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उच्चतम न्यायालय ने आठ दलों पर उम्मीदवारों का अतीत प्रकाशित नहीं करने के लिए जुर्माना लगाया

By भाषा | Updated: August 10, 2021 23:24 IST

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नयी दिल्ली, 10 अगस्त उच्चतम न्यायालय ने राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए बिहार में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल (यूनाइटेड) सहित नौ राजनीतिक दलों को 2020 के विधानसभा चुनाव में अदालत के एक आदेश का पालन नहीं करने के लिए मंगलवार को अवमानना ​​का दोषी ठहराया।

शीर्ष अदालत ने उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत के बारे में विवरण प्रस्तुत करने के अपने पहले के निर्देशों में से एक को संशोधित किया। न्यायालय ने कहा, ‘‘हम स्पष्ट करते हैं कि हमारे 13 फरवरी 2020 के आदेश के पैरा 4.4 में निर्देश को संशोधित किया जाए और यह स्पष्ट किया जाता है कि जिन विवरणों को प्रकाशित करना आवश्यक है, उन्हें उम्मीदवार के चयन के 48 घंटों के भीतर प्रकाशित किया जाएगा, न कि नामांकन दाखिल करने की पहली तारीख से दो सप्ताह से पहले।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को विधि निर्माता बनने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए, लेकिन न्यायालय द्वारा राजनीति में ऐसे व्यक्तियों की संलिप्तता निषेध करने के लिए आवश्यक संशोधन पेश करने के बारे में की गई तमाम अपीलों पर किसी के कान पर जूं नहीं रेंग रही और राजनीतिक दलों ने इस मामले में गहरी नींद से जागने से इनकार कर दिया है।

न्यायालय ने कहा कि भारत की राजनीतिक प्रणाली का दिन-प्रतिदिन अपराधीकरण बढ़ रहा है। न्यायालय ने लोकतंत्र के विभिन्न अंगों के अधिकारों को अलग करने की संवैधानिक योजना का जिक्र किया और कहा कि इस मामले में तत्काल कुछ न कुछ करने की आवश्यकता है।

न्यायालय ने कहा कि उसके ‘‘हाथ बंधे हुए है’’ और वह विधायी कार्यों के लिए निर्धारित क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं कर सकता है। राजनीतिक दलों पर अलग-अलग जुर्माना लगाते हुए शीर्ष अदालत ने राजनीतिक व्यवस्था को अपराध से मुक्त करने के लिए कदम नहीं उठाने पर सरकार की विधायी शाखा की उदासीनता पर अफसोस जताया।

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने दो राजनीतिक दलों-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) पर पांच-पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए कहा कि उन्होंने ‘‘इस अदालत द्वारा जारी निर्देशों का बिल्कुल भी पालन नहीं किया है।’’

जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी, कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और उनसे आठ सप्ताह के भीतर निर्वाचन आयोग में रकम जमा करने को कहा। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी पर जुर्माना नहीं लगाया गया। बिहार के वकील ब्रजेश सिंह ने अवमानना याचिका दाखिल की थी।

निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने कहा था कि बिहार विधानसभा चुनाव में 10 राजनीतिक दलों ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 469 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। पीठ ने कहा कि केवल जीत के आधार पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का चयन शीर्ष अदालत के 13 फरवरी 2020 के निर्देश का उल्लंघन है।

न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक दलों को अपनी वेबसाइट के होमपेज पर उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत के बारे में जानकारी प्रकाशित करनी होगी। शीर्ष अदालत ने निर्वाचन आयोग को एक समर्पित मोबाइल एप्लिकेशन (ऐप) बनाने का निर्देश दिया जिसमें उम्मीदवारों द्वारा उनके आपराधिक अतीत के बारे में प्रकाशित जानकारी शामिल हो ताकि मतदाता को एक ही बार में अपने मोबाइल फोन पर जानकारी मिल सके।

शीर्ष अदालत ने निर्वाचन आयोग को हर मतदाता को उसके जानने के अधिकार और सभी चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत के बारे में जानकारी की उपलब्धता के बारे में जागरूक करने के लिए एक व्यापक जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश दिया। आदेश में कहा गया, ‘‘यह सोशल मीडिया, वेबसाइट, टीवी विज्ञापनों, प्राइम टाइम डिबेट, पर्चा आदि सहित विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर किया जाएगा। इस उद्देश्य के लिए चार सप्ताह की अवधि के भीतर एक कोष बनाया जाना चाहिए, जिसमें अदालत की अवमानना के लिए जुर्माना अदा किया जाएगा।’’

फैसले में कहा गया कि कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में अपराधीकरण का खतरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। पीठ ने कहा, ‘‘साथ ही, कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि राजनीतिक व्यवस्था की शुद्धता बनाए रखने के लिए, आपराधिक अतीत वाले व्यक्तियों और राजनीतिक व्यवस्था के अपराधीकरण में शामिल लोगों को कानून बनाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह न्यायालय ऐसे निर्देश जारी करके ऐसा कर सकता है जिनका वैधानिक प्रावधानों में आधार नहीं है।’’

आदेश में कहा गया, ‘‘नौ राजनीतिक दलों को 13 फरवरी, 2020 के आदेश की अवमानना करने का दोषी पाया गया है, लेकिन इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए एक उदार दृष्टिकोण अपनाया गया है कि ये पहले चुनाव थे, जो निर्देश जारी होने के बाद आयोजित किए गए थे।’’

न्यायमूर्ति नरीमन ने पीठ के लिए 71 पेज के फैसले में कहा, ‘‘हालांकि, हम उन्हें चेतावनी देते हैं कि उन्हें भविष्य में सतर्क रहना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस न्यायालय के साथ-साथ निर्वाचन आयोग द्वारा जारी निर्देशों का अक्षरश: पालन किया जाए।’’

न्यायालय ने राजनीतिक दलों को समय से अपने उम्मीदवारों के नाम को अंतिम रूप देने के संबंध में निर्देश देने से इनकार करते हुए कहा कि जब तक विधायिका इस मुद्दे पर फैसला नहीं करती और उपयुक्त वैधानिक प्रावधान नहीं होता, तब तक न्यायपालिका द्वारा दिशा-निर्देश निर्धारित करना ठीक नहीं होगा।

पीठ ने उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत के बारे में विवरण प्रस्तुत करने के अपने पहले के निर्देशों में से एक को संशोधित किया। फैसले में कहा गया है कि शीर्ष अदालत बार-बार देश के कानून निर्माताओं से अपील करती रही है कि वे आवश्यक संशोधन लाने के लिए कदम उठाएं ताकि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की राजनीति में भागीदारी निषिद्ध हो सके।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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