आग में जलकर खाक हो गए बच्चों को बेहतर जीवन देने के यौनकर्मियों के सपने

By भाषा | Updated: November 8, 2020 12:00 IST2020-11-08T12:00:31+5:302020-11-08T12:00:31+5:30

Sex workers' dreams of giving children a better life by burning in a fire | आग में जलकर खाक हो गए बच्चों को बेहतर जीवन देने के यौनकर्मियों के सपने

आग में जलकर खाक हो गए बच्चों को बेहतर जीवन देने के यौनकर्मियों के सपने

(मोना पार्थसारथी)

नयी दिल्ली, आठ नवंबर किसी ने बेटी के लिये शादी का जोड़ा खरीदकर रखा था तो किसी ने दिवाली पर बच्चों को भेजने के लिये नये कपड़े सिलवाये थे, लेकिन इनके साथ ही बरसों की जमा पूंजी भी उनकी आंखों के सामने आग में जलकर खाक हो गई ।

दिल्ली के रेडलाइट इलाके जीबी रोड पर कोठा नंबर 58 में बृहस्पतिवार को लगी भीषण आग से भले ही कोई हताहत नहीं हुआ, लेकिन वहां रहने वाली यौनकर्मियों के बच्चों को बेहतर जीवन देने के सपने जलकर जरूर खाक हो गए।

आलम यह है कि बदन पर पहने कपड़ों के अलावा अब उनके पास कुछ नहीं बचा। कोरोना वायरस महामारी ने वैसे ही इनसे रोजी-रोटी छीन ली थी और अब आग ने छत भी छीन ली।

जौनपुर की रहने वाली माया (बदला हुआ नाम) ने ‘भाषा’ से बातचीत में कहा , ‘‘मैं दस साल से यहां अकेली रहती हूं। बच्चे गांव में नानी के पास हैं और मेरी लड़की की जनवरी में शादी होनी है। उसके लिये शादी का जोड़ा, कुछ जेवर, गद्दे और बच्चों के कपड़े खरीदकर रखे थे। दिवाली पर घर जाना था लेकिन सब कुछ मेरी आंखों के सामने स्वाहा हो गया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यही नहीं मेरा आधार कार्ड भी जल गया जो बड़ी मुश्किल से बना था।’’

शॉर्ट सर्किट से लगी आग के बाद स्थानीय पुलिस ने इस कोठे पर रहने वाली करीब 50 महिलाओं और दस बच्चों को पास ही दिल्ली नगर निगम के बंद पड़े एक स्कूल में ठहराया है और मदद के दम पर उनका गुजारा चल रहा है।

कोठे पर मलबा जस का जस पड़ा है और इनका नष्ट हो चुका सामान चारों तरफ बिखरा हुआ है और इन्हें यह भी नहीं पता कि जिसे ये अपना घर मानती आई हैं, अब उसकी मरम्मत कौन करायेगा।

स्कूल के छोटे से परिसर में ना तो ये जरूरी दूरी ही रख पा रही हैं और ना ही इनके पास सैनिटाइजर या साबुन आदि है। पानी नहीं है तो बार-बार हाथ धोने का सवाल ही नहीं उठता। छोटे बच्चे हाथ में खाली दूध की बोतल लेकर रो रहे हैं और इन्हें इंतजार है कि कोई मददगार इनके लिये कुछ खाने का सामान और कपड़े लेकर आयेगा।

आंध्र प्रदेश की रहने वाली शैला (बदला हुआ नाम) की 18 और 14 साल की दो लड़कियां हैं जिन्हें पैसा भेजना था लेकिन अब उसके पास अपने एक कपड़े के अलावा कुछ नहीं बचा।

उन्होंने कहा , ‘‘मेरा कुछ सामान आग में जल गया तो कुछ चोरी हो गया। शरीर पर एक नाइटी के अलावा कुछ नहीं बचा। तीन दिन से नहाये भी नहीं हैं क्योंकि यहां स्कूल में बाथरूम नहीं है और पानी भी नहीं। ठंड में ओढ़ने-बिछाने के लिए भी कुछ पास नहीं है। खाने-पीने की तो अभी तक मदद मिल गई है लेकिन रोज 50 लोगों को भी कोई कब तक खिलायेगा।’’

इनमें से अधिकतर के बैंक खाते भी नहीं है। पिछले 16 साल से यहां रह रही एक महिला ने कहा कि अपनी कमाई को ये लोग गुल्लक में, पेटी में या बर्तन में जमा करते हैं और समय-समय पर कुछ पैसा घर भेजते रहते हैं।

उन्होंने कहा , ‘‘कोई इतना पढ़ा-लिखा तो है नहीं कि बैंक खाता खुलवा सके। फिर सभी के पास पहचान पत्र भी कहां है। कोई गुल्लक में, कोई पेटी में तो कोई बर्तन में छिपाकर पैसे रखता है। कइयों की तो बीस-तीस साल की जमा पूंजी चली गई जो बच्चों के लिये रखी थी।’’

करीब 27 साल से यहां रह रही सुनीला (बदला हुआ नाम) को महामारी के दौर में कोठा मालिक ने सात महीने का मोटा किराया वसूलने के लिये नोटिस भेजा था जिसका जवाब देने के लिये उन्होंने वकील को देने के लिहाज से पैसे रखे थे लेकिन अब पास में एक धेला भी नहीं है।

उन्होंने कहा , ‘‘मैं कहां से इतना किराया दे पाऊंगी। मैंने अदालत में जमा करने के लिये पैसे रखे थे और शुक्रवार को सुबह वकील को देने थे। अब तो कुछ नहीं बचा। कोठा मालिक कोठे की मरम्मत तो दूर मलबा हटाने को भी तैयार नहीं है। अब हम कहां जायें और क्या करें, कुछ समझ में नहीं आ रहा।’’

कुछ और काम करने या पुनर्वास की सलाह पर पिछले तीन दशक से यहां रह रही साहिबा (परिवर्तिन नाम) ने कहा , ‘‘ये सब सिर्फ बोलने की बातें होती हैं लेकिन हमें यहां से निकाल दिया गया तो हम कहां जायेंगे और क्या खायेंगे। बच्चे कैसे पालेंगे। कौन हमें काम देगा। क्या हमारा अतीत हमारा पीछा छोड़ देगा।’’

इनमें से एक महिला ने कहा , ‘‘कई बार काम दिलाने के नाम पर एनजीओ ले भी जाते हैं लेकिन सड़कों पर भटकने के लिये छोड़ देते हैं। ऐसे में किस पर भरोसा करें। हमें बच्चे पालने हैं जिन्हें नहीं पता कि उनकी मां क्या काम करती है लेकिन हम चाहते हैं कि वे पढ़-लिखकर इस दुनिया से दूर रहें। हम इतने साल से यहीं रहे हैं तो अब यही घर लगता है। बस हमें हमारा घर वापिस मिल जाये।’’

स्थानीय पुलिस और कुछ गैर सरकारी संगठनों ने इनके लिये मदद जुटाई है लेकिन इन्हें अब स्थायी मदद और सिर पर छत की जरूरत है।

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Web Title: Sex workers' dreams of giving children a better life by burning in a fire

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