न्यायालय ने आपदा पर कानून के तहत मुआवजा प्रावधान विवेकाधीन होने संबंधी केन्द्र के रूख को खारिज किया

By भाषा | Updated: June 30, 2021 22:43 IST2021-06-30T22:43:34+5:302021-06-30T22:43:34+5:30

The court rejected the stand of the Center regarding the discretionary provision of compensation under the law on disaster | न्यायालय ने आपदा पर कानून के तहत मुआवजा प्रावधान विवेकाधीन होने संबंधी केन्द्र के रूख को खारिज किया

न्यायालय ने आपदा पर कानून के तहत मुआवजा प्रावधान विवेकाधीन होने संबंधी केन्द्र के रूख को खारिज किया

नयी दिल्ली, 30 जून उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केन्द्र के इस रुख को खारिज कर दिया कि आपदा प्रबंधन अधिनियम (डीएमए) के एक प्रावधान के तहत मृत्यु की स्थिति में अनुग्रह राशि मुआवजे का भुगतान करने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) का दायित्व विवेकाधीन है और यह निर्देशिका नहीं है।

न्यायालय ने केंद्र की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि आपदा पीड़ितों को दी जाने वाली अनुग्रह राशि के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 12 में अंग्रेजी के शब्द ‘शैल’ (जाएगा) की जगह ‘मे’ (सकता है) पढ़ा जाए।

डीएमए, 2005 की धारा 12 राहत के न्यूनतम मानकों के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करती है और एक भाग कहता है कि राष्ट्रीय प्राधिकरण आपदा से प्रभावित व्यक्तियों को राहत के न्यूनतम मानकों के लिए दिशा-निर्देशों की सिफारिश करेगा, ‘‘जिसमें जीवन के नुकसान के लिए अनुग्रह राशि शामिल होगी और घरों को नुकसान के लिए तथा आजीविका के साधनों की बहाली के लिए सहायता शामिल होगी और अन्य आवश्यक राहत भी हो सकती है।’’

केन्द्र ने दलील दी थी कि आपदा पीड़ितों को दी जाने वाली अनुग्रह राशि के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 12 में अंग्रेजी के शब्द ‘शैल’ (जाएगा) की जगह ‘मे’ (सकता है) पढ़ा जाए और इसे ‘‘विवेकाधीन’’ के रूप में पढ़ा जाना चाहिए और इसे ‘‘अनिवार्य’’ के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए और प्रावधान की शाब्दिक व्याख्या नहीं होनी चाहिए क्योंकि कानून के इरादे को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने अधिनियम के प्रावधानों का विश्लेषण किया और कहा कि इसे ‘‘आपदाओं की रोकथाम और शमन प्रभावों के लिए और किसी भी आपदा की स्थिति के लिए समग्र, समन्वित और त्वरित प्रतिक्रिया के लिए अधिनियमित किया गया है।’’

उच्चतम न्यायालय का फैसला वकील रीपक कंसल और गौरव कुमार बंसल द्वारा दाखिल दो अलग-अलग याचिकाओं पर आया है, जिसमें केंद्र और राज्यों को अधिनियम के तहत प्रावधान के अनुसार कोरोना वायरस पीड़ितों के परिवारों को चार लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

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Web Title: The court rejected the stand of the Center regarding the discretionary provision of compensation under the law on disaster

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