नयी दिल्ली, 10 जनवरी कोविड-19 से जुड़े अपने तरह के अब तक किए गए सबसे बड़े अध्ययन में दावा किया गया है कि महामारी के शुरुआती दिनों में गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में भर्ती कोविड-19 के मरीजों को गंभीर श्वास संबंधी समस्या के मुकाबले दिमाग के ठीक से कार्य नहीं करने की समस्या अधिक हुई जिससे उनमें मतिभ्रम होने या उनके कोमा में जाने की स्थिति पैदा हुई।
‘द लांसेट रेसपीरेटरी मेडिसीन’ पत्रिका में प्रकाशित अनुसंधान पत्र के मुताबिक अध्ययन के दौरान 28 अप्रैल 2020 से पहले कोविड-19 के दो हजार मरीजों में चित्तभ्रम एवं कोमा में जाने की घटनाओं पर नजर रखी गई। यह अध्ययन 14 देशों में 69 आईसीयू के मरीजों पर किया गया।
अमेरिका स्थित वांडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर (वीयूएमसी) के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में हुए अनुसंधान के मुताबिक शामक औषधि और परिवार से मिलने पर रोक इन मरीजों के दिमाग की कार्यप्रणाली पर पड़ने वाले दुष्परिणाम में अहम भूमिका निभाते हैं।
उन्होंने बताया कि आईसीयू में मतिभ्रम का संबंध उच्च चिकित्सा खर्च एवं मौत के खतरे से जुड़ा है और इससे लंबे समय तक आईसीयू संबंधित डिमेंशिया हो सकता है।
अध्ययन के मुताबिक इन मरीजों में 82 प्रतिशत 10 दिनों तक लगभग कोमा की स्थिति में रहे जबकि 55 प्रतिशत में तीन दिन तक मतिभ्रम की स्थिति बनी रही।
वैज्ञानिकों ने रेखांकित किया कि आईसीयू में भर्ती मरीजों के दिमाग के गंभीर रूप से काम नहीं करने की स्थिति औसतन 12 दिनों तक बनी रही।
वीयूएमसी में कार्यरत और अनुसंधान पत्र के सह लेखक ब्रेंडा पन ने कहा, ‘‘ दिमाग के ठीक से काम नहीं करने की गंभीर समस्या की यह अवधि अन्य बीमारियों की वजह से आईसीयू में भर्ती मरीजों के मुकाबले दोगुनी है।’’
वैज्ञानिकों ने रेखांकित किया कि इस स्थिति के लिए मरीजों की देखभाल भी एक कारक है क्योंकि महामारी के दौरान स्वास्थ्य कर्मियों पर भारी दबाव था।
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