एसआईटी ने कोई जांच नहीं की, 2002 के दंगों में लोगों को अभियोजित होने से बचाया :जकिया जाफरी

By भाषा | Updated: November 11, 2021 21:56 IST2021-11-11T21:56:23+5:302021-11-11T21:56:23+5:30

SIT did not conduct any investigation, saved people from being prosecuted in 2002 riots: Zakia Jafri | एसआईटी ने कोई जांच नहीं की, 2002 के दंगों में लोगों को अभियोजित होने से बचाया :जकिया जाफरी

एसआईटी ने कोई जांच नहीं की, 2002 के दंगों में लोगों को अभियोजित होने से बचाया :जकिया जाफरी

नयी दिल्ली, 11 नवंबर गुजरात में 2002 के दंगों के शिकार कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि विशेष जांच दल (एसआईटी) ने दंगों में कथित व्यापक साजिश के संदर्भ में कोई जांच नहीं की थी और यह कोशिश की गई तथा सुनिश्चित किया गया कि बजरंग दल, पुलिस, नौकरशाह एवं अन्य लोगों के खिलाफ अभियोग न चले।

दंगों के दौरान 28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी में हत्या कर दिये गये कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 64 लोगों को एसआईटी द्वारा क्लीन चिट दिये जाने को चुनौती दी है।

जकिया की ओर से न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि एसआइटी ने अपना काम नहीं किया और राज्य के संबद्ध अधिकारियों की अकर्मण्यता ने हिंसा के दौरान भीड़ को एकाएक हिंसक तरीके से व्यवहार करने के लिए छोड़ दिया।

पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार भी शामिल हैं।

सिब्बल ने पीठ से कहा, ‘‘कोई जांच नहीं हुई। सिर्फ एक कोशिश की गई बचाने की और यह सुनिश्चित करने की कि कोई भी अभियोजित न हो। विश्व हिंदू परिषद (विहिप), बजरंग दल के लोगों, पुलिसकर्मियों, नौकरशाहों को बचाया जाना था। एसआईटी ने यही सब किया।’’

न्यायालय में दिन भर दी गई दलील के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि जकिया जाफरी की 2006 की शिकायत की एसआईटी ने जांच नहीं की, जिसमें दंगों की व्यापक साजिश का आरोप लगाया गया था।

न्यायालय में 16 नवंबर तक दलीलें दी जाएंगी।

सिब्बल ने पीठ से कहा कि जिस किसी ने व्यापक साजिश में सहयोग किया था उसे बहुत बड़े तरीके से बचाया गया।

उन्होंने कहा, ‘‘कौन संलिप्त है और वह किस तरीके से संलिप्त है, उसकी कभी जांच नहीं हुई।’’ उन्होंने कहा कि एक जांच एजेंसी का दायित्व यह सुनिश्चित करना है कि पीड़ित को न्याय मिले।

सिब्बल ने कहा कि किसी जांच का सबसे अहम हिस्सा उसकी पवित्रता होती है और यदि पवित्रता ही खत्म हो जाए और यह दूषित हो जाए तो आपके पास कुछ नहीं बचता है।

उन्होंने गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान संबद्ध अधिकारियों की कथित अकर्मण्यता का भी जिक्र किया।

पीठ ने कहा कि जांच के दौरान अकर्मण्यता, अपराध को अंजाम देने के दौरान अकर्मण्यता से अलग है।

सिब्बल ने जब दलील दी कि याचिकाकर्ता ने पहले कहा था कि जांच धीमी गति से चल रही है तब पीठ ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने एसआईटी नियुक्त कर इसे ठीक कर दिया।’’

वरिष्ठ अधिवक्ता ने दलील दी कि यह सवाल उठता है कि ये चीजें क्यों हुई और एसआईटी ने इन सभी पर गौर क्यों नहीं किया।

सिब्बल ने कहा, ‘‘उन्होंने (संबद्ध अधिकारियों ने) भीड़ को एकाएक हिंसक व्यवहार करने दिया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यदि आपकी जांच इस जैसी अपवित्र है तो पीड़ित के लिए कोई न्याय कैसे सुनश्चित करेगा। ’’

संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए सिब्बल ने कहा कि सरकार समानता का व्यवहार करने से इनकार नहीं कर सकती और इसमें जांच मशीनरी भी शामिल है। यह अनुच्छेद कानून के समक्ष समानता का प्रावधान करता है।

सिब्बल ने कहा कि शीर्ष न्यायालय ने गुजरात दंगों के मामले में एसआईटी का गठन इसलिए किया क्योंकि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इसके समक्ष कहा था कि स्थानीय पुलिस मामले की जांच उचित तरीके से नहीं कर रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं कोई आरोप नहीं लगा रहा। मैं सिर्फ यह कह रहा हूं कि एसआईटी ने अपना काम नहीं किया।’’

उन्होंने कहा कि एक स्टिंग ऑपरेशन और कॉल ब्योरा रिकार्ड सहित कई अहम सामग्रियों पर एसआईटी ने गौर नहीं किया।

उल्लेखनीय है कि पूर्व सांसद एहसान जाफरी उन 68 लोगों में शामिल थे जो गुजरात दंगों में मारे गये थे। यह हिंसा गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एस 6 डिब्बे को जलाये जाने के एक दिन बाद हुई थी, जिसमें 59 लोग मारे गये थे।

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Web Title: SIT did not conduct any investigation, saved people from being prosecuted in 2002 riots: Zakia Jafri

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