शीर्ष न्यायालय ने पॉक्सो कानून के तहत आरोपी को बरी करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाई

By भाषा | Updated: January 27, 2021 19:31 IST2021-01-27T19:31:47+5:302021-01-27T19:31:47+5:30

The apex court stayed the Bombay High Court order acquitting the accused under the POCSO Act | शीर्ष न्यायालय ने पॉक्सो कानून के तहत आरोपी को बरी करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाई

शीर्ष न्यायालय ने पॉक्सो कानून के तहत आरोपी को बरी करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाई

नयी दिल्ली, 27 जनवरी उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसके जरिये ‘यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण’ (पॉक्सो) कानून के तहत एक व्यक्ति को यह कहते हुए बरी कर दिया गया था कि बच्ची के शरीर को उसके कपड़ों के ऊपर से स्पर्श करने को यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना तथा न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल द्वारा यह मामला पेश किये जाने के बाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी।

शीर्ष न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भी जारी किया और अटार्नी जनरल को बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के 19 जनवरी के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने की अनुमति दी।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘जो कुछ कहा गया है, उसके मद्देनजर हम अटार्नी जनरल को उक्त फैसले के खिलाफ एक उपयुक्त याचिका दायर करने की अनुमति देते हैं। इस बीच, हम फौजदारी अपील में आरोपी को निर्दोष करार दिये जाने पर रोक लगाते हैं...पॉक्सो कानून की धारा आठ के तहत अपराध के संदर्भ में।’’

वेणुगोपाल ने पीठ के समक्ष यह विषय पेश करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय का फैसला ‘‘अभूतपूर्व’’ है और इसके एक ‘‘खतरनाक उदाहरण’’ बनने की संभावना है।

उच्च न्यायालय के फैसले में यह भी कहा गया था कि नाबालिग के शरीर को कपड़ों के ऊपर से गलत इरादे से स्पर्श करने को यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता, जैसा कि पॉक्सो कानून के तहत परिभाषित किया गया है।

गौरतलब है कि 19 जनवरी को उच्च न्यायालय ने कहा था कि चूंकि व्यक्ति ने बच्ची के शरीर को उसके कपड़े हटाये बिना स्पर्श किया था, इसलिए उसे यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता। इसके बजाय यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 के तहत महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने का अपराध बनता है।

उच्च न्यायालय ने एक सत्र अदालत के आदेश में संशोधन किया था, जिसमें 39 वर्षीय व्यक्ति को 12 साल की लड़की का यौन उत्पीड़न करने को लेकर तीन साल कैद की सजा सुनाई गई थी।

इस बीच, वकीलों की एक संस्था ‘यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ ने शीर्ष न्यायालय में एक याचिका दायर कर उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है।

अधिवक्ता मंजू जेटली के मार्फत दायर की गई याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में जो टिप्पणी की है, उसका समाज और लोगों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।

उल्लेखनीय है कि आईपीसी की धारा 354 के तहत न्यूनतम एक साल की कैद की सजा का प्रावधान है, जबकि पॉक्सो कानून के तहत यौन उत्पीड़न के मामले में तीन साल की कैद की सजा का प्रावधान है।

अदालत में अभियोजन की दलीलों और बच्ची के बयान के मुताबिक, दिसंबर 2016 में यह घटना हुई थी , जब नागपुर में सतीश नाम का आरोपी पीड़िता को कुछ खाने के लिए देने के बहाने अपने घर ले गया था।

उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘अपराध (यौन उत्पीड़न) के लिए सजा की कठोर प्रकृति (पॉक्सो के तहत) पर विचार करते हुए इस अदालत का मानना है कि कहीं अधिक ठोस सबूत और गंभीर आरोपों की जरूरत है।

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Web Title: The apex court stayed the Bombay High Court order acquitting the accused under the POCSO Act

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