सरकार ने वार्ता का नया प्रस्ताव भेजा, यूनियनों ने कहा-कानून वापस लेने की बात एजेंडे में शामिल हो

By भाषा | Updated: December 24, 2020 23:49 IST2020-12-24T23:49:52+5:302020-12-24T23:49:52+5:30

The government sent a new proposal for talks, the unions said that the matter of withdrawal of the law should be included in the agenda | सरकार ने वार्ता का नया प्रस्ताव भेजा, यूनियनों ने कहा-कानून वापस लेने की बात एजेंडे में शामिल हो

सरकार ने वार्ता का नया प्रस्ताव भेजा, यूनियनों ने कहा-कानून वापस लेने की बात एजेंडे में शामिल हो

नयी दिल्ली, 24 दिसंबर केन्द्र सरकार ने बृहस्पतिवार को प्रदर्शनकारी किसानों को रुकी हुई वार्ता फिर से शुरू करने का प्रस्ताव भेजकर उनसे नए कृषि कानूनों को लेकर बने गतिरोध को खत्म करने के लिये अपनी सुविधा के अनुसार कोई तिथि तय करने के लिये कहा। इधर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शुक्रवार को एक कार्यक्रम के दौरान किसानों को संबोधित करेंगे।

हालांकि आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने आरोप लगाया कि वार्ता के लिए सरकार का नया पत्र कुछ और नहीं, बल्कि किसानों के बारे में एक दुष्प्रचार है ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि वे बातचीत को इच्छुक नहीं हैं। साथ ही, किसान संगठनों ने सरकार से वार्ता बहाल करने के लिए एजेंडे में तीन नए कृषि कानूनों को रद्द किए जाने को भी शामिल करने को कहा।

केंद्र के पत्र पर चर्चा करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा के शुक्रवार को बैठक करने और इसका औपचारिक जवाब देने की संभावना है। दिल्ली के तीन प्रवेश स्थानों--सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बार्डर-- पर पिछले 27 दिनों से इस मोर्चे के बैनर तले 40 किसान संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं।

कृषि मंत्रालय ने नया प्रस्ताव भेजने के साथ ही स्पष्ट किया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित किसी भी नयी मांग को एजेंडे में शामिल करना ‘‘तार्किक’’ नहीं होगा क्योंकि यह नए कृषि कानूनों के दायरे से परे है।

हालांकि यूनियनों ने कहा कि विवादित कानूनों को रद्द करने की मांग से एमएसपी को अलग नहीं रखा जा सकता। उन्होंने कहा कि एमएसपी की कानूनी गारंटी देना उनके आंदोलन का महत्वपूर्ण बिंदू है।

मंत्रालय ने कहा कि वह प्रदर्शनकारी किसानों के मुद्दों का तार्किक हल खोजने के लिये तैयार है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को एक बटन दबाकर नौ करोड़ से अधिक लाभार्थी किसान परिवारों के खातों में 18 हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि हस्तांतरित करेंगे। यह धनराशि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) के तहत वित्तीय लाभ की अगली किस्त के रूप में जारी की जाएगी।

प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुसार वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान मोदी छह राज्‍यों के किसानों से संवाद भी करेंगे तथा किसान सम्‍मान निधि और किसानों के कल्‍याण के लिए सरकार द्वारा की गई अन्‍य पहल के बारे में अपने अनुभव साझा करेंगे।

इस बीच, कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ हमालवर रुख अपनाते हुए कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिये राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से संसद का संयुक्त सत्र बुलाने का आग्रह किया है। पार्टी नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि भारत में लोकतंत्र केवल ''काल्पनिक'' रह गया है।

गांधी ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर उन्हें एक ज्ञापन सौंपा। बताया जा रहा है कि इस पर 2 करोड़ किसानों ने हस्ताक्षर कर कानून निरस्त करने की मांग की है। गांधी ने कहा कि इससे किसानों और मजदूरों को फायदा नहीं होगा। केन्द्र ने यह कहते हुए कानून वापस लेने की मांग खारिज कर दी कि सुधारों से किसानों को फायदा होगा।

भाजपा ने राहुल गांधी को चुनौती दी कि वह इस बारे में खुली बहस कर लें कि कांग्रेस ने सत्ता में रहने के दौरान किसानों के लिए क्या किया और मोदी सरकार ने क्या किया है।

