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उच्चतम न्यायालय ने न्यायाधिकरणों में रिक्तियों पर नाराजगी जतायी, केंद्र से जवाब मांगा

By भाषा | Updated: August 6, 2021 15:47 IST

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नयी दिल्ली, छह अगस्त उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न न्यायाधिकरणों में रिक्त पदों को नहीं भरने को ‘‘बहुत अफसोसजनक स्थिति’’ करार देते हुए शुक्रवार को केंद्र को दस दिनों के भीतर उठाए गए कदमों से अवगत कराने का निर्देश दिया और कहा कि उसे आशंका है कि इस संबंध में ‘‘कुछ लॉबी काम कर रही हैं।’’

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा, ‘‘हमें न्यायाधिकरणों को जारी रखने या न्यायाधिकरणों को बंद करने पर एक स्पष्ट रुख पता होना चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि नौकरशाही इन न्यायाधिकरणों को नहीं चाहती है।’’

पीठ ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) जैसे देश भर के विभिन्न न्यायाधिकरणों में न्यायिक और गैर-न्यायिक सदस्यों के रिक्त पदों का उल्लेख किया और कहा कि वह इन अर्ध-न्यायिक निकायों में नियुक्ति नहीं करने के कारण बताने के लिए ‘‘शीर्ष अधिकारियों’’ को तलब कर सकती है।

पीठ ने कहा, ‘‘हम उम्मीद करते हैं कि एक सप्ताह के भीतर आप निर्णय करेंगे और हमें अवगत कराएंगे। नहीं तो हम बहुत गंभीर हैं, हम शीर्ष अधिकारियों को पेश होने और कारण बताने के लिए मजबूर हो सकते हैं। कृपया ऐसी स्थिति उत्पन्न ना करें।’’

शीर्ष अदालत वकील और कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दाखिल एक याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई कर रही थी। याचिका में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) न्यायाधिकरण के गठन के लिए निर्देश का अनुरोध किया गया है।

प्रधान न्यायाधीश रमण ने कहा, ‘‘हमारी रजिस्ट्री ने जानकारी दी है कि 15 ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं। कोई अध्यक्ष नहीं हैं।’’ साथ ही कहा कि ‘नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल’ में न्यायिक और तकनीकी सदस्यों की रिक्तियां हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह और न्यायमूर्ति सूर्यकांत दोनों चयन समिति के सदस्य हैं और उन्होंने मई 2020 में नामों की सिफारिश की थी।

पीठ ने कहा कि एएफटी, एनजीटी और रेलवे दावा न्यायाधिकरण में कई पद खाली हैं और इन रिक्तियों को भरने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है और इसे ‘‘बहुत अफसोसजनक स्थिति’’ करार दिया। पीठ ने कहा, ‘‘हमें आशंका है कि कुछ लॉबी इन रिक्तियों को नहीं भरने के लिए काम कर रही हैं।’’

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले पर अदालत को अवगत कराने के लिए कुछ समय मांगा और कहा कि कार्यकाल और नियुक्ति के तरीके से संबंधित कुछ मुद्दे हैं। पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरण कानून के तहत बनते है और प्रक्रिया भी निर्धारित है। पीठ ने कहा कि चयन समितियों, जिसकी अध्यक्षता ज्यादातर शीर्ष अदालत के न्यायाधीश करते हैं, ने न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों के लिए नामों की सिफारिश की है और नियुक्तियों के बाद कई मुद्दों से निपटा जा सकता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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