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समान नागरिक संहिता पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, चाहे वे किसी भी धर्म के क्यों न हो: पूर्व न्यायाधीश

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 23, 2019 18:21 IST

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी सी पंत ने कहा कि शिक्षा के माध्यम से समान संहिता की जरूरत के बारे में जागरूकता फैलाना समान नागरिक संहिता को स्वीकार करने में लोगों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाने में एक अहम भूमिका निभाएगा।

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ठळक मुद्देउन्होंने इसके लिये यह दलील दी कि विशेष विवाह अधिनियम या ब्रिटिश शासन द्वारा लागू किये गये उन कानूनों पर कोई आपत्ति नहीं।अंग्रेजों (ब्रिटिश शासन) द्वारा बनाये गये कानून या विशेष विवाह अधिनियम या किशोर न्याय अधिनियम के प्रति कोई आपत्ति नहीं है।

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी सी पंत ने शनिवार को कहा कि भारत के लिये ‘‘समान नागरिक संहिता’’ पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

उन्होंने इसके लिये यह दलील दी कि विशेष विवाह अधिनियम या ब्रिटिश शासन द्वारा लागू किये गये उन कानूनों पर कोई आपत्ति नहीं है, जो हर किसी पर लागू होते हैं चाहे वे किसी भी धर्म के क्यों न हो। पंत ने कहा कि शिक्षा के माध्यम से समान संहिता की जरूरत के बारे में जागरूकता फैलाना समान नागरिक संहिता को स्वीकार करने में लोगों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाने में एक अहम भूमिका निभाएगा।

उन्होंने कहा कि लोगों को अंग्रेजों (ब्रिटिश शासन) द्वारा बनाये गये कानून या विशेष विवाह अधिनियम या किशोर न्याय अधिनियम के प्रति कोई आपत्ति नहीं है। इसमें 2006 में संशोधन के बाद मुस्लिम दंपति को किसी बच्चे को गोद लेने का अधिकार दिया गया, जबकि उनके पर्सनल लॉ में यह प्रतिबंधित था।

उन्होंने ‘भारतीय नागरिक संहिता-सभी भारतीयों के लिये समान नागरिक कानून’ विषय पर आयोजित एक सेमिनार में यह कहा। इसका आयोजन भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय के नेतृत्व वाले ‘भारतीय मतदाता संगठन’ ने किया था। पटना उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आई ए अंसारी और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेड यू खान ने भी कार्यक्रम में अपने विचार रखे।

कार्यक्रम में अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल अमन लेखी भी शरीक हुए। न्यायमूर्ति अंसारी ने कहा कि नागरिक कानूनों में एकरूपता एक स्वागत योग्य कदम है, लोगों को इसकी पड़ताल करनी चाहिए कि उनके खुद के पर्सनल लॉ में क्या बदलाव किये जा सकते हैं--जैसे कि उत्तराधिकार में मुस्लिम महिलाओं का हिस्सा मौजूदा एक तिहाई से बढ़ा कर आधा करना। उन्होंने कहा, ‘‘बदलाव का हमेशा ही प्रतिरोध होगा लेकिन हमारे कानून में जो कुछ बदल सकता है उसे बदला जाना चाहिए।’’

न्यायमूर्ति खान ने कहा कि समान नागरिक संहिता एक स्वागत योग्य और नवोन्मेषी अवधारणा है तथा लैंगिक न्याय, समानता और महिलाओं की गरिमा के लिये इसकी जरूरत है। उन्होंने कहा कि समान संहिता सभी को न्याय मुहैया करने में मदद करेगी।

वहीं, लेखी ने कहा कि संविधान में समान नागरिक संहिता बनाने के लिये एक प्रावधान है। उन्होंने यह भी कहा कि यह आशंका करने की कोई जरूरत नहीं है कि समान नागरिक संहिता किसी खास धार्मिक समूह पर लागू होगी। उन्होंने कहा कि यह समान रूप से सब पर लागू होगी।

उपाध्याय के संगठन ने समान नागरिक संहिता की जरूरत पर चर्चा के लिये वहां उपस्थित लोगों के हस्ताक्षर के लिये उनके बीच एक संकल्प पत्र भी वितरित किया, जिसे प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा जाएगा। उपाध्याय अधिवक्ता भी हैं और उन्होंने इस साल मई में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर समान नागरिक संहिता बनाने के लिये केंद्र सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया था। बाद में, इस तरह की अन्य याचिकाएं भी दायर की गई। उच्च न्यायालय नौ दिसंबर को इस विषय में दलीलें सुनने वाला है।

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