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रमज़ान का महीना ऑक्सीजन, अस्पताल में बिस्तर की व्यवस्था करने में गुजरा

By भाषा | Updated: May 12, 2021 16:49 IST

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(आसिम कमाल)

नयी दिल्ली, 12 मई रमज़ान पर कोरोना वायरस का असर इस बार पिछले साल से ज्यादा गहरा रहा और इस पवित्र महीने में लोग अपने प्रियजनों के लिए ऑक्सीजन तथा अस्पतालों में बिस्तर की व्यवस्था करने में लगे रहे। वहीं, अनेक लोगों के प्रियजन इस महीने में महामारी के कारण उन्हें छोड़कर चले गए।

वर्ष 2020 के रमज़ान की तरह ही इस बार भी मस्जिदों में बड़ी जमातें (बड़ी संख्या में एक साथ नमाज़ पढ़ना) नहीं हुईं, ‘इफ्तार’ (रोज़ा तोड़ना) की दावतें भी नहीं हुईं और देर रात तक खरीदारी का दौर भी नहीं चला।

कहा गया था कि 2020 का रमज़ान ऐसा था जो किसी ने अपनी जिंदगी में नहीं देखा, लेकिन 2021 का यह पवित्र महीना पिछले साल की तुलना में लोगों के लिए कहीं ज्यादा दर्दनाक यादें छोड़कर जा रहा है क्योंकि अप्रैल-मई में कोविड-19 की दूसरी लहर ने देश के बड़े हिस्से में कहर बरपाया है।

देश में करीब हर परिवार का कोई सदस्य इस महामारी से संक्रमित हुआ है या इस महामारी की वजह से उनके दोस्त, परिवार के सदस्य की जान गई है और अनेक अन्य लोग जानलेवा वायरस से जूझ रहे हैं।

गाज़ियाबाद निवासी वकील तनवीर परवेज़ ने कहा, “ रमज़ान परिवार और दोस्तों के साथ वक्त बिताने का महीना होता है, लेकिन इस साल मैंने अपने कई करीबी लोगों को खोया है और मेरे परिवार में कई लोग इस वायरस से संक्रमित हुए हैं। यह एक मुश्किल महीना रहा और मैं बस यही दुआ करता रहा कि अल्लाह इस जानलेवा वायरस को हमारी जिंदगियों से दूर कर दे।”

रमज़ान में लोग परिवार के साथ बैठकर साथ में इफ्तार करते हैं लेकिन किसने सोचा था कि घर में इफ्तार करने की जगह लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर, ऑक्सीजन सांद्रकों, अस्पतालों में बिस्तरों और प्लाज्मा की व्यवस्था करने के लिए या फिर कब्रिस्तान में किसी दोस्त या परिवार के सदस्य के शव को दफनाने को लेकर भागदौड़ करनी पड़ेगी।

उत्तर प्रदेश के नगीना जिले में रहनेवाले किसान काजी राहत मसूद ने कहा, “ इस बार रमजान का महीना स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने, रिश्तेदारों और दोस्तों की मौत, उन्हें तदफीन (दफन करना) करने में ही गुजरा।”

हालांकि कई स्थानों पर रमज़ान के दौरान मस्जिदें खुलीं, लेकिन वहां नमाज़ कोविड रोधी नियमों और पबांदियों का पालन करते हुए हुई। कई इमामों ने घरों में ही नमाज़ अदा करने की अपील की।

ईद की विशेष नमाज़ भी घरों में ही पढ़ने की अपील की गई है। कई शहरों में ईद की नमाज़ ईदगाह में नहीं होगी। हालांकि स्थानीय मस्जिदों में एक-दूसरे से दूरी के नियमों का पालन करते हुए हो सकती है।

देश में ईद-उल-फित्र का त्योहार 13 या 14 मई को पड़ सकता है और यह चांद दिखने पर निर्भर करता है।

मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने पीटीआई-भाषा से कहा, “ मैं सभी मुस्लिमों से अपील करता हूं कि ईद की नमाज़ कोविड संबंधी सभी प्रोटोकॉल और दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए अदा करें। बड़ी संख्या में जमा न हों और बेहतर यही होगा कि घरों में नमाज़ अदा करें।”

दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी और फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ्ती मुकर्रम अहमद ने अलग-अलग वीडियो जारी कर घरों में ही नमाज़ अदा करने की अपील की है।

सोशल मीडिया पर भी लोगों से कोविड प्रोटोकॉल के तहत ईद मनाने की अपील की गई है और ‘ईद एट होम’ (घर पर ईद) तथा ‘ से नो टू ईद शॉपिंग’ (ईद की खरीदारी को ना कहना) जैसे हैशटैग ट्विटर पर चलाए गए हैं।

मदनी ने कहा कि मुसलमानों ने रमज़ान में बहुत सब्र से काम किया है और उनके कई करीबियों की मौत हुई तो कई के परिजन इस वायरस से संक्रमित होकर अस्पताल में भर्ती हैं।

संक्रमित होने की वजह लोगों के रोज़े छूटे भी हैं।

द्वारका में रहने वाले साद मजीद ने कहा कि वह हर साल पूरे रोज़ रखते थे लेकिन इस बार रमज़ान के पहले ही हफ्ते में वायरस से संक्रमित हो गए जिस वजह से वह रोज़े नहीं रख पाए।

यह महीना बीमारी के साथ साथ कई लोगों के लिए आर्थिक परेशानियां लेकर भी आया।

घरेलू सहायिका का काम करने वाली और छह बच्चों की मां शाहीन बानो ने कहा कि जिन घरों में वह काम करती थीं, उन्होंने संक्रमण के मामले बढ़ने की वजह से उन्हें काम पर आने को मना कर दिया जिस वजह से उन्हें सिर्फ पानी पीकर रोज़ा रखना पड़ रहा है और उन्हें यह भी नहीं पता कि इफ्तार में उनके पास खाने को कुछ होगा या नहीं।

लॉकडाउन के कारण ईद पर खरीदारी नहीं होने की वजह से छोटे और मंझोले दुकानदारों को भी परेशानी का सामना करना पड़ा है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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