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जब तत्काल कार्रवाई की जरूरत हो, तो क्या एनजीटी से किसी आवेदन का इंतजार करने की उम्मीद करनी चाहिए: न्यायालय

By भाषा | Updated: September 8, 2021 18:54 IST

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नयी दिल्ली, आठ सितंबर उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि क्या राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) से यह उम्मीद की जानी चाहिए कि जब पर्यावरण से संबंधित मुद्दे पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता हो तो वह उसके समक्ष किसी के आवेदन दाखिल करने का इंतजार करे।

एनजीटी के पास किसी मामले का स्वत: संज्ञान लेने की शक्ति है या नहीं? इस मुद्दे पर विचार कर रहे उच्चतम न्यायालय ने उक्त टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रखा और कहा कि अधिकरण को भी पुनर्स्थापनात्मक न्याय करने की शक्ति का प्रयोग करना है।

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा, '' जब तत्काल कार्रवाई आवश्यक हो तो क्या एनजीटी से किसी तीसरे पक्ष द्वारा निवेदन किए जाने का इंतजार करने की उम्मीद की जा सकती है। ऐसे में क्या स्वतः संज्ञान के स्थान पर आत्मसंज्ञान की स्थिति हो सकती है? क्योंकि, यदि आप किसी आवेदन की प्रतीक्षा करते हैं, तो इसे दायर करने में देरी हो सकती है।''

पीठ ने कहा, '' आज जो करने की आवश्यकता है, उन्हें वह दो दिन बाद करना पड़ेगा, जिससे और अधिक नुकसान हो सकता है।''

एक आवेदक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा कि विचार पर्यावरण की रक्षा करना है और इसे खराब नहीं होने देना है। उन्होंने कहा कि अगर अधिकरण इस बारे में स्पष्ट है कि क्या हुआ है और तथ्यात्मक स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है तो सवाल यह है कि किसी को भी पर्यावरण को और खराब करने की छूट क्यों देनी चाहिए?

वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील पेश करते हुए जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की एक हालिया रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों पर प्रकाश डाला गया था। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में जहां दुनिया जलवायु परिवर्तन के कारण पीड़ित है, पर्यावरणीय मुद्दों से निपटने वाले एक विशेषज्ञ निकाय को शक्तियों का प्रयोग करने से नहीं रोका जाना चाहिए और ना ही लोगों द्वारा आवेदन दिए जाने का इंतजार करना चाहिए।

एनजीटी के पास किसी मामले का स्वत: संज्ञान लेने की शक्ति है या नहीं? पीठ ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि सभी पक्ष एक सप्ताह के भीतर अपनी लिखित दलीलें दाखिल कर सकते हैं।

पीठ ने मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई के दौरान कहा था कि यदि जरूरत होने पर विभाग निर्देश जारी करने में विफल रहते हैं तो अधिकरण तत्काल कदम उठा सकता है और उन्हें अपनी शक्ति का प्रयोग करने और उपचारात्मक एवं सुधारात्मक कदम उठाने संबंधी निर्देश दे सकता है।

केंद्र ने दो सितंबर को उच्चतम न्यायालय से कहा था कि एनजीटी के पास मामले का स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है, क्योंकि यह कानून में नहीं है।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पीठ से कहा था कि प्रक्रियात्मक पहलू उस ‘‘विशिष्ट’’ अधिकरण की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र को बांध नहीं सकते, जिसका गठन पर्यावरणीय मामलों से निपटने के लिए किया गया है।

मंत्रालय की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने दो सितंबर को शीर्ष अदालत से कहा था, ‘‘हमारा अभिवेदन यह है कि स्वत: संज्ञान की शक्ति उसके पास नहीं है। हालांकि, यह कहना कि किसी पत्र , किसी अर्जी इत्यादि पर सुनवाई नहीं हो सकती, इस बात को बहुत अधिक खींचना होगा।’’

उल्लेखनीय है कि एनजीटी ने महाराष्ट्र में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित एक मुद्दे पर पहले स्वत: संज्ञान लिया था और फिर नगर निगम पर पांच करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था।

शीर्ष अदालत को पहले बताया गया था कि बंबई उच्च न्यायालय पहले से ही महाराष्ट्र में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दे की निगरानी कर रहा है और एनजीटी को इस मामले में स्वत: संज्ञान नहीं लेना चाहिए था।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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