सौमित्र चटर्जी : भारतीय सिनेमा को विश्व पटल पर ले जाने वाला कलाकार

By भाषा | Updated: November 15, 2020 14:38 IST2020-11-15T14:38:04+5:302020-11-15T14:38:04+5:30

Saumitra Chatterjee: The Artist Who Took Indian Cinema to the World Table | सौमित्र चटर्जी : भारतीय सिनेमा को विश्व पटल पर ले जाने वाला कलाकार

सौमित्र चटर्जी : भारतीय सिनेमा को विश्व पटल पर ले जाने वाला कलाकार

कोलकाता, 15 नवंबर वह विश्व सिनेमा के श्रेष्ठ उदाहरण थे जिन्होंने देश, राज्य और भाषा की सीमाओं से परे सत्यजीत रे की सिनेमाई दृष्टि को अभिव्यक्ति प्रदान की और फिल्मी पर्दे पर उन्हें दक्षता के साथ साकार किया।

सौमित्र चटर्जी का 85 वर्ष की उम्र में रविवार को यहां के एक अस्पताल में निधन हो गया। चटर्जी की फिल्मी शख्सियत सिर्फ रे के आभामंडल तक ही सीमित नहीं थी ठीक उसी तरह जैसे वह कभी सिर्फ बंगाली सिनेमा के बंगाली सितारे नहीं रहे।

चटर्जी ने रे की 14 फिल्मों समेत 300 से ज्यादा अन्य फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने समानांतर सिनेमा के साथ ही व्यवसायिक फिल्मों में ‍विभिन्न किरदारों में खुद को बखूबी ढाला। उन्होंने मंच पर भी अभिनेता, पटकथालेखक और निर्देशक के तौर पर अपनी मौजूदगी का एहसास कराया।

फिल्मी जगत का यह सितारा रोशनी के त्योहार के एक दिन बाद ही कोलकाता के एक अस्पताल में इस दुनिया से रुखसत हो गया। उन्हें कोविड-19 से पीड़ित होने के बाद छह अक्टूबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह कई अन्य बीमारियों से भी पीड़ित थे।

सौमित्र चटर्जी अब नहीं रहे लेकिन उनका काम हमेशा मौजूद रहेगा।

फिल्म ‘‘अपुर संसार’’ से फिल्मी सफर की शुरुआत करने वाले चटर्जी ने अपनी पहली ही फिल्म से दर्शकों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी।

फिल्म में एक शोक में डुबे विधुर का किरदार निभा रहे चटर्जी का आखिरकार अपने बेटे से जुड़ाव होता है। 1959 में आई इस फिल्म के साथ रे की प्रसिद्ध अपु तिकड़ी पूरी हुई थी और इससे विश्व सिनेमा से चटर्जी का परिचय हुआ। इसके बाद की बातें इतिहास में दर्ज हो गईं।

फिल्मों के बारे में जानकारी रखने वालों के मुताबिक चटर्जी ने 1957 में रे की “अपराजितो” के लिये ऑडिशन दिया था जो तिकड़ी की दूसरी फिल्म थी लेकिन निर्देशक को किशोर अपु का किरदार निभाने के लिये तब 20 वर्ष के रहे अभिनेता की उम्र ज्यादा लगी थी। अपु तिकड़ी की पहली फिल्म “पाथेर पांचाली” थी।

रे के संपर्क में चटर्जी हालांकि बने रहे और आखिरकार “अपुर संसार” में उन्हें अपु का किरदार निभाने का मौका मिला जिसमें दाढ़ी के साथ उनके लुक को दर्शकों ने काफी पसंद किया। ऐसा कहा जाता है कि यह रे को युवा टैगोर की याद दिलाता था।

आने वाले दशकों में चटर्जी ने फिल्मों और थियेटर में कई तरह के किरदार निभाए और कविता व नाटक भी लिखे।

कलकत्ता (अब कोलकाता) में 1935 में जन्मे चटर्जी के शुरुआती वर्ष नादिया जिले के कृष्णानगर में बीते जहां से उन्होंने स्कूली शिक्षा प्राप्त की।

अभिनय से चटर्जी को पहली बार पारिवारिक नाटकों में उनके दादा और वकील पिता ने रूबरू कराया। वो दोनों भी कलाकार थे। चटर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बंगाली साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री ली थी।

सत्यजीत रे के पसंदीदा अभिनेता ने उनकी ‘देवी’ (1960), ‘अभिजन’ (1962), ‘अर्यनेर दिन रात्रि’ (1970), ‘घरे बायरे’ (1984) और ‘सखा प्रसखा’ (1990) जैसी फिल्मों में काम किया।

दोनों का करीब तीन दशक का साथ 1992 में रे के निधन के साथ छूटा।

चटर्जी ने 2012 में ‘पीटीआई’ को बताया था, “…उनका मुझ पर काफी प्रभाव था। मैं कहूंगा कि वह मेरे शिक्षक थे। अगर वह वहां नहीं होते तो मैं यहां नहीं होता।”

उन्होंने मृणाल सेन, तपन सिन्हा और तरुण मजूमदार जैसे दिग्गजों के साथ भी काम किया।

बॉलीवुड से कई ऑफर के बावजूद उन्होंने कभी वहां का रुख नहीं किया क्योंकि उनका मानना था कि अपने अन्य साहित्यिक कामों के लिये इससे उनकी आजादी खत्म हो जाएगी।

योग के शौकीन चटर्जी ने दो दशकों से भी ज्यादा समय तक एकसान पत्रिका का संपादन किया।

चटर्जी ने दो बार पद्मश्री पुरस्कार लेने से भी इनकार कर दिया था और 2001 में उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार लेने से भी मना कर दिया था। उन्होंने जूरी के रुख के विरोध में यह कदम उठाया था।

बाद में 2004 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और 2006 में उन्होंने “पोड्डोखेप” के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता। 2012 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें 2018 में फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘लीजन डी ऑनर’ से भी सम्मानित किया गया। इससे अलावा भी वह कई राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।

उनके परिवार में पत्नी दीपा चटर्जी, बेटी पोलमी बासु और बेटा सौगत चटर्जी हैं।

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Web Title: Saumitra Chatterjee: The Artist Who Took Indian Cinema to the World Table

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