पर्यटकों के लिए साल 2019 में खोला गया था सियाचिन हिमखंड, पर आकर्षित नहीं हो पाए टूरिस्ट

By सुरेश एस डुग्गर | Published: May 19, 2023 03:16 PM2023-05-19T15:16:04+5:302023-05-19T15:17:40+5:30

सियाचिन हिमखंड के प्रति एक कड़वी सच्चाई यह है कि इस युद्धस्थल पर 13 अप्रैल 2023 को 38 साल पूरे हो गए थे भारत व पाक की सेनाओं को बेमायने की जंग को लड़ते हुए।

Siachen Iceberg was opened for tourists in 2019 but could not attract tourists | पर्यटकों के लिए साल 2019 में खोला गया था सियाचिन हिमखंड, पर आकर्षित नहीं हो पाए टूरिस्ट

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsचीन और पाकिस्तान का ये गठजोड़ भारत के लिए कभी भी घातक साबित हो सकता था।सबसे अहम ये कि इतनी ऊंचाई से दोनों देशों की गतिविधियों पर नजर रखना भी आसान है।अगर पाकिस्तानी सेना ने सियाचिन पर कब्जा कर लिया होता तो पाकिस्तान और चीन की सीमा मिल जाती।

जम्मू: दुनिया के जिस सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन हिमखंड पर पर्यटकों को घूमने की अनुमति सितम्बर 2019 को दी गई थी उसके प्रति एक सच्चाई यह है कि वह पर्यटकों को फिलहाल उतनी संख्या में आकर्षित नहीं कर पाया जितनी उम्मीद लगाई गई थी। 

इसके पीछे कई कारण रहे थे जिसमें सबसे बड़ा कई प्रकार की अनुमतियां प्राप्त करना भी था। हालांकि अब इन सभी अनुमतियों को प्राप्त करने की बाधाएं हटा ली गई हैं पर अभी भी इसे विदेशी पर्यटकों के लिए पूरी तरह से खोला जाना प्रतिक्षित है।

सियाचिन हिमखंड के प्रति एक कड़वी सच्चाई यह है कि इस युद्धस्थल पर 13 अप्रैल 2023 को 38 साल पूरे हो गए थे भारत व पाक की सेनाओं को बेमायने की जंग को लड़ते हुए। यह विश्व का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित युद्धस्थल ही नहीं बल्कि सबसे खर्चीला युद्ध मैदान भी है जहां होने वाली जंग बेमायने है क्योंकि लड़ने वाले दोनों पक्ष जानते हैं कि इस युद्ध का विजेता कोई नहीं हो सकता। 

इस बिना अर्थों की लड़ाई के लिए पाकिस्तान ही जिम्मेदार है जिसने अपने मानचित्रों में पाक अधिकृत कश्मीर की सीमा को एलओसी के अंतिम छोर एनजे-9842 से सीधी रेखा खींच कर कराकोरम दर्रे तक दिखाना आरंभ किया था। 

चिंतित भारत सरकार ने तब 13 अप्रैल 1984 को ऑपरेशन मेघदूत आरंभ कर उस पाक सेना को इस हिमखंड से पीछे धकेलने का अभियान आरंभ किया जिसके इरादे इस हिमखंड पर कब्जा कर नुब्रा घाटी के साथ ही लद्दाख पर कब्जा करना था।

13 अप्रैल ही के दिन 1984 में कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने के लिए सशस्त्र बलों ने अभियान छेड़ा था। इसे ऑपरेशन मेघदूत का नाम दिया गया। यह सैन्य अभियान अनोखा था क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी युद्धक्षेत्र में पहली बार हमला शुरू किया गया था। सेना की कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय सैनिक पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण हासिल कर रहे थे।

ऑपरेशन मेघदूत के 38 साल बाद आज भी रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण सियाचिन ग्लेशियर पर भारत का कब्जा है। यह विजय भारतीय सेना के शौर्य, नायकत्व, साहस और त्याग की मिसाल है। 

विश्व के सबसे ऊंचे और ठंडे माने जाने वाले इस रणक्षेत्र में आज भी भारतीय सैनिक देश की संप्रभुता के लिए डटे रहते हैं। ये ऑपरेशन 1984 से 2002 तक चला था यानि पूरे 18 साल तक। भारत और पाकिस्तान की सेनाएं सियाचिन के लिए एक दूसरे के सामने डटी रहीं। जीत भारत की हुई। 
आज भारतीय सेना 70 किलोमीटर लंबे सियाचिन ग्लेशियर, उससे जुड़े छोटे ग्लेशियर, 3 प्रमुख दर्रों (सिया ला, बिलाफोंद ला और म्योंग ला) पर कब्जा रखती है। इस अभियान में भारत के करीब 1 हजार जवान शहीद हो गए थे। हर रोज सरकार सियाचीन की हिफाजत पर करोड़ो रुपये खर्च आती है।

यह उत्तर पश्चिम भारत में काराकोरम रेंज में स्थित है। सियाचिन ग्लेशियर 76.4 किमी लंबा है और इसमें लगभग 10,000 वर्ग किमी विरान मैदान शामिल हैं। सियाचिन के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है तो दूसरी तरफ चीन की सीमा अक्साई चीन इस इलाके को छूती है। ऐसे में अगर पाकिस्तानी सेना ने सियाचिन पर कब्जा कर लिया होता तो पाकिस्तान और चीन की सीमा मिल जाती। 

चीन और पाकिस्तान का ये गठजोड़ भारत के लिए कभी भी घातक साबित हो सकता था। सबसे अहम ये कि इतनी ऊंचाई से दोनों देशों की गतिविधियों पर नजर रखना भी आसान है।

भारत सरकार ने इसके बाद कभी भी सियाचिन हिमंखड से अपनी फौज को हटाने का इरादा नहीं किया क्योंकि पाकिस्तान इसके लिए तैयार ही नहीं है। नतीजतन आज जबकि इस हिमखंड पर सीजफायर ने गोलाबारी की नियमित प्रक्रिया को तो रूकवा दिया है पर प्रकृति से जूझते हुए मौत की आगोश में जवान अभी भी सो रहे हैं, पाकिस्तान सेना हटाने को तैयार नहीं है।

Web Title: Siachen Iceberg was opened for tourists in 2019 but could not attract tourists

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