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संसद व विधानसभाओं में जन प्रतिनिधियों के उद्दण्ड व्यवहार का उच्चतम न्यायालय ने लिया कड़ा संज्ञान

By भाषा | Updated: July 5, 2021 18:25 IST

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नयी दिल्ली, पांच जुलाई उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि उसने संसद और विधानसभाओं में जन प्रतिनिधियों के उद्दण्ड व्यवहार का कड़ा संज्ञान लिया है क्योंकि इस तरह की घटनाएं दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं और इस तरह के आचरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

न्यायालय ने 2015 में केरल विधानसभा में हुए हंगामे के सिलसिले में दर्ज एक आपराधिक मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। यह घटना राज्य में पिछली कांग्रेस नीत यूडीएफ शासन के दौरान हुई थी।

न्यायालय ने कहा कि यह अवश्य सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सदन में शिष्टाचार बना रहे।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने केरल विधानसभा की घटना का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘प्रथम दृष्टया, हमें इस तरह के व्यवहार का कड़ा संज्ञान लेना होगा। इस तरह का व्यवहार अस्वीकार्य है। ’’

पीठ ने कहा, ‘‘हमें अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए कि कुछ शिष्टाचार बना रहे। इस तरह की घटनाएं दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। संसद में भी, यह हो रहा है और इसके खिलाफ सख्ती बरतनी होगी।’’

इस मामले में केरल सरकार ने एक याचिका के जरिए उच्च न्यायालय के 12 मार्च के आदेश को चुनौती दी है। इसमें राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी गई थी, जो राज्य विधानसभा के अंदर 2015 में हुए हंगामे से जुड़े एक आपराधिक मामले को निरस्त करने के लिए थी।

उल्लेखनीय है कि केरल विधानसभा में 13 मार्च 2015 को अभूतपूर्व दृश्य देखने को मिला था। उस वक्त विपक्ष में मौजूद एलडीएफ विधायकों ने तत्कालीन वित्त मंत्री के. एम. मणि को बजट पेश करने से रोकने की कोशिश की थी, जो बार रिश्वत कांड में आरोपों का सामना कर रहे थे।

सोमवार को वीडियो कांफ्रेंस के जरिए हुई सुनवाई में, शीर्ष अदालत ने केरल विधानसभा की इस घटना का हवाला दिया और कहा कि विधायकों ने बजट पेश करने में बाधा डाली तथा इस तरह का व्यवहार स्वीकार नहीं किया जा सकता।

पीठ ने कहा, ‘‘हम विधायकों के इस तरह के व्यवहार को स्वीकार नहीं कर सकते, जिन्होंने सदन में माइक फेंकी थी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था। ’’

न्यायालय ने विषय की अगली सुनवाई 15 जुलाई के लिए निर्धारित कर दी।

पीठ ने कहा , ‘‘वे विधायक थे और वे लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। वे लोगों को क्या संदेश दे रहे हैं। ’’

न्यायालय ने कहा कि इस तरह के अचारण का कड़ा संज्ञान लेना होगा, अन्यथा इस तरह के व्यवहार पर कोई रोक-टोक नहीं रह जाएगी। पीठ ने कहा कि इस तरह के व्यवहार करने में संलिप्त रहने वालों को सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम के तहत मुकदमे का सामना करना चाहिए।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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