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राज्यों के कर हिस्से में कटौती वित्तीय संघवाद की भावना के विपरीत : गहलोत

By भाषा | Updated: November 9, 2021 15:48 IST

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जयपुर, नौ नवंबर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य में पेट्रोल और डीजल पर मूल्य वर्धित कर (वैट) घटाने के लिए विपक्षी दलों के बढ़ते दबाव के बावजूद इसपर अनिच्छा जाहिर करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पेट्रोलियम उत्पादों पर लगे विशेष उत्पाद शुल्क को और कम करने का आग्रह किया है ताकि लोगों को राहत मिल सके।

साथ ही गहलोत ने केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के कर हिस्से में लगातार कमी किए जाने को वित्तीय संघवाद की भावना के विपरीत बताया और केंद्र सरकार से राज्य की बकाया जीएसटी पुनर्भरण राशि का शीघ्र भुगतान करने की मांग की है।

इससे पहले गहलोत ने शनिवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर इसी मांग के साथ तर्क दिया था कि केन्द्र द्वारा उत्पाद शुल्क कम करने के साथ ही राज्यों का वैट आनुपातिक रूप से स्वत: कम हो जाता है।

राज्य में ईंधन की कीमतें अधिक होने पर राजनीति उस समय तेज हो गई जब कांग्रेस शासित पड़ोसी राज्य पंजाब ने पेट्रोल की कीमत में 10 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत में 5 रुपये प्रति लीटर की कटौती की। यही नहीं पंजाब सरकार ने एक विज्ञापन जारी कर दावा किया कि उसके यहां पेट्रोल व डीजल की कीमतें दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान की तुलना में सबसे कम हैं।

राज्‍य में भाजपा लगातार वैट कम करने की मांग कर रही है। वहीं मुख्यमंत्री गहलोत इस मांग को खारिज करते हुए तर्क दे रहे हैं कि अगर केंद्र पेट्रोल/डीजल पर विशेष उत्पाद शुल्क कम करता है, तो राज्य में वैट स्वत: कम हो जाता है।

अब प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में गहलोत ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा 2016 से लगातार पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले मूल उत्पाद शुल्क को कम कर राज्यों के साथ साझा किये जाने वाले हिस्से को घटा दिया गया तथा विशेष एवं अतिरिक्त उत्पाद शुल्क जिसका कोई हिस्सा राज्यों को नहीं मिलता, उसे लगातार बढ़ाया गया।

गहलोत ने कहा कि अतिरिक्त उत्पाद शुल्क में वृद्धि व कृषि संरचना विकास उपकर (कृषि उपकर) का लाभ केवल केन्द्रीय राजस्व को मिल रहा है, जबकि विभाज्य डिविजीबल पूल में आने वाली मूल उत्पाद शुल्क में उत्तरोत्तर कमी की गई है। इससे राज्यों को मिलने वाले करों के हिस्से में कमी आई है। उन्होंने कहा कि राज्यों के हिस्से में लगातार की जा रही कमी वित्तीय संघवाद (फिस्कल फेडरेलिज्म) के सिद्धांतों के विपरीत है।

मुख्यमंत्री ने पत्र में मोदी से आग्रह किया है कि आमजन को पूर्ण राहत देने के लिए कि केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल व डीजल पर केंद्रीय पूल के अतिरिक्त उत्पाद शुल्क व विशेष उत्पाद शुल्क को और कम किया जाए, ताकि आमजन को उत्पाद शुल्क व वैट में कमी का लाभ एक साथ मिल सके। साथ ही, उन्होंने पेट्रोलियम कंपनियों को पेट्रोल-डीजल के मूल्य में निरंतर वृद्धि पर रोक लगाने के लिए पाबंद करने का भी आग्रह किया।

पत्र में उन्होंने लिखा कि हमारी अपेक्षा है कि केन्द्र सरकार उत्पाद शुल्क में पेट्रोल पर अतिरिक्त 10 रुपये प्रति लीटर व डीजल पर अतिरिक्त 15 रुपये प्रति लीटर की कमी करे। केन्द्र द्वारा ऐसा करने पर राज्य के वैट में भी 3.4 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल पर तथा 3.9 रुपये प्रति लीटर डीजल पर आनुपातिक रूप से स्वतः ही कम हो जाएंगे। इसके परिणामस्वरूप राज्य के राजस्व में 3,500 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष की अतिरिक्त हानि होगी जिसे जनहित में राज्य सरकार वहन करने के लिये तैयार है।

गहलोत ने कहा कि लोकतंत्र में निर्वाचित सरकारों को प्रदेश के विकास एवं सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन जुटाने होते हैं। आमजन तक विकास योजनाओं का लाभ पहुंचाने में राज्यों की भौगोलिक स्थिति, आर्थिक परिदृश्य एवं स्थानीय परिस्थितियों का भी प्रभाव पड़ता है। इन परिस्थितियों में विभिन्न विकास योजनाओं के लिए आवश्यक राजस्व संग्रहण के लिए करारोपण करना राज्यों को संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार है। उन्होंने कहा कि केन्द्र द्वारा पेट्रोल-डीजल पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क एवं विशेष उत्पाद शुल्क को पहले अत्यधिक बढ़ाना एवं बाद में कम कर राज्यों से वैट कम कराने के लिए परस्पर प्रतिस्पर्धात्मक माहौल बनाना भी सहकारी संघवाद (कॉपरेटिव फेडरेलिज्म) की भावना के विपरीत है।

उन्होंने कहा कि कोविड लॉकडाउन के दौरान 6 मई, 2020 को केन्द्र सरकार ने पेट्रोल पर 10 रुपये व डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर का उत्पाद शुल्क बढ़ाया है। 4 नवंबर, 2021 से पेट्रोल पर 5 रुपये एवं डीजल पर 10 रुपये कम कर जनता को राहत देने की बात की जा रही है। जबकि वास्तविकता यह है कि 2021 में ही पेट्रोल की कीमत करीब 27 रुपये एवं डीजल की कीमत करीब 25 रुपये बढ़ी। अत्यधिक बढ़ाई गई अतिरिक्त उत्पाद शुल्क में से केवल कुछ छूट दी गई। ऐसे में, केन्द्र सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क में की गई कटौती अपर्याप्त प्रतीत होती है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राजस्थान राज्य के कुल राजस्व का 22 प्रतिशत से अधिक पेट्रोल-डीजल के वैट से आता है। वैट में कमी के रूप में राजस्थान सरकार 29 जनवरी, 2021 से अब तक लगभग 3 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल पर तथा 3.8 रुपये प्रति लीटर डीजल पर कम कर चुकी है। इससे राज्य के राजस्व में 2,800 करोड़ रूपये प्रतिवर्ष की हानि हो रही है।

वहीं भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां ने कहा है कि मुख्यमंत्री को वैट घटाना चाहिए।

पूनियां ने मंगलवार को ट्वीट किया, ‘‘प्रदेश में महंगी बिजली और पेट्रोल-डीजल पर सर्वाधिक वैट वसूलने वाली गहलोत सरकार महंगाई के लिए केंद्र पर छींटाकशी करती है। ये नौटंकी छोड़, मुख्यमंत्री गहलोत कृपया प्रदेश की जनता को महंगाई से राहत दो।’’

इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, विधानसभा में प्रतिपक्ष नेता गुलाबचंद कटारिया व राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के संयोजक सांसद हनुमान बेनीवाल भी राज्य में पेट्रोल व डीजल पर वैट घटाने की मांग उठा चुके हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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