सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर में पाबंदी के दौरान सार्वजनिक वाहनों के परिचालन पर केंद्र सरकार से मांगी रिपोर्ट

By भाषा | Updated: November 6, 2019 20:38 IST2019-11-06T20:38:58+5:302019-11-06T20:38:58+5:30

इस मामले में सुनवाई के दौरान गुलाम नबी आजाज की ओर से कपिल सिब्बल ने दलील देते हुए कहा कि 1990 से ही सीमा पार से आतंकवाद जारी है और सरकार को शरारती लोगों का पता लगाने में हो रही कठिनाई का मतलब यह नहीं है कि प्राधिकारी सारे नागरिकों के मौलिक अधिकार ही खत्म कर देंगे।

Supreme Court seeks report from central government on operation of public vehicles during ban in Jammu and Kashmir | सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर में पाबंदी के दौरान सार्वजनिक वाहनों के परिचालन पर केंद्र सरकार से मांगी रिपोर्ट

फाइल फोटो

Highlightsगुलाम नबी आजाद के आरोप के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगी रिपोर्टआजाद की ओर से कपिल सिब्बल ने पेश की दलील, गुरुवार को भी होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केन्द्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन को बृहस्पतिवार को यह बताने के लिये कहा कि संविधान के अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान रद्द किये जाने के बाद लगायी गयी पाबंदियों के दौरान बस और ट्रक जैसे कितने सार्वजनिक वाहन चले।

न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने यह निर्देश उस समय दिया जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने आरोप लगाया कि जम्मू कश्मीर में सार्वजनिक परिवहन वाहनों को परिचालन की इजाजत नहीं दी गयी और यह आवागमन और अपनी पसंद का व्यवसाय करने की आजादी जैसे मौलिक अधिकारों का हनन है।

आजाद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि किसान अपने सेब को अन्यत्र नहीं ले जा सके और बीमार लोगों को इलाज के लिये अस्पताल नहीं ले जाया जा सका। पीठ ने इस पर सवाल किया, ‘‘क्या वहां सार्वजनिक परिवहन पर प्रतिबंध है? आप किसी भी बस या ट्रक को परिचालन की इजाजत नहीं दे रहे हैं? कल सवेरे, आपका पहला काम यह बताना है कि पिछले दिनों कितनी बसों, सार्वजनिक परिवहन और ट्रकों का परिचालन हुआ।'' 

सिब्बल ने कहा कि हम सभी आतंकवाद के मुद्दे पर सरकार का समर्थन करते हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या 70 लाख नागरिकों के जीवन को ‘पंगु’ किया जा सकता है और उनके मौलिक अधिकारों को सीमित करने की बजाये पूरी तरह खत्म किया जा सकता है। सिब्बल ने कहा कि एक व्यक्ति, जिसे कीमोथेरेपी करानी है, अस्पताल नहीं जा सकता। अस्पताल खुले हैं लेकिन वहां तक कैसे पहुंचा जाये। व्यक्ति किसी के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सकता क्योंकि आपने धारा 144 लगा रखी है।

उन्होंने कहा, ‘‘सवाल यह है कि आप कहते हैं कि सभी 70 लाख लोग आतंकवादी नहीं हैं और इनमें से कुछ ने अपनी आजादी का दुरूपयोग किया है तो फिर आप ऐसे व्यक्ति (आतंकी) का कैसे पता लगायेंगे।’’

सिब्बल ने कहा कि 1990 से ही सीमा पार से आतंकवाद जारी है और सरकार को शरारती लोगों का पता लगाने में हो रही कठिनाई का मतलब यह नहीं है कि प्राधिकारी सारे नागरिकों के मौलिक अधिकार ही खत्म कर देंगे। उन्होंने कहा, उन्हें (आतंकवादियों) हिरासत में लीजिये, गिरफ्तार कीजिये। सीमा पार से आतंकवाद आज नहीं शुरू हुआ है। कोई भी सीमा पार कर सकता है। यह पांच अगस्त से सबकुछ ठप करने की वजह नहीं हो सकता।

कांग्रेस नेता आजाद ने सितंबर में जम्मू कश्मीर जाने और अपने परिवार के सदस्यों और घाटी के निवासियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने की अनुमति के लिये शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर रखी है। इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही सिब्बल ने संविधान संशोधन का जिक्र किया और कहा कि ‘आंतरिक गड़बड़ी’ अब अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातस्थिति घोषित करने का कोई आधार नहीं है और सार्वजनिक व्यवस्था बनाये रखने के लिये संचार व्यवस्था ठप करने का कोई संबंध नहीं है।

उन्होंने कहा कि सरकार कारोबार अपने हाथ में ले सकती है लेकिन वह इसे बर्बाद नहीं कर सकती और न ही लोगों को घरों से बाहर नहीं आने और अपना कारोबार नहीं करने के लिये नहीं कह सकती है। उन्होंने कहा कि आजाद को कई बार हवाई अड्डे पर ही रोका गया। सिब्बल ने कहा कि शीर्ष अदालत पहली बार इस तरह के मामले पर फैसला करेगा जिसमें 70 लाख नागरिकों को मौलिक अधिकारों से वंचित किया गया।

पीठ ने सिब्बल से सवाल किया, ‘‘क्या शीर्ष अदालत ने पहले कभी इस तरह के मुद्दे पर निर्णय दिया है। 1970 के दशक में आपातकाल के दौरान क्या हुआ था। इस पर सिब्बल ने कहा कि यह उनकी व्याख्या है कि केन्द्र को लगा कि यदि वह अनुच्छेद 370 का स्वरूप बदलेगा तो वहां अशांति होगी। उन्होंने कहा, ‘‘परंतु शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन की अनुमति क्यों नहीं देते।’’ उन्होंने कहा कि सरकार की कार्रवाई से ऐसा आभास होता है कि मानो ये लोग राष्ट्र विरोधी हैं। सिब्बल की बहस बुधवार को अधूरी रही। वह बृहस्पतिवार को भी बहस करेंगे।

Web Title: Supreme Court seeks report from central government on operation of public vehicles during ban in Jammu and Kashmir

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