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मोदी राज में केंद्र व राज्यों के संबंधों में बढ़ी तल्खी, एनआईसी की बैठक बुलाएं प्रधानमंत्री : मोइली

By भाषा | Updated: May 30, 2021 22:04 IST

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(ब्रजेन्द्र नाथ सिंह)

नयी दिल्ली, 30 मई पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली ने रविवार को कहा कि भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के शासन में केंद्र व राज्यों के संबंधों में तल्खी बढ़ी है और देश में सहकारी संघवाद को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय एकता परिषद (एनआईसी) की बैठक बुलाने के साथ ही योजना आयोग को फिर से बहाल करना चाहिए।

पीटीआई-भाषा को दिए एक साक्षात्कार में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने मोदी पर यह कहते हुए निशाना साधा कि लोकतंत्र में एक व्यक्ति की सोच कभी ‘‘राष्ट्रीय सोच’’ नहीं हो सकती बल्कि ‘‘राष्ट्रीय सोच’’ ही प्रधानमंत्री की सोच होनी चाहिए।

प्रधानमंत्री और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच चक्रवात ‘यास’ के सिलसिले में बुलाई गए एक बैठक को लेकर हुए विवाद के बाद राज्य के मुख्य सचिव को केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली वापस बुलाए जाने के फैसले की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को ‘‘बड़े भाई’’ (वरिष्ठता थोपने) की तरह काम ना करते हुए राज्यों के साथ सहयोग की भावना के साथ काम करना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘सिर्फ गलतफहमी की वजह से मुख्य सचिव को वापस बुला लेना अच्छा नहीं है। यह संघीय व्यवस्था पर हमला है। प्रधानमंत्री को भी मुख्यमंत्री में गलतियां ढूंढने के बजाय उनका सहयोग करना चाहिए।’’

यह पूछे जाने पर कि विपक्ष के तमाम आरोपों के इतर भाजपा का दावा है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में सहकारी संघवाद मजबूत हुआ है, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ने दावा किया कि इसके उलट केंद्र और राज्यों के संबंधों में तनाव ही नहीं, बल्कि बेहद तल्खी भी आई है।

उन्होंने कहा, ‘‘आपदा के समय कांग्रेस और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने कभी राजनीति नहीं की, लेकिन आज हर चीज का राजनीतिकरण कर दिया जाता है। प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार को आत्ममंथन करना होगा। उन्हें ‘बड़े भाई’ के रूप में नहीं बल्कि राज्यों के साथ मिलकर काम करना चाहिए।’’

कांग्रेस नेता ने कहा कि महामारी और आपदा के समय केंद्र एवं राज्यों के बीच तल्खी जनता के स्वास्थ्य के लिए कतई उचित नहीं है।

उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल हो या कर्नाटक हो या फिर तिरुवनंतपुरम, सभी भारतीय हैं और सभी के प्रति भारत सरकार का कर्तव्य है और केंद्र सरकार किसी के साथ भेदभाव नहीं कर सकती।

उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि जिन राज्यों में विपक्षी दलों का शासन है, वहां के नागरिक कोई विदेशी तो नहीं हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘भेदभाव करना खतरनाक चलन है और यह देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है। हम हर चीज का राजनीतिकरण करने लगते हैं। प्रधानमंत्री अपनी चुनावी रैलियों में ‘डबल (दोहरे) इंजन’ की सरकार की बात करते हैं। उनका यह कहना भी खतरनाक है। यदि कोई राज्य विपक्ष शासित है तो क्या वह ‘सिंगल (एकल) इंजन’ है और भाजपा शासित राज्य है तो क्या वह डबल इंजन है। संघीय व्यवस्था में यह कैसे हो सकता है। यह कहना ही आपके भेदभाव को दर्शाता है।’’

मोइली ने कहा कि यह उचित समय है कि सरकार एनआईसी की बैठक बुलाए। आज की तारीख में ऐसी कोई संस्था नहीं है जो पूरे देश की भावना को प्रदर्शित करती हो।

उन्होंने कहा, ‘‘मतभेदों के चलते इसे भुला दिया गया है, जबकि इसकी बैठकें राज्यों को एकता के सूत्र में बांधती थीं। सहकारी संघवाद को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय एकता परिषद सर्वश्रेष्ठ मंच है। इसे फिर से बहाल करना होगा।’’

एनआईसी का गठन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय एकता सम्मेलन के उपरांत वर्ष 1961 में किया गया था। इसका उद्देश्य साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद और संकीर्णता की बुराइयों से निपटना था। एनआईसी की पहली बैठक वर्ष 1962 में हुई थी।

मोइली ने नीति आयोग पर भी सवाल उठाए और कहा कि यह महज केंद्र सरकार का एक विभाग बनकर रह गया है, जिसके पास ना ही कोई स्वायत्तता है और ना ही स्वतंत्रता।

उन्होंने कहा, ‘‘योजना आयोग वित्तीय एकता के लिए था, तो राजनीतिक एकता के लिए राष्ट्रीय एकता परिषद। योजना आयोग स्वायत्त था, उसके पास शक्तियां थीं, लेकिन इसकी जगह नीति आयोग ने ले ली है, जो केंद्र सरकार का महज एक विभाग बनकर रह गया है। इसकी कोई स्वायत्तता नहीं है और ना ही स्वतंत्रता है। योजना आयोग सर्वश्रेष्ठ था और उसने देश की सेवा की है। इसे पुनर्जीवित करना होगा।’’

वरिष्ठ नेता ने कहा कि प्रशासनिक सुधार आयोग के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने आपदा प्रबंधन सहित विभिन्न पहलुओं पर 15 सुधारों की रिपोर्ट दी थी, लेकिन इस सरकार ने उसे भुला दिया है।

उन्होंने कहा, ‘‘वर्ष 2014 के बाद बनी मोदी सरकार का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि संस्थागत मामलों में उसकी याददाश्त कमजोर है जबकि कांगेस ने हमेशा इसे अपने जेहन में रखा। देश को राजनीतिक याददाश्त नहीं, संस्थागत याददाश्त (इंस्टीट्यूशनल मेमोरी) की जरूरत है। उसे यह याद दिलाना पड़ेगा।’’

उन्होंने कहा कि विभिन्न सुधारों पर जो 15 रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई हैं, उन्हें लागू करना होगा।

उन्होंने दावा किया, ‘‘आज अराजकता और भ्रम की स्थिति है क्योंकि एक व्यक्ति हर चीज पर नियंत्रण करना चाहता है। एक व्यक्ति की सोच कभी राष्ट्रीय सोच नहीं हो सकती, बल्कि राष्ट्रीय सोच ही प्रधानमंत्री की सोच होनी चाहिए। कुल मिलाकर राज्यों को पर्याप्त स्वायत्तता देनी होगी। इसे छीना नहीं जा सकता।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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