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सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों पर चलाया चाबुक, अपराधिक पृष्ठभूमि के नेता को चुनाव मैदान में उतारने पर लगेगा अंकुश

By शीलेष शर्मा | Updated: February 14, 2020 07:44 IST

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से देश की अधिकांश राजनीतिक दल सकते में है. कांग्रेस मात्र एक पार्टी है जिसने फैसला आते ही सार्वजनिक तौर पर घोषणा की कि वह इस फैसले का स्वागत करती है और उम्मीद करती है कि अन्य राजनीतिक दल भी इस पर गंभीरता से कदम उठाएंगे.

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ठळक मुद्देअपराधिक मामलों का सामना कर रहे नेताओं को अब राजनीतिक दल चुनाव मैदान में उतारने से पहले यह सोचने पर मजबूर होंगे कि ऐसे नेता को चुनाव में उतारना उस पार्टी के लिए मुश्किल भरा हो सकता है.यह स्थिति गुरुवार को उस समय पैदा हुई जब सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीति में अपराधिकरण पर अंकुश लगाने के लिए फैसला सुनाया.

अपराधिक मामलों का सामना कर रहे नेताओं को अब राजनीतिक दल चुनाव मैदान में उतारने से पहले यह सोचने पर मजबूर होंगे कि ऐसे नेता को चुनाव में उतारना उस पार्टी के लिए मुश्किल भरा हो सकता है. यह स्थिति गुरुवार को उस समय पैदा हुई जब सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीति में अपराधिकरण पर अंकुश लगाने के लिए फैसला सुनाया.

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से देश की अधिकांश राजनीतिक दल सकते में है. कांग्रेस मात्र एक पार्टी है जिसने फैसला आते ही सार्वजनिक तौर पर घोषणा की कि वह इस फैसले का स्वागत करती है और उम्मीद करती है कि अन्य राजनीतिक दल भी इस पर गंभीरता से कदम उठाएंगे.

पार्टी के प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने पार्टी की राय जाहिर करते हुए कहा कि कांग्रेस से पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जो कहते रहे है सर्वोच्च न्यायालय ने उस पर मोहर लगाई है. गौरतलब है कि राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह सरकार के दौरान कैबिनेट द्वारा पारित उस प्रस्ताव को फाड़ दिया था जिसमें आरजेडी नेता लालू यादव को बचाने के लिए संशोधन की सिफारिश की गयी थी.

कांग्रेस के अलावा अन्य किसी दल ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर अपनी राय जाहिर नहीं की है. कांग्रेस के दूसरे नेता कपिल सिब्बल ने भी साफ किया कि मतदाता को यह जानने का हक है कि जिसे वह चुनने जा रहा है उसकी पृष्ठभूमि क्या है. उन्होंने फैसले का स्वागत करते हुए इस पर कड़ाई से अमल करने पर जोर दिया.

गौरतलब है कि वर्तमान लोकसभा में कमोवेश सभी दलों के सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज है जिनमें से 43 फीसदी सांसद ऐसे है जिन्होंने शपथ पत्र देकर आयोग में यह घोषित किया है कि उनके खिलाफ अपराधिक मामले है. इनमें 29 फीसदी ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराधों के मामले दर्ज हैं लेकिन वे चुनकर संसद पहुंच चुके हैं.

हैरानी की बात तो यह है कि 2009 से 2019 तक लगातार अपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसदों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है. 2009 में जहां 162 सांसद थे तो 2014 में यह संख्या बढ़कर 185 हो गई और 2019 में 233 पर जा पहुंची. जिन पर गंभीर अपराध दर्ज है जिसमें हत्या, लूटपाट, जैसे जुल्म शामिल है की संख्या 2009 में 76 थी, 2014 में 112 और 2019 में 159 पहुंच गई.

लेकिन सर्वोच्च न्यायालय पर इन पर अकुश लगाना चाहता है, न्यायालय के फैसले के अनुसार यदि राजनीतिक दल अपराधिक मामले वाले प्रत्याशी को चुनते हैं तो उन्हें बताना होगा कि वे उसका चयन क्यों कर रहे हैं और साफ छवि के उम्मीदवार को क्यों छोड़ा जा रहा है. इतना ही नहीं प्रमुख राष्ट्रीय और क्षेत्रीय भाषा के समाचार पत्र में उसका पूरा ब्यौरा सार्वजनिक करना होगा.  जिसकी जानकारी चुनाव आयोग को भी देनी होगी.

सोशल मीडिया पर भी राजनीतिक दलों को इसका प्रचार करना होगा. यदि जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की बात करें तो धारा 8 के तहत यह कानून केवल उन नेताओं को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करता है जो दोषी करार दिये गये हैं. लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद राजनीतिक दलों पर लगाम कसना तय है, उनको उम्मीदवार का चयन करने से पहले गहन मंथन करना होगा.

टॅग्स :सुप्रीम कोर्टभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)कांग्रेस
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