झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार पर शिवसेना ने उस पर तंज कसा है। बीजेपी पर निशाना साधते हुए शिवसेना ने कहा कि बीजेपी के नेता कहते थे कांग्रेस मुक्त हिंदुस्तान, लेकिन अब कई राज्य बीजेपी मुक्त हो गए हैं। शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा है झारखंड भी भारतीय जनता पार्टी के हाथ से निकल गया। पहले महाराष्ट्र गया और अब झारखंड गया। महाराष्ट्र और झारखंड की तुलना नहीं की जा सकती। हालांकि भाजपा ने एक राज्य और गवां दिया है तथा प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सहित पूरे केंद्रीय मंत्रिमंडल को वहां लगाने के बावजूद भाजपा झारखंड में नहीं जीत पाई।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन अब मुख्यमंत्री बनेंगे। झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन को बहुमत मिलेगा, ये स्पष्ट हो चुका है। इस गठबंधन में सबसे ज्यादा सीटें झारखंड मुक्ति मोर्चा को मिली हैं। कांग्रेस ने दो अंकोंवाला आंकड़ा छू लिया है और राजद को भी 5-7 सीटें मिली हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस-राजद के समर्थन से झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार वहां आ रही है। ये भाजपा के लिए धक्कादायक है।
सामना में लिखा गया कि भाजपा के नेता कांग्रेसमुक्त हिंदुस्थान की घोषणा कर रहे थे। लेकिन अब कई राज्य भाजपामुक्त हो गए हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्य भाजपा पहले ही गवां चुकी है। एक महीना पहले हरियाणा में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। वहां कांग्रेस ने जोरदार जीत दर्ज की। भाजपा की सत्ता वहां से भी लगभग समाप्त हो चुकी थी लेकिन जिस दुष्यंत सिंह के विरोध में चुनाव लड़ा, उसी दुष्यंत का सहारा लेकर, उन्हें उपमुख्यमंत्री पद देकर जैसे-तैसे भाजपा ने सत्ता बचाई।
महाराष्ट्र में कांग्रेस-राष्ट्रवादी सरकार शिवसेना के नेतृत्व में बनी। 2018 में भाजपा 75 प्रतिशत प्रदेशों में सत्तासीन थी। अब उसका उतार है तथा जैसे-तैसे 30-35 प्रतिशत प्रदेशों में भाजपा की सत्ता है। भाजपा की घुड़दौड़ कई राज्यों में कमजोर पड़ती गई। ये तस्वीर विचार करनेवाली है।
साल 2018 में देश के २२ राज्यों में भाजपा की सत्ता थी। पूर्वोत्तर राज्यों में भी भाजपा पहुंची। त्रिपुरा और मिजोरम तक उनके झंडे लहराए लेकिन आज ऐसी स्थिति है कि अगर त्रिपुरा में चुनाव कराए जाएं तो जनता भाजपा की सत्ता उखाड़ फेंकेगी। नागरिकता संशोधन कानून के मुद्दे पर सबसे ज्यादा हिंसा त्रिपुरा में हुई और भाजपा सरकार उसे रोकने में असफल साबित हुई। ऐसा पूरे देश में होता दिखाई दे रहा है।
पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की झारखंड की रैलियों को जनता ने नकारा- झारखंड में श्री मोदी और श्री शाह ने सभाएं लीं। मोदी के नाम पर वोट मांगे। गृहमंत्री अमित शाह के झारखंड में हुई प्रचार सभाओं के भाषणों को जांचा जाए तो ये साफ होता है कि वहां सीधे-सीधे हिंदू-मुसलमान में मतभेद कराने का प्रयास था। विशेषकर नागरिकता संशोधन विधेयक के कारण भाजपा का हिंदू मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा, ऐसी उनकी अपेक्षा थी। लेकिन झारखंड के श्रमिकों और आदिवासी जनता ने प्रलोभन को नकार दिया।
बीजेपी जनता को हल्के में लेगी तो क्या होगा-झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है। आदिवासी समाज ने भाजपा को मतदान नहीं किया। वहां कड़ा मुकाबला हुआ। इस लड़ाई में यूपीए गठबंधन पास हो गया। लोग अगर ठान लें तो वे सत्ता, दबाव और आर्थिक आतंकवाद की परवाह नहीं करते। अपने मन के अनुसार बदलाव लाकर रहते हैं। महाराष्ट्र में यही हुआ। झारखंड ने भी इस बदलाव का निडरता से सामना किया। भाजपा एक के बाद एक राज्य गंवाती जा रही है। अब झारखंड भी गवां दिया, ऐसा क्यों? इस पर विचार करने की उनकी मानसिकता नहीं है। जनता को हल्के में लेंगे तो और क्या होगा!