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आश्रय के अधिकार का मतलब सरकारी आवास का अधिकार नहीं है: उच्चतम न्यायालय

By भाषा | Updated: August 12, 2021 20:03 IST

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नयी दिल्ली, 12 अगस्त उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि सरकारी आवास सेवारत अधिकारियों के लिए है न कि ‘‘परोपकार’’और उदारता के रूप में सेवानिवृत्त लोगों के लिए। शीर्ष अदालत ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की जिसमें एक सेवानिवृत्त लोक सेवक को इस तरह के परिसर को बनाये रखने की अनुमति दी गई थी।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि आश्रय के अधिकार का मतलब सरकारी आवास का अधिकार नहीं है। न्यायालय ने कहा कि एक सेवानिवृत्त लोक सेवक को अनिश्चितकाल के लिए ऐसे परिसर को बनाए रखने की अनुमति देने का निर्देश बिना किसी नीति के राज्य की उदारता का वितरण है।

केंद्र की अपील को मंजूर करते हुए, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने उच्च न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया और एक कश्मीरी प्रवासी सेवानिवृत्त खुफिया ब्यूरो अधिकारी को 31 अक्टूबर, 2021 को या उससे पहले परिसर का खाली भौतिक कब्जा सौंपने का निर्देश दिया।

पीठ ने केंद्र को 15 नवंबर, 2021 तक उच्च न्यायालयों के आदेशों के आधार पर उन सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई की एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया, जो सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी आवास में हैं।

अधिकारी को फरीदाबाद स्थानांतरित कर दिया गया था, जहां उन्हें एक सरकारी आवास आवंटित किया गया था। अधिकारी ने 31 अक्टूबर, 2006 को सेवानिवृत्त हुए थे।

पीठ ने पिछले सप्ताह पारित अपने फैसले में कहा, ‘‘आश्रय के अधिकार का मतलब सरकारी आवास का अधिकार नहीं है। सरकारी आवास सेवारत अधिकारियों के लिए है, न कि ‘‘परोपकार’’और उदारता के रूप में सेवानिवृत्त लोगों के लिए।’’

शीर्ष अदालतने उच्च न्यायालय के खंडपीठ के जुलाई 2011 के उस आदेश के खिलाफ अपील पर यह फैसला सुनाया जिसने अपने एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ एक याचिका खारिज कर दी थी।

एकल न्यायाधीश ने कहा था कि सेवानिवृत्त अधिकारी का अपने राज्य में लौटना संभव नहीं है, जिसके कारण आवास खाली कराये जाने का आदेश स्थगित रखा जाएगा। उच्च न्यायालय ने भी कहा था कि अधिकारी उन्हें फरीदाबाद में मामूली लाइसेंस शुल्क पर वैकल्पिक आवास प्रदान करने के लिए स्वतंत्र हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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