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने किसानों के हितों की अनदेखी की तथा अनाज के सस्ते दाम सुनिश्चित कर उन्हें गरीब बनाए रखने का काम किया, लेकिन मोदी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से किसानों को उचित दाम उपलब्ध कराने के लिए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को क्रियान्वित कर उन्हें सशक्त बनाया है।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने 40 किसान नेताओं को लिखे तीन पन्नों के पत्र में कहा, ‘‘मैं आपसे फिर आग्रह करता हूं कि प्रदर्शन को समाप्त कराने के लिए सरकार सभी मुद्दों पर खुले मन से और अच्छे इरादे से चर्चा करती रही है तथा ऐसा करती रहेगी। कृपया (अगले दौर की वार्ता के लिए) तारीख और समय बताएं।’’

सरकार और किसान संगठनों के बीच पिछले पांच दौर की वार्ता का अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है।

दिल्ली की सीमाओं पर लगभग एक महीने से प्रदर्शन कर रहे किसान तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग पर अड़े हैं।

अग्रवाल ने किसान यूनियनों के नेताओं से कहा कि वे उन अन्य मुद्दों का भी ब्योरा दें जिनपर वे चर्चा करना चाहते हैं। वार्ता मंत्री स्तर पर नयी दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में होगी।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुद्दे पर अग्रवाल ने कहा कि कृषि कानूनों का इससे कोई लेना-देना नहीं है और न ही इसका कृषि उत्पादों को तय दर पर खरीदने पर कोई असर पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि यूनियनों को प्रत्येक चर्चा में यह बात कही जाती रही है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि सरकार एमएसपी पर लिखित आश्वासन देने को तैयार है।

अग्रवाल ने कहा, ‘‘एमएसपी से संबंधित किसी भी नयी मांग को, जो कृषि कानूनों के दायरे से परे है, वार्ता में शामिल करना तार्किक नहीं है। जैसा कि पूर्व में सूचित किया जा चुका है, सरकार किसान यूनियनों द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार है।’’

उनका पत्र संयुक्त किसान मोर्चे के 23 दिसंबर के उस पत्र के जवाब में आया है जिसमें कहा गया है कि यदि सरकार संशोधन संबंधी खारिज किए जा चुके बेकार के प्रस्तावों को दोहराने की जगह लिखित में कोई ठोस प्रस्ताव लाती है तो किसान संगठन वार्ता के लिए तैयार हैं।

सरकार ने अपने नए पत्र में संकल्प व्यक्त किया है कि वह किसान यूनियनों द्वारा उठाए गए मुद्दों का ‘‘तार्किक समाधान’’ खोजने के लिए तैयार है।

अग्रवाल ने कहा कि सरकार के लिए वार्ता के सभी दरवाजे खोलकर रखना महत्वपूर्ण है। किसान संगठनों की बात सुनना सरकार का दायित्व है तथा किसान और सरकार इससे इनकार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चे के तहत आने वाले किसान संगठनों से सरकार खुले मन से कई दौर की वार्ता कर चुकी है।

अग्रवाल ने आग्रह किया कि किसान संगठन अपनी सुविधा के हिसाब से अगले दौर की वार्ता के लिए तारीख और समय बताएं।

नए कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों किसान लगभग एक महीने से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर किसान पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से हैं।

उन्होंने कहा कि सरकार ने 20 दिसंबर के अपने पत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि वह किसान यूनियनों द्वारा मौखिक और लिखित रूप से उठाए गए सभी मुद्दों पर चर्चा करने को तैयार है।

मोर्चे के वरिष्ठ नेता शिवकुमार कक्का ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘सरकार हमारी मांगों को लेकर गंभीर नहीं है और वह रोज पत्र लिख रही है। नया पत्र कुछ और नहीं, बल्कि सरकार द्वारा हमारे खिलाफ किया जा रहा एक दुष्प्रचार है, ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि हम बातचीत के इच्छुक नहीं हैं। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘सरकार को नए सिरे से वार्ता के लिए तीन कृषि कानूनों को रद्द किए जाने (की मांग) को एजेंडे में शामिल करना चाहिए।’’

कक्का ने कहा कि एमएसपी की कानूनी गारंटी किसानों की मांग का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे सरकार द्वारा नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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