दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक नहीं लगाएगा सुप्रीम कोर्ट, कहा- संसद का काम है कानून बनाना
By भारती द्विवेदी | Updated: September 25, 2018 11:58 IST2018-09-25T11:24:51+5:302018-09-25T11:58:26+5:30
राजनीतिक पार्टियां चुनाव से पहले अपनी-अपनी वेबसाइट पर उम्मीदवारों की सारी जानकारी डाले, जिसमें उम्मीदवारों का आपराधिक रिकॉर्ड का ब्यौरा देना जरूरी है।

दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक नहीं लगाएगा सुप्रीम कोर्ट, कहा- संसद का काम है कानून बनाना
नई दिल्ली, 25 सितंबर: दागी नेताओं के चुनाव लड़ने से रोक वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। कोर्ट ने फैसला सुनता ही हुए दागी नेताओं के चुनाव लड़ने से रोक पर इनकार कर दिया है। इस याचिका की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरिमन, जस्टिस एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की। इस पर सुनवाई करके पांच जजों की पीठ ने अगस्त में ही अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पांच जजों की पीठ ने अपना फैसला सुनता हुए कहा है कि राजनीति का अपराधीकरण खतरनाक है। दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए चार्जशीट काफी नहीं है। सिर्फ चार्जशीट के आधार पर उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता है।
संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की जिम्मेदारी है कि वो देखें की व्यवस्था भ्रष्टाचार का शिकार न बने। एक दिन आएगा कि अपराधी राजनीति में प्रवेश नहीं कर पाएगा। हालांकि कानून बना संसद का काम है। साथ ही राजनीतिक पार्टियां चुनाव से पहले अपनी-अपनी वेबसाइट पर उम्मीदवारों की सारी जानकारी डाले, जिसमें उम्मीदवारों का आपराधिक रिकॉर्ड का ब्यौरा देना जरूरी है।
Parliament must ensure that criminals must not come to politics. No bar on criminal antecedents of political leaders, it's Parliament to make laws: CJI while reading out verdict on PIL seeking to disqualify candidates contesting polls after court frames charges against them. pic.twitter.com/aOT4L0PdmR
— ANI (@ANI) September 25, 2018
गौरतलब है कि वकील अश्विनी उपाध्याय ने दागी नेताओं के खिलाफ एक याचिका दायर किया था। अपने याचिका में अश्विनी ने कहा था कि साल 2014 में 34 फीसदी सांसद ऐसे संसद पहुंचे जिनका आपराधिक रिकॉर्ड है। उन्होंने कोर्ट से ये मांगा की थी कि जिन लोगों के खिलाफ आरोप तय हो गया हो और पांच साल या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान हो तो उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाए। साल 2016 के मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था।