' 

मनीष यह बात बताते हुए फफक कर रोने लगे। उन्होंने बताया, ''मैं अपने बेटे के पास जाना चाहता था लेकिन मैंने अपने साथी कर्मियों को नहीं बताया क्योंकि मैं अपने मरीजों को उनके हाल पर छोड़कर नहीं जाना चाहता था। मगर घर से बार-बार कॉल आने और मेरी हालत देखकर मेरे साथियों ने मुझसे घर जाकर बेटे को आखिरी बार देख आने को कहा।'' मनीष सभी जरूरी एहतियात बरतते हुए किसी तरह केजीएमयू पहुंचे, जहां उनके मासूम बच्चे का शव रखा था। 

हालांकि वह अस्पताल के अंदर नहीं गये और अपने बेजान बेटे को बाहर लाये जाने का इंतजार करते रहे। मनीष ने बताया, ''जब मेरे परिवार के लोग घर ले जाने के लिये हर्षित को बाहर ला रहे थे, तब मैंने उसे दूर से देखा। जैसे मेरा दिल चकनाचूर हो गया। मैं अपनी मोटरसाइकिल से घर तक शव वाहन के पीछे-पीछे चला। मैं अपने बेटे को गले लगाना चाहता था। मैं अपनी भावनाएं रोक नहीं पा रहा था, मैं बस अपने बच्चे को आखिरी बार गले लगाना चाहता था। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह अब इस दुनिया में नहीं है।'' 

दुख का पहाड़ टूटने के बाद भी मनीष अपने घर के अंदर नहीं गये, क्योंकि उन्हें डर था कि कोविड अस्पताल से लौटने की वजह से उनके कारण परिवार के किसी सदस्य को कोरोना संक्रमण हो सकता है। ग़म में डूबे मनीष ने बताया, ''मैं अपने घर के गेट के पास बरामदे में बैठा रहा। अगले दिन हर्षित का अंतिम संस्कार किया गया। मैं अपने बेटे को छू तक नहीं सका, क्योंकि अंत्येष्टि में बड़ी संख्या में लोग शामिल थे और मेरे छूने से संक्रमण हो सकता था। मेरे वरिष्ठजन ने भी किसी तरह के संक्रमण को टालने की सलाह दी थी।'' 

उन्होंने कहा कि अब उनके पास अपने बेटे की बस यादें ही रह गयी हैं। मोबाइल फोन में कुछ वीडियो और तस्वीरें ही अपने प्यारे बच्चे की स्मृतियां बन गयी हैं। इस सवाल पर कि अब वह अपनी ड्यूटी फिर कब शुरू करेंगे, मनीष ने कहा ''बहुत जल्द।'' उन्होंने कहा, ''इस वक्त मैं सुरक्षित दूरी अपनाकर अपनी पत्नी को हिम्मत बंधाने की कोशिश कर रहा हूं। मैं घर के अंदर नहीं बल्कि बरामदे में ही वक्त गुजार रहा हूं। मैं एक-दो दिन में अपनी ड्यूटी शुरू करूंगा। मुझे मरीजों की सेवा करके कुछ सान्त्वना मिलेगी।'' 

Web Title: This 'corona warrior' from Lucknow was not able to embrace his three-year-old child for the last time

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