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याचिकाकर्ता की प्रताड़ना का दावा करने वाली अर्जी पर जवाब नहीं देने को लेकर कंपनी को फटकार लगायी

By भाषा | Updated: October 4, 2021 19:45 IST

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नयी दिल्ली, चार अक्टूबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक सोसायटी की याचिका का जवाब नहीं देने के लिए सोमवार को एक कंपनी को फटकार लगायी जिसमें सोसायटी ने आरोप लगाया है कि भारतनेट परियोजना के तहत ठेके देने को चुनौती देने वाली एक अर्जी में कुछ दस्तावेज दायर करने के बाद पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया गया।

उच्च न्यायालय ने सीएससी ई-गवर्नेंस सर्विसेज लिमिटेड (सीएससी एसपीवी) को जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया, जिसके बारे में याचिकाकर्ता सोसाइटी ने दावा किया कि वह एक निजी कंपनी है लेकिन उसने कथित तौर पर नामांकन पर अनुबंध प्राप्त करने के लिए खुद को एक सरकारी इकाई के रूप में पेश किया। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 29 नवंबर तय की।

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा, ‘‘हमें समझ में नहीं आता कि प्रतिवादी 4 (कंपनी) चुप क्यों है और इस चुप्पी का उद्देश्य क्या है।’’

पीठ ने कहा कि कंपनी को काफी समय पहले नोटिस देने के बावजूद जवाब दाखिल नहीं किया गया है। पीठ ने कहा, ‘‘हम चुप्पी साधे रखने की निंदा करते हैं।’’

अदालत ने 2 सितंबर को याचिकाकर्ता सोसायटी, टेलीकॉम वॉचडॉग द्वारा आवेदन पर नोटिस जारी किया था, जिसमें दावा किया है कि दस्तावेज लीक होने की जांच के लिए केंद्र के इशारे पर दर्ज प्राथमिकी के संबंध में उसके सचिव को पुलिस से नोटिस मिला है और यह न्याय में बाधा और अदालत की आपराधिक अवमानना ​​की श्रेणी में आता है।

सोसायटी के वकील प्रशांत भूषण ने किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा के लिए एक आदेश का अनुरोध किया जिसे पीठ ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि किसी भी कठिनाई की स्थिति में याचिकाकर्ता तुरंत अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।

सुनवाई के दौरान, कंपनी का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने दावा किया कि अर्जी दुर्भावनापूर्ण है और कहा कि वह मंगलवार को जवाब दाखिल करेंगे।

हालांकि, इस पर पीठ ने कहा कि इसका मतलब है कि हलफनामा तैयार है और कंपनी इसे दाखिल नहीं कर रही है। पीठ ने कहा, ‘‘आप किस का इंतजार कर रहे हैं? समझाएं कि हलफनामा क्यों दाखिल नहीं किया गया या फिर हम जुर्माना लगाएं जो कि दोषी अधिकारी के वेतन से काटा जाएगा।’’

इस पर, बनर्जी ने देरी के लिए माफी मांगी और कहा कि जवाब दाखिल नहीं किया गया क्योंकि वे आश्वस्त थे कि यह एक दुर्भावनापूर्ण अर्जी थी जो उनकी प्राथमिक दलील थी। उन्होंने कहा कि याचिका में लगाए गए आरोपों के संबंध में उनके पास कहने के लिए बहुत कुछ है और वह तुरंत हलफनामा दाखिल करेंगे।

भूषण ने पहले दलील दी थी कि दस्तावेजों के माध्यम से कुछ जानकारी को जनहित में अदालत के संज्ञान में लाया गया था और याचिकाकर्ता की भंडाफोड़ करने वाले के तौर पर रक्षा की जानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि जो फाइल नोटिंग्स जनहित में हैं उन्हें सार्वजनिक करने की जरूरत है।

आवेदन में, सोसाइटी ने दावा किया है कि दस्तावेज ‘‘सरकार के उच्च पदों में भारी भ्रष्टाचार दिखाते हैं और उनका खुलासा बड़े सार्वजनिक हित को बनाए रखने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।’’

आवेदन में कहा गया है कि ‘‘दिल्ली पुलिस के समक्ष दायर एक शिकायत 15 फरवरी, 2021 को दूरसंचार विभाग (प्रतिवादी संख्या 1) के इशारे पर शुरू की गई थी, और ‘‘इस अदालत के सामने कोई शिकायत लाने के बजाय जब मामला पहले ही इस अदालत के समक्ष विचाराधीन है’’ इस मामले में, प्रतिवादी संख्या 1 ने विशेष रूप से याचिकाकर्ता को लक्षित करने के लिए प्राथमिकी का विकल्प चुना।’’

आवेदन में कहा गया है, ‘‘उक्त दस्तावेज राष्ट्रीय सुरक्षा या किसी विदेशी राष्ट्र के साथ संबंध आदि से बिल्कुल भी संबंधित नहीं हैं।’’

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने अर्जी पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि आरोप बिना किसी आधार के हैं।

अदालत ने पिछले साल 18 दिसंबर को सोसाइटी की उस याचिका पर नोटिस जारी किया था जिसमें कॉमन सर्विस सेंटर्स ई-गवर्नेंस सर्विसेज लिमिटेड (सीएससी) को भारतनेट परियोजना के तहत टेंडर प्रक्रिया का पालन किए बिना देश भर के गांवों में वाईफाई एक्सेस प्वाइंट लगाने के लिए ठेका देने को चुनौती दी गई थी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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