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स्टैन स्वामी के सहयोगी ने एनआईए अदालत की टिप्पणियों के खिलाफ नयी याचिका दाखिल की

By भाषा | Updated: December 17, 2021 20:18 IST

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मुंबई, 17 दिसंबर दिवंगत ईसाई पादरी स्टैन स्वामी के सहयोगी फादर फ्रेजर मास्करेन्हास ने बंबई उच्च न्यायालय का रुख कर एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में स्वामी का नाम हटाने का अनुरोध किया है।

वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई के जरिये बृहस्पतिवार को दाखिल अर्जी में शहर में स्थित सेंट जेवियर कॉलेज के पूर्व प्रधानाध्यापक मास्करेन्हास ने स्वामी की हिरासत में हुई मौत की अदालत की निगरानी में न्यायिक जांच कराने की अपील भी की।

पिछले महीने जमशेदपुर जेशुइट प्रोविंस (जेजेपी) ने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि मास्करेन्हास को स्वामी का रिश्तेदार माना जाए और एल्गार परिषद मामले में स्वामी की जमानत याचिका को खारिज करते समय निचली अदालत द्वारा की गई टिप्पणियों को चुनौती देने की अनुमति दी जाए।

न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की खंडपीठ ने स्वामी द्वारा दायर सभी लंबित याचिकाओं का निपटारा करते हुए जेजेपी से नयी याचिका दायर करने को कहा था।

स्वास्थ्य के आधार पर जमानत का इंतजार करते हुए 5 जुलाई को मुंबई के एक निजी अस्पताल में स्टैन स्वामी (84) की मृत्यु हो गई थी। उससे पहले मार्च 2021 में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) मामलों की एक विशेष अदालत ने उनकी जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। अदालत ने कहा था कि मामले में उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया सबूत हैं। स्वामी ने तब उच्च न्यायालय में अपील दायर की, लेकिन उच्च न्यायालय का फैसला आने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई।

उच्च न्यायालय में दाखिल नयी याचिका में मास्करेन्हास ने कहा कि एनआईए अदालत की टिप्पणियां स्वामी के खिलाफ अपराध की प्रारंभिक जांच पर आधारित हैं और इससे उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हुई।

याचिका में कहा गया है कि अगर स्वामी जीवित होते, तो उन्हें अपनी बेगुनाही साबित करने का अधिकार होता और उनके परिजनों को उनका नाम हटवाने का अधिकार दिया जाना चाहिए, क्योंकि उनकी मृत्यु मुकदमे के दौरान हुई है।

याचिका में उच्च न्यायालय से अदालत की निगरानी में न्यायिक जांच कराने का भी आग्रह किया, जो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 176 के तहत न्यायिक हिरासत में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर होती है। जांच के दौरान मौत के तात्कालिक कारण के अलावा उनकी मृत्यु से पहले की घटनाओं को भी देखना चाहिए, जिसमें तलोजा जेल में उनके बिगड़ते स्वास्थ्य और वहां अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं भी शामिल हैं।

उच्च न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई के लिये अभी तारीख तय नहीं की है।

एल्गार परिषद मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में हुए एक सम्मेलन से संबंधित है। शहर की पुलिस के अनुसार इस सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन हासिल था, जिसके चलते अगले दिन कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक पर जातीय हिंसा भड़क गई थी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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