राज्यसभा ने 28 प्रतिशत समय कानून बनाने में, 40 प्रतिशत समय लोक महत्व के मुद्दों पर चर्चा करने में बिताया
By भाषा | Updated: April 25, 2020 21:32 IST2020-04-25T21:32:26+5:302020-04-25T21:32:26+5:30
राज्यसभा के सत्र के दौरान समय के इस्तेमाल पर किए गए विश्लेषण से पता चला कि सदन ने अपने कामकाज का 40.20 प्रतिशत वक्त लोक महत्व के विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श करने में लगाया।

राज्यसभा (फाइल फोटो)
नयी दिल्ली: राज्यसभा में कामकाज का 40 प्रतिशत समय लोक महत्व के मुद्दों पर विचार-विमर्श करने में, 32 प्रतिशत समय कार्यपालिका की जवाबदेही तय करने पर और 28 प्रतिशत समय कानून बनाने में इस्तेमाल हुआ है।
राज्यसभा में इस्तेमाल हुए समय के बारे में किए गए एक विश्लेषण में यह तथ्य उजागर हुआ है। राज्यसभा सचिवालय द्वारा किए गए अपनी तरह के पहले विश्लेषण से यह भी पता चला है कि उच्च सदन में हर साल 340 घंटे काम हुआ है। वर्ष 1978-2018 के दौरान सदन की उत्पादकता 77 प्रतिशत थी और 23 प्रतिशत समय काम का नुकसान हुआ।
राज्यसभा के सत्र के दौरान समय के इस्तेमाल पर किए गए विश्लेषण से पता चला कि सदन ने अपने कामकाज का 40.20 प्रतिशत वक्त लोक महत्व के विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श करने में लगाया। इसके बाद, 32.22 प्रतिशत समय कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने में और 27.57 प्रतिशत समय कानून बनाए जाने में इस्तेमाल हुआ । वर्ष 1978 से आंकड़े उपलब्ध हैं। इस 41 साल की अवधि में राज्यसभा सचिवालय द्वारा किए गए विश्लेषण से उच्च सदन के कामकाज का रुझान सामने आया है।
राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने सदन के कामकाज के बारे में विवरण मांगा था जिसके बाद यह विश्लेषण सामने आया। राज्यसभा में चर्चा के समय लोक महत्व के मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव, बजट पर चर्चा, अल्पकालिक चर्चा, शून्यकाल, उठाए जाने वाले विशेष मुद्दे और मंत्रालयों के कामकाज पर चर्चा भी इसी समय अवधि में है। वर्ष 1978-2018 के दौरान राज्यसभा के कामकाज के कुल समय में 7.08 प्रतिशत हिस्सा बजट पर सामान्य चर्चा में खर्च हुआ।
शून्यकाल और उठाए गए विशेष मुद्दों ने सदन का करीब 10 प्रतिशत समय लिया । जिस अवधि के लिए सर्वेक्षण हुआ, उस दौरान सदन में 3,429 घंटे चर्चा करने और सरकारी विधेयकों को पारित करने में इस्तेमाल हुआ तथा सदस्यों के निजी विधेयकों पर चर्चा में 489 घंटे लगे। विश्लेषण में कहा गया है कि 1978-1988 के दौरान हर साल 500 घंटे से ज्यादा कामकाज हुआ। नायडू इन आंकड़ों के जरिए लोकसभा और दुनिया की अग्रणी संसदों के साथ राज्यसभा की तुलना करना चाहते हैं ।