राम जेठमलानी: अपनी शर्तों पर जीने वाले बेहतरीन विधिवेता और नेता

By भाषा | Updated: September 9, 2019 05:24 IST2019-09-09T05:24:58+5:302019-09-09T05:24:58+5:30

Ram Jethmalani: The finest jurist and leader living on his own terms | राम जेठमलानी: अपनी शर्तों पर जीने वाले बेहतरीन विधिवेता और नेता

राम जेठमलानी: अपनी शर्तों पर जीने वाले बेहतरीन विधिवेता और नेता

संवैधानिक, आपराधिक और कॉरपोरेट हर तरह के जटिल से जटिल मुकदमों की आसानी से पैरवी करने वाले बेहतरीन विधिवेता राम जेठमलानी ने 95 साल की उमर में आंखें बंद करने के बाद अपने पीछे बेहद समृद्ध विरासत छोड़ा है। सात दशक लंबे अपने करियर में उन्होंने ना सिर्फ देश के सबसे बेहतर वकील के तौर पर बल्कि एक अच्छे और मुखर नेता के तौर पर भी अपनी पहचान बनायी जो हमेशा अपने मन की सुनता था।

जेठमलानी ने रविवार सुबह करीब पौने आठ बजे नयी दिल्ली स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। कराची के शाहनी लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद जेठमलानी ने महज 17 साल की उम्र में कराची में प्रैक्टिस शुरू की। उस वक्त कराची भी भारत का हिस्सा हुआ करता था।

वकील, नेता या मंत्री, भूमिका कोई भी हो बागी प्रकृति के जेठमलानी ने अपनी जिन्दगी खुल कर जी और कभी भी पार्टी लाइन की परवाह नहीं की। हमेशा अपने मन की सुनी। उन्होंने हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की उम्र कम करके 21 साल करने के लिए कराची हाई कोर्ट में अर्जी दी और बाद में अपने दोस्त वकील एके बरोही के साथ मिलकर कराची में ही एक लॉ फर्म खोला। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद 1948 में वह मुंबई आ गए और वहीं प्रैक्टिस शुरू की। यहां उन्होंने बांबे रिफ्यूजी एक्ट के खिलाफ मुकदमा लड़ा और जीता। इस कानून के तहत स्थानीय सरकार को रिफ्यूजियों को किसी भी वक्त एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए कहने, उनसे पूछताछ करने आदि का अधिकार प्राप्त था।

जेठमलानी को देश में बार एसोसिएशन के सबसे कम उम्र का सदस्य होने और सबसे उम्रदराज सदस्य होने का सम्मान प्राप्त है। वह देश के सबसे महंगे वकीलों में से भी एक थे। उन्होंने इंदिरा गांधी सरकार द्वारा देश में लगाए गए आपातकाल और आंतरिक सुरक्षा प्रबंधन कानून लगाने का भी विरोध किया।

इस विवादित कानून के तहत सरकार के फैसले का विरोध करने वाले किसी भी व्यक्ति को बिना वजह हिरासत में लिया जा सकता था। जेठमलानी का राजनीतिक जीवन भी काफी दिलचस्प रहा। वह जनता पार्टी, भाजपा और राजद से सांसद रहे, अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे और बाद में उनके खिलाफ चुनाव भी लड़े। उन्हें भाजपा से निकाल दिया गया जिसके लिए उन्होंने पार्टी के खिलाफ मुकदमा कर दिया।

1987 में 64 साल की उम्र में उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए अपनी उम्मीदवारी भी पेश की। राजनीति में जेठमलानी का प्रवेश 1971 में हुआ जब उन्होंने महाराष्ट्र के उल्हासनगर से निर्दलीय चुनाव लड़ा। हालांकि उन्हें शिवसेना और तत्कालीन भारतीय जनसंघ का समर्थन हासिल था, लेकिन वह चुनाव हार गए।

आपातकाल के बाद जेठमलानी 1977, 1980 में क्रमश: जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर मुंबई से लोकसभा पहुंचे। पहली बार 1996 में उन्हें केन्द्रीय कानून मंत्री का पद मिला। 1998 में वह वाजपेयी सरकार में शहरी विकास मंत्री रहे।

हालांकि उन्हें भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश आदर्श सेन आनंद और भारत के अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के साथ मतभेद के बाद मंत्री पद छोड़ना पड़ा। उन्होंने 2004 में लखनऊ संसदीय क्षेत्र से वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़ा।

हालांकि 2010 में वह भाजपा में लौट आए और राजस्थान से राज्यसभा पहुंचे। लेकिन 2013 में उन्हें अनुशासन भंग करने के दोष में छह साल के लिए भाजपा से निकाल दिया गया। जिसके बाद उन्होंने पार्टी के खिलाफ मुकदमा किया और 50 लाख रुपये का हर्जाना मांगा।

बाद में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह द्वारा उन्हें पार्टी से निकालने पर दुख प्रकट किए जाने के बाद मामला आपसी सहयोग से सुलझ गया। जेठमलानी ने गुजरात में हुए सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में शाह की ओर से पैरवी की थी। बाद में शाह को क्लीन चिट मिल गयी।

उन्होंने 1988 में भारत मुक्ति मोर्चा नाम से एक राजनीतिक मोर्चा और 1995 में पवित्र हिन्दुस्तान कझगम नाम से एक राजनीति पार्टी भी बनायी। अविभाजित भारत के सिंध प्रांत में 14 सितंबर, 1923 में जन्मे जेठमलानी का सिंध प्रेम उस वक्त सभी ने देखा जब उन्होंने राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ से सिंध शब्द हटाने का पुरजोर विरोध किया। जेठमलानी का विवाह बेहद कम उम्र में हो गया था और उन्होंने अपने दो बच्चों की मौत भी देखी है।

फिलहाल उनके परिवार में एक पुत्र महेश जेठमलानी और पुत्री शोभा हैं। शोभा हालांकि अमेरिका में रहती हैं, लेकिन वह अक्सर भारत आती हैं। जेठमलानी ने इंदिरा गांधी हत्याकांड के आरोपियों केहर सिंह और बलबीर सिंह का भी बचाव किया था। वह बलबीर सिंह को बचाने में कामयाब भी रहे।

यहां तक कि जब सिंह के बेटे राजिन्दर सिंह को सरकारी नौकरी से निकाल दिया गया तो उन्होंने उसे अपने दफ्तर में नौकरी दी। जेठमलानी ने राजीव गांधी हत्याकांड के आरोपियों का भी 2011 में मद्रास उच्च न्यायालय में बचाव किया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एएआर गिलानी का भी बचाव किया था। 

Web Title: Ram Jethmalani: The finest jurist and leader living on his own terms

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