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उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 मामले पर अनुचित आलोचना के लिए वकीलों को फटकार लगाई

By भाषा | Updated: April 23, 2021 16:26 IST

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नयी दिल्ली, 23 अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 वैश्विक महामारी पर राष्ट्रीय नीति बनाने से संबंधित स्वत: संज्ञान के मामले में कुछ वकीलों द्वारा उसकी आलोचना पर शुक्रवार को गहरा दुख व्यक्त किया और कहा कि “किसी संस्थान को इसी तरह से बर्बाद किया जाता है।”

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस आर भट की तीन सदस्यीय पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे को मामले से न्याय मित्र के तौर पर हटने की अनुमति दी और कुछ वरिष्ठ वकीलों द्वारा शीर्ष अदालत पर आरोप लगाने की निंदा की।

साल्वे ने कहा कि वह नहीं चाहते कि मामले में फैसले को लेकर यह कहा जाए कि वह न्यायमूर्ति बोबडे को स्कूल और कॉलेज के दिनों से जानते हैं।

देश में कोविड-19 के बढ़ते मामलों और मौतों की गंभीर स्थिति पर गौर करते हुए उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा था कि वह चाहती है कि केंद्र सरकार मरीजों के लिए ऑक्सीजन और अन्य जरूरी दवाओं के उचित वितरण के लिए एक “राष्ट्रीय योजना” लेकर आए।

पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता एवं उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष विकास सिंह से कहा, “आपने (एससीबीए अध्यक्ष) आदेश पढ़ा है। क्या मामला स्थानांतरित करने की कोई मंशा है...आदेश पढ़े बिना ही उस बात की आचोलना की जा रही है जो आदेश में है ही नहीं। किसी संस्थान को इसी तरह बर्बाद किया जाता है।”

कार्यवाही शुरू होने से पहले, पीठ ने कहा था कि उसने देश में कोविड-19 प्रबंधन से जुड़े मामलों की सुनवाई करने से उच्च न्यायालयों को नहीं रोका है।

पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे से कहा, “हमने एक शब्द भी नहीं कहा और उच्च न्यायालयों को नहीं रोका है। हमने केंद्र को उच्च न्यायालयों का रुख करने और उन्हें रिपोर्ट सौंपने को कहा है। किसी तरह की धारणा की बात कर रहे हैं आप? इन कार्यवाहियों की बात करें।”

साफ तौर पर अप्रसन्न पीठ ने कहा, “आपने हमारा आदेश पढ़े बिना ही हमपर आरोप लगाया है।”

दवे ने कहा, “पूरे देश को लग रहा था कि आप मामलों को स्थानांतरित करेंगे।”

पीठ ने पूछा कि क्या आदेश में ऐसा कहा गया था और इसके साथ ही मामले को सुनवाई के लिये 27 अप्रैल को सूचीबद्ध कर दिया जब सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने बृहस्पतिवार को जारी नोटिस पर केंद्र का जवाब दायर करने के लिए समय मांगा।

न्याय मित्र नियुक्त किए गए साल्वे ने शुरुआत में पीठ से आग्रह किया कि वह मामले से हटना चाहते हैं क्योंकि कुछ वकील “अनुचित” बयान दे रहे हैं।

पीठ ने कहा, “हमें भी यह जानकार बहुत दुख हुआ कि मामले में साल्वे को न्याय मित्र नियुक्त किए जाने पर कुछ वरिष्ठ वकील क्या कह रहे हैं।” साथ ही कहा कि यह पीठ में शामिल सभी न्यायाधीशों का ‘‘सामूहिक निर्णय” था।

साल्वे ने कहा कि यह “बेहद संवेदनशील” और “आवश्यक”मामला है और वह नहीं चाहते कि मामले में फैसला आने के बाद यह कहा जाए कि मैं सीजेआई को स्कूल और कॉलेज के दिनों से जानता हूं। इस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं।”

साल्वे ने उन्हें न्याय मित्र नियुक्त किए जाने पर कुछ वकीलों की कड़वी भाषा का जिक्र किया और कहा, “मैं कोई तमाशा नहीं चाहता। विमर्श की भाषा अब बहुत अलग हो चुकी है।”

पीठ में अपने अंतिम दिन, सीजेआई बोबडे ने कहा, “हम आपकी भावनाओं का सम्मान करते हैं। अब केवल एक बात है कि हमें ऐसा न्याय मित्र खोजना होगा जिसे हम भविष्य में जाने नहीं।दुर्भाग्य से, न्यायपालिका में मेरा अब कोई भविष्य नहीं है।”

उन्होंने कहा, “हमें भी कुछ वरिष्ठ वकीलों की बातें सुनकर दुख हुआ है। लेकिन हर कोई अपने विचार रखने के लिए स्वतंत्र है।”

सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने साल्वे से न्याय मित्र के रूप में मामले से नहीं हटने का आग्रह किया और कहा कि किसी भी दबाव की इन युक्तियों के आगे हार नहीं माननी चाहिए।

उन्होंने कहा, “हम एक-दूसरे की छवि खराब करने वाली स्थिति में नहीं हैं। मैंने डिजिटल मीडिया पर देखा जो सच में दुर्व्यवहार करने जैसा है...एक वकील को ऐसी युक्तियों के आगे नहीं झुकना चाहिए। साल्वे को फिर से विचार करना चाहिए।”

न्यायालय ने मौजूदा स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुये बृहस्पतिवार को टिप्पणी की थी कि वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए ऑक्सीजन को एक "आवश्यक हिस्सा" कहा जाता है और ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ हद तक ‘घबराहट’ पैदा हुयी जिसके कारण लोगों ने कई उच्च न्यायालयों से संपर्क किया है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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