अधर में लटका कोरोना वायरस के कारण अनाथ हुए बच्चों का भविष्य, मदद के लिए कर रहे संघर्ष

By भाषा | Updated: June 13, 2021 14:22 IST2021-06-13T13:22:52+5:302021-06-13T14:22:21+5:30

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने बताया कि महामारी के कारण 3,621 बच्चों के माता-पिता दोनों की मौत हो गई हैं। 26,000 से अधिक ऐसे बच्चे हैं, जिनके माता या पिता में से किसी एक की मौत हो चुकी है।

The future of the children orphaned due to corona virus hangs in the balance, struggling for help | अधर में लटका कोरोना वायरस के कारण अनाथ हुए बच्चों का भविष्य, मदद के लिए कर रहे संघर्ष

प्रतीकात्मक तस्वीर। (फाइल फोटो)

Highlightsदिल्ली में ऐसे भी कई बच्चे हैं, जिनके माता-पिता दोनों की मौत कोरोना वायरस के कारण हो गई है। बच्चों को दीर्घकालिक सहायता देने के लिए राज्य सरकार के अधिकारियों के संपर्क में हैं।अपनों को खो चुके कई लोग अपने जीवन को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं।

कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के कारण अपने प्रियजन को खोने वाले लोगों की पीड़ा की तुलना नहीं की जा सकती, लेकिन इस बीमारी ने जिन बच्चों के सिर से उनके माता-पिता का साया छीन लिया, उनके दु:ख और परेशानियों की थाह लेना असंभव है। माता-पिता के न रहने के कारण ये बच्चे ना केवल भावनात्मक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, बल्कि वित्तीय परेशानियों से भी जूझ रहे हैं, जिसके कारण उनके भविष्य पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं।

10 वर्षीय दीपिका के पिता की करीब एक महीने पहले कोविड-19 के कारण मौत हो गई थी और अब वह अपने जीवन को पटरी पर लाने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसकी मां कल्पना सिन्हा ने कहा, ‘‘चीजें पहले की तरह सामान्य कभी नहीं हो पाएंगी।’’

कल्पना के 57 वर्षीय पति एक हिंदी प्रकाशन घर के संपादक थे और परिवार में कमाने वाले एकमात्र व्यक्ति थे। दीपिका के सामने अब चुनौती यह है कि भले ही उसकी देखभाल करने के लिए उसके पास मां है, लेकिन उसके पास अब कोई वित्तीय सहयोग नहीं है।कल्पना ने कहा कि मैं हमेशा गृहिणी रही हूं। मैं अचानक से बाहर काम करना कैसे शुरू करूं? सच कहूं, तो मैं यह भी नहीं जानती कि मैं क्या कर सकती हूं और मुझे यदि नौकरी मिल जाती है, तो भी मैं जब काम पर जाऊंगी, तो अपनी बेटी को कहां रखूंगी। हम ऐसे समय में जी रहे हैं, जब किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता।’’

दिल्ली सरकार ने स्कूलों को उन बच्चों की फीस माफ करने का निर्देश दिया है, जिनके माता-पिता की कोविड-19 के कारण मौत हो गई है। कल्पना ने सरकार की इस योजना के तहत अपनी बेटी के स्कूल में नि:शुल्क शिक्षा के लिए आवेदन किया है, लेकिन उसे अभी तक कोई उत्तर नहीं मिला है।इसी प्रकार, उत्तम नगर में रहने वाले गौरव (13) और रोहन (छह) के पिता ई-रिक्शा चालक थे और परिवार में कमाने वाले एकमात्र व्यक्ति थे, लेकिन उनकी भी संक्रमण के कारण मौत हो गई। लॉकडाउन के कारण पिता की आय कम हो जाने के कारण इन दोनों बच्चों के लिए जीवन पहले भी आसान नहीं था, लेकिन पिता की मौत के बाद उनकी परेशानियां और भी बढ़ गई हैं।

गौरव और रोहन की मां मधु गुप्ता ने कहा, ‘‘मेरा छोटा बेटा हमेशा अपने पिता के बारे में पूछता रहता है, लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं है। मेरा छोटा बेटा अपने पिता के बहुत करीब था... बड़ा बेटा उदासीन सा हो गया है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या-क्या संभालूं- अपने बच्चों को, उनके भविष्य को या खुद को। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा और मुझे डर लग रहा है।’’

दिल्ली में ऐसे भी कई बच्चे हैं, जिनके माता-पिता दोनों की मौत कोरोना वायरस के कारण हो गई और अब उनके पास न तो भावनात्मक सहयोग है और न ही आर्थिक। ऐसे ही तीन भाई-बहनों ने मई के पहले सप्ताह में अपने माता-पिता दोनों को खो दिया था। इन बच्चों की आयु नौ साल, 11 साल और 13 साल है। इन बच्चों का जीवन और भी कठिन तब हो गया, जब किराया नहीं दे पाने के कारण उनके मकान मालिक ने उन्हें घर से चले जाने को कह दिया। ऐसे में उनका मामा, जो वेल्डिंग का काम करता है, उनकी देखभाल के लिए आगे आया।

बच्चों के मामा मोहम्मद आरिफ की पत्नी भी सात महीने की गर्भवती है। उसने कहा कि वे मेरी बहन के बच्चे हैं और मैं उनसे प्यार करता हूं। मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूं कि उन्हें शिक्षा मिले और उनका भविष्य उज्ज्वल हो, लेकिन मेरी आय बहुत सीमित है। मुझे मदद की आवश्यकता है। आरिफ जैसे लोगों और कल्पना एवं मधु जैसी मांओं की मदद करने के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व वाला गैर सरकारी संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ (बीबीए) ऐसे बच्चों की पहचान कर रहा है, जो महामारी के कारण अनाथ हो गए हैं।

कल्पना ने कहा कि उसने बीबीए के एक स्वयंसेवक से संपर्क किया, जिसने उसे मदद का भरोसा दिलाया है।इस महीने की शुरुआत में, संगठन ने राष्ट्रीय राजधानी में महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों की संख्या के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय की सहायता भी मांगी थी।

बीबीए के निदेशक मनीष शर्मा ने कहा, ‘‘हमारे स्वयंसेवक ऐसे बच्चों का पता लगाने और उन्हें भोजन एवं आश्रय देकर राहत देने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि हमारे संगठन की भी सीमाएं हैं। हम इन बच्चों को दीर्घकालिक सहायता देने के लिए राज्य सरकार के अधिकारियों के संपर्क में हैं। इन बच्चों की देखभाल करना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है।

Web Title: The future of the children orphaned due to corona virus hangs in the balance, struggling for help

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