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आवारा कुत्तों को है भोजन का अधिकार, दूसरों को असुविधा के बिना उन्हें खिला सकते हैं: अदालत

By भाषा | Updated: July 1, 2021 20:07 IST

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नयी दिल्ली, एक जुलाई दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि आवारा कुत्तों को भोजन का अधिकार है और नागरिकों को आबादी के बीच रहने वाले कुत्तों को खिलाने का अधिकार है। साथ ही अदालत ने कहा कि इस अधिकार का इस्तेमाल करते हुए सावधानी बरतनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इससे दूसरों को किसी तरह की कठिनाई या कोई असुविधा नहीं हो।

उच्च न्यायालय ने आवारा कुत्तों को भोजन कराने के संबंध में दिशा-निर्देश देते हुए कहा कि कुत्ता भी समुदायों के बीच रहने वाला जीव है और इसे अपने क्षेत्र के भीतर उन स्थानों पर खिलाया जाना चाहिए, जहां आम जनता अक्सर नहीं आती है।

अदालत ने कहा आवारा कुत्तों के प्रति दया रखने वाला कोई भी व्यक्ति अपने घर के प्रवेश द्वार या घर के मार्ग अथवा अन्य स्थानों पर उन्हें खिला सकता है, जो जगह दूसरे निवासी साझा नहीं करते हैं लेकिन कोई भी व्यक्ति दूसरे को कुत्तों को खिलाने से तब तक रोक नहीं सकता, जब तक कि यह नुकसान या परेशानी का कारण न हो।

न्यायमूर्ति जे आर मिढा ने हाल में 86 पन्ने के अपने फैसले में कहा, ‘‘समुदायों के बीच रहने वाले कुत्तों (आवारा कुत्ते) को भोजन का अधिकार है और नागरिकों को उन्हें खिलाने का भी अधिकार है लेकिन इस अधिकार का इस्तेमाल करते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इससे समाज के किसी दूसरे सदस्य को परेशानी या असुविधा नहीं हो।’’

आवारा कुत्तों को खिलाने के मुद्दे पर एक क्षेत्र के दो बाशिंदों के बीच विवाद पर अदालत ने यह फैसला दिया है। एक व्यक्ति ने कुत्तों को घर के प्रवेश द्वार के पास खिलाने पर रोक के लिए निर्देश का अनुरोध किया था। बाद में दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया और कुत्तों को खिलाने के लिए एक जगह निर्धारित की गयी।

फैसले में सेवा, उपचार पद्धति, बचाव अभियान, शिकार, तस्करी, शव का पता लगाने, पहचान, पुलिस की मदद में अलग-अलग प्रजाति के कुत्तों की भूमिका को भी रेखांकित किया गया। अदालत ने दिशा-निर्देश के क्रियान्वयन के लिए पशुपालन विभाग के निदेशक या उनके द्वारा नामित व्यक्ति, सभी नगर निगमों, दिल्ली छावनी बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों और कुछ वकीलों की एक कमेटी बनायी और चार हफ्ते के भीतर उससे बैठक करने को कहा।

अदालत ने कहा कि जागरूकता फैलाने की जरूरत है कि जानवरों को गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है और भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड (एडब्ल्यूबीआई) को मीडिया के साथ मिलकर जागरूकता अभियान चलाने के लिए कहा।

अदालत ने कहा, ‘‘हमें सभी जीवों के प्रति दया दिखानी चाहिए। जानवर भले बेजुबान हों लेकिन एक समाज के तौर पर हमें उनकी तरफ से बोलना होगा। जानवरों को कोई दर्द या पीड़ा नहीं होनी चाहिए। जानवरों के प्रति क्रूरता के कारण उन्हें मानसिक पीड़ा होती है। जानवर भी हमारी तरह सांस लेते हैं और उनमें भावनाएं होती हैं। जानवरों को भोजन, पानी, आश्रय, सामान्य व्यवहार, चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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