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टाटा को बाहर का रास्ता दिखाने के 13 साल बाद औद्योगीकरण चाहता है सिंगूर

By भाषा | Updated: April 8, 2021 17:58 IST

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(प्रदीप्त तापदार)

सिंगूर, आठ अप्रैल किसान आंदोलन के जरिए टाटा को नेनो कार परियोजना हटाने के लिए मजबूर कर भारतीय राजनीति के मानचित्र पर लाए गए सिंगूर में अब 13 साल बाद औद्योगीकरण मुख्य चुनावी मुद्दा बन गया है क्योंकि जिस जमीन को लेकर इतना संघर्ष हुआ था वह अब बंजर पड़ी हुई है।

नंदीग्राम के साथ सिंगूर वही जगह है जिसने 34 साल के वाम मोर्चे के शक्तिशाली शासन की नींव हिला दी थी और 2011 में ममता बनर्जी को सत्ता प्रदान की थी। सिंगूर में चुनावी समर का नया खाका तैयार हो रहा है जहां टीएमसी के मौजूदा विधायक एवं भूमि अधिग्रहण विरोधी प्रदर्शनों का मुख्य चेहरा रहे रबिंद्रनाथ भट्टाचार्य भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम चुके हैं।

सत्तारूढ़ पार्टी ने भट्टाचार्य के पूर्व सहयोगी, बेचाराम मन्ना को इस सीट से उतारा है।

टाटा परियोजना के लिए शुरुआत में अधिग्रहीत जमीनों को जिन किसानों को वापस कर दिया गया था वे अब अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकारी दान और छोटी-मोटी नौकरियों पर निर्भर हैं। इनमें से कई ठगा हुआ महसूस करते हैं क्योंकि टीएमसी सरकार उनकी बंजर जमीनों को खेती योग्य बनाने का वादा पूरा करने में विफल रही है।

विडंबना यह है कि, टीएमसी और भाजपा दोनों ने ही स्थानीय लोगों की भावनाओं को भांपते हुए इस चुनाव में सिंगूर में औद्योगीकरण का वादा किया है जहां ‘मास्टर मोशाई’ के नाम से प्रसिद्ध 89 वर्षीय भट्टाचार्य और टीएमसी प्रत्याशी मन्ना इस मुद्दे पर इलाके में वाक् युदध् कर रहे हैं।

वहीं माकपा के युवा प्रत्याशी, श्रीजन भट्टाचार्य को उम्मीद है कि इस सीट से जीत उन्हीं की होगी, क्योंकि यहां उनकी पार्टी अपनी खोई हुई जमीन को पाने की भरसक कोशिश कर रही है।

ममता बनर्जी के सिंगूर आंदोलन के अगुआ रहे रबिंद्रनाथ भट्टाचार्य ने पीटीआई-भाषा से कहा, “हम कभी उद्योग के खिलाफ नहीं रहे, हम जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ थे। कुछ कारणों से चीजें नियंत्रण से बाहर थी। अगर भाजपा सत्ता में आती है तो हम क्षेत्र में निवेश लाएंगे।”

निर्वाचन क्षेत्र में टीएमसी का झंडा बुलंद रखने की कोशिश में जुटे मन्ना का कहना है कि इस क्षेत्र के लिए कृषि आधारित उद्योग बेहतर होंगे।

उन्होंने दावा किया, “कुछ कृषि आधारित उद्योग पहले ही सिंगूर आ चुके हैं। टीएमसी सरकार निकट भविष्य में इस क्षेत्र को कृषि उद्योगों के बड़े केंद्र में बदलने के लिए प्रयास कर रही है।”

तेज तर्रार छात्र नेता, 28 वर्षीय सृजन ने भट्टाचार्य और मन्ना दोनों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि टीएमसी और भाजपा वही दोहरा रही है जो 15 साल पहले वाम मोर्चे ने कहा था।

एक वक्त कई फसलों की खेती के लिए प्रसिद्ध रहा सिंगूर तब सुर्खियों में आया था जब टाटा मोटर्स ने 2006 में अपनी सबसे सस्ती कार की निर्माण इकाई के लिए इस क्षेत्र को चुना था। वाम मोर्चे की सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्ग दो के पास 997.11 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर कंपनी को सौंपा था।

तत्कालीन विपक्ष की नेता एवं टीएमसी सुप्रीमो ने अपनी अगुवाई में 26दिन की भूख हड़ताल कर वह 347 एकड़ जमीन लौटाने को कहा था जो स्पष्ट तौर पर जबरन अधिग्रहीत की गई थी।

इलाके में मजबूत जनाधार वाली टीएमसी ने कथित अधिग्रहण के लिए जन आंदोलन चलाया था। टीएमसी और वाम सरकार के बीच कई बैठकों के बाद भी समाधान न निकलने पर टाटा (परियोजना) अंतत: सिंगूर से चली गई और अपना प्लांट गुजरात के सानंद में बनाया। परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई भूमि 2016 में स्थानीय लोगों को लौटा दी गई।

हालांकि, ममता बनर्जी सरकार बंजर पड़ी भूमि को उपजाऊ बनाने में विफल रही क्योंकि इसमें बहुत खर्च आएगा और कई किसान अपनी जमीन बेच चुके हैं।

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक भूमि में गाड़े गए कंकरीट के खंभे और सीमेंट की सिल्लियों के कारण , सिंगूर की जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए ऊपरी मिट्टी की कम से कम सात से आठ परत हटानी होगी।

2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद यहां की जमीन को ठीक करने का काम पार्टी ने लिया लेकिन अब भी बड़ा हिस्सा अनउपजाऊ पड़ा है जिससे यहां के लोग अब भी अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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