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अदालत ने क्लर्क को पाटकर की अर्जी के रिकार्ड के साथ तलब किया

By भाषा | Updated: March 7, 2021 18:32 IST

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नयी दिल्ली, सात मार्च दिल्ली की एक अदालत ने मेधा पाटकर द्वारा दायर एक रिट याचिका की मूल प्रति के साथ दिल्ली उच्च न्यायालय के रिकॉर्ड रूम के एक अधिकारी को तलब किया है, जिसमें उन्होंने केवीआईसी के अध्यक्ष वी के सक्सेना द्वारा दायर मानहानि मामले को खारिज करने का अनुरोध किया है।

सक्सेना ने यह कहते हुए अदालत में एक अर्जी दायर की थी कि नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता ने उनके खिलाफ एक अपमानजनक प्रेस बयान जारी करने से इनकार करने वाला एक गलत बयान जारी किया है। उन्होंने अपनी बात के समर्थन में उच्च न्यायालय से एक दस्तावेज भी दिया, जिसमें पाटकर ने बयान जारी करने की "न्यायिक स्वीकारोक्ति" की थी।

उन्होंने दलील दी कि जब पाटकर कार्यवाही पर स्थगन हासिल करने में विफल रहीं, तो उन्होंने इसे 9 जनवरी, 2019 को वापस ले लिया था।

17 फरवरी, 2020 को दायर अर्जी में खादी ग्रामोद्योग (केवीआईसी) प्रमुख ने आरोप लगाया कि पाटकर लगातार इस बात से इनकार करती रहीं कि उन्होंने कभी भी इस तरह का कोई प्रेस नोट जारी किया है, लेकिन उच्च न्यायालय में एक अन्य मामले में कार्यवाही रद्द करने के अनुरोध वाली अपनी याचिका में उन्होंने वह जारी करने की ‘‘न्यायिक स्वीकारोक्ति’’ की थी।

अर्जी में कहा गया है कि याचिका की अग्रिम प्रति भी सक्सेना को उनके अधिवक्ता ने भेजी थी।

इसमें कहा गया है कि उक्त आपराधिक याचिका में, ‘‘तारीखों और घटनाओं’’ की सूची में पाटकर ने उल्लेख किया कि 24 नवंबर, 2000 को उनके द्वारा एक प्रेस नोट जारी किया गया था, जिसे बाद में एक समाचार पोर्टल में प्रकाशित किया गया था।

मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अनिमेष कुमार ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा, ‘‘यह शिकायतकर्ता (वी के सक्सेना) का मामला है कि 26 नवंबर, 2018 को आरोपी (मेधा पाटकर) ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की और अदालल में लंबित कार्यवाही को रद्द करने का अनुरोध किया।’’

उन्होंने कहा, ‘शिकायतकर्ता के वकील ने कहा है कि आरोपी ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दायर उक्त याचिका में शपथ के तहत कुछ न्यायिक स्वीकारोक्ति की हैं, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि उन्होंने शिकायतकर्ता के खिलाफ टिप्पणी की थी।’’

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यद्यपि उक्त याचिका को दिल्ली उच्च न्यायालय की अनुमति से आरोपी द्वारा वापस ले लिया गया है, लेकिन यह सवाल कि क्या उक्त टिप्पणी वर्तमान मामले में प्रासंगिक हैं या नहीं है, सुनवायी का विषय है।’’

न्यायाधीश ने हाल में पारित अपने आदेश में कहा, ‘‘इसलिए, उपरोक्त के मद्देनजर मेरा यह विचार है कि 'मेधा पाटकर बनाम दिल्ली राज्य और अन्य के संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड' को वर्तमान मामले में तलब किया जाए। इसलिए दिल्ली उच्च न्यायालय के रिकॉर्ड रूम के संबंधित क्लर्क को समन जारी किया जाए कि वह 19 मार्च 2021 को मूल केस फाइल लायें।’’

पाटकर और सक्सेना के बीच 2000 से एक कानूनी लड़ाई जारी है जब पाटकर ने उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए उनके खिलाफ मामला दायर किया था।

सक्सेना उस समय अहमदाबाद स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे।

अब खादी ग्रामोद्योग आयोग के प्रमुख सक्सेना ने एक टीवी चैनल पर उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और उनके खिलाफ मानहानिकारक बयान जारी करने के लिए पाटकर के खिलाफ दो मामले दायर किए हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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