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कोविड-19 रोधी विदेशी टीकों के ‘क्लिनिकल ट्रायल’ की अनुमति के अनुरोध वाली याचिका को प्रतिवेदन के तौर पर लें: अदालत

By भाषा | Updated: May 18, 2021 14:38 IST

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नयी दिल्ली, 18 मई दिल्ली उच्च न्यायालय ने कोविड-19 रोधी विदेशी टीकों के ‘क्लिनिकल ट्रायल’ की अनुमति देने और टीकाकरण में पहली खुराक ले चुके लोगों को प्राथमिकता देने के लिये दायर याचिका पर सुनवाई से मंगलवार को इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि प्राधिकारी इस याचिका को प्रतिवेदन के रूप में ले सकते हैं।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की एक पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता में जिन राहतों की मांग की गई है उसके लिए नीतियों का मसौदा तैयार करने की जरूरत है। यह अदालत के अधिकारक्षेत्र में नहीं आता, जिसे केवल असाधारण मामलों में नीतिगत निर्णय लेने पर विचार करेगा।

अदालत ने कहा कि वकील नाजिया प्रवीण की याचिका में टीकाकरण में पहली खुराक ले चुके लोगों को प्राथमिकता देने की मांग की गई है और ऐसी रियायत ‘‘केवल मांगने से ही नहीं दी जा सकती।’’

पीठ ने कहा, ‘‘ दिल्ली में यह चलन बन गया है कि कभी भी लोग अदालत में याचिका दायर कर टीकाकरण में प्राथमिकता मांगने लगते हैं।’’

उसने कहा, ‘‘ अगर सभी को प्राथमिकता दी जाए, तो सवाल यह है कि फिर बाद में टीका किसी लगेगा। सरकार की अपनी खुद की भी प्राथमिकताएं हैं।’’

वहीं, एक मई से शुरू हुए टीकाकरण अभियान के संबंध में ऑर्डर दी गई खुराक की स्थिति के संबंध में जानकारी मांगने पर पीठ ने कहा कि ऐसी जानकारी सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जरिए हासिल की जा सकती है। इसके लिए रिट याचिका या जनहित याचिका दायर करना सही तरीका नहीं है।

वकील संजीव सागर के जरिए दायर की कई याचिका में टीके के वितरण के संबंध में नीति बनाने और कोविड-19 रोधी विदेशी टीकों के ‘क्लिनिकल ट्रायल’ की अनुमति देने के अनुरोध पर पीठ ने कहा कि नीतिगत निर्णय क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा लिए जाते हैं क्योंकि यह एक जटिल काम है।

पीठ ने कहा, ‘‘ अदालत इसका मसौदा तैयार नहीं कर सकती। हम किसी नीति के लिए मसौदा तैयार करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं करेंगे।’’

अदालत ने कहा कि याचिका में कुछ ऐसे मामले उठाए गए हैं, जिसके संबंध में पहले ही उच्चतम न्यायालय में सुनवाई चल रही है और यह भी इस पर सुनवाई ना करने का एक और कारण है।

अदालत ने कहा, ‘‘ हमें याचिका पर सुनवाई का कोई कारण नजर नहीं आता। संबंधित अधिकारी इसे एक प्रतिवेदन के रूप में ले सकते है और इस पर मामले के तथ्यों के लिए लागू कानून, नियमों, विनियमों और नीति के तहत फैसला लें।’’

उसने कहा, ‘‘ इस टिप्पणी के साथ याचिका का निपटारा किया जाता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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