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शक्ति मिल्स सामूहिक बलात्कार मामला: तीन दोषियों को सुनाई गई मौत की सजा उम्र कैद में तब्दील

By भाषा | Updated: November 25, 2021 13:22 IST

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मुंबई, 25 नवंबर बंबई उच्च न्यायालय ने 2013 में मध्य मुंबई स्थित शक्ति मिल्स परिसर में 22 वर्षीय एक फोटो पत्रकार के साथ सामूहिक बलात्कार के मामले के तीन दोषियों को सुनाई गई मौत की सजा को बृहस्पतिवार को आजीवन कारावास में बदल दिया।

अदालत ने कहा कि वे ‘‘उनके द्वारा किए गए अपराधों का पश्चाताप करने के लिए आजीवन कारावास की सजा भुगतने के पात्र हैं।’’

न्यायमूर्ति साधना जाधव और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने विजय जाधव, मोहम्मद कासिम शेख उर्फ कासिम बंगाली और मोहम्मद अंसारी को सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि करने से इनकार कर दिया और उनकी सजा को उनके शेष जीवन के लिए आजीवन कारावास में बदल दिया।

पीठ ने कहा कि वह इस बात से इनकार नहीं कर सकती कि इस अपराध ने समाज की सामूहिक अंतरात्मा को झकझोर दिया और बलात्कार मानवाधिकारों का उल्लंघन है। उसने कहा कि मामलों पर निष्पक्षता से विचार करना अदालतों का कर्तव्य है और वे कानून के तहत तय की गई प्रक्रिया को नजरअंदाज नहीं कर सकतीं।

पीठ ने कहा, ‘‘मृत्यु पश्चाताप की अवधारणा को समाप्त कर देती है। यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपियों को केवल मौत की सजा ही दी जानी चाहिए। वे उनके द्वारा किए गए अपराध का पश्चाताप करने के लिए आजीवन कारावास के पात्र हैं।’’

उसने कहा कि दोषी पैरोल या फरलो के हकदार नहीं होंगे, क्योंकि उन्हें समाज में आत्मसात होने की अनुमति नहीं दी जा सकती और सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है।

निचली अदालत ने 22 अगस्त, 2013 को बंद पड़े शक्ति मिल्स परिसर में फोटो पत्रकार के साथ सामूहिक बलात्कार किए जाने के मामले में मार्च, 2014 में चार लोगों को दोषी ठहराया था। अदालत ने जाधव, बंगाली और अंसारी को मौत की सजा सुनाई थी, क्योंकि इन तीनों को फोटो पत्रकार के साथ बलात्कार से कुछ महीनों पहले इसी स्थान पर 19 वर्षीय एक टेलीफोन ऑपरेटर के सामूहिक बलात्कार के मामले में भी दोषी ठहराया गया था। इन तीनों को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (ई) के तहत मौत की सजा सुनाई गई।

मामले के चौथे दोषी सिराज खान को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और एक नाबालिग आरोपी को सुधार केंद्र भेज दिया गया था।

जाधव, बंगाली और अंसारी ने अप्रैल 2014 में उच्च न्यायालय में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (ई) की वैधता को चुनौती दी थी और दावा किया था कि सत्र अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुनाकर अपने अधिकार क्षेत्र से परे जाकर कदम उठाया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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