राजस्थान चुनाव: बीजेपी ने दर्जनभर नेताओं को पार्टी से निकाला, जानिए- बागी बिगाड़ेंगे या संवारेंगे सियासी समीकरण?
By प्रदीप द्विवेदी | Updated: November 24, 2018 07:21 IST2018-11-24T07:21:26+5:302018-11-24T07:21:26+5:30
राजस्थान में इस बार भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दलों में बागियों की अच्छी खासी संख्या रही है. दोनों दलों ने अपने बागियों को नामांकन वापस लेने की अंतिम तारीख तक मनाने की कोशिश की, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सुनहरे सियासी भविष्य के सपने भी दिखाए गए, बावजूद इसके दोनों ही दलों में अच्छी खासी संख्या में बागी मौजूद हैं.

राजस्थान चुनाव: बीजेपी ने दर्जनभर नेताओं को पार्टी से निकाला, जानिए- बागी बिगाड़ेंगे या संवारेंगे सियासी समीकरण?
आमतौर पर माना जाता है कि बागी किसी दल की सियासी समीकरण को बिगाड़ देते हैं, लेकिन यह अर्धसत्य है, क्योंकि बागी उम्मीदवार यदि चुनाव मैदान में होता है तो कई बार भितरघात की संभावना कम हो जाती है और विरोधी को फायदा नहीं मिलता है!
बीसवीं सदी के अंतिम विधानसभा चुनाव में बांसवाड़ा विस क्षेत्र में कांग्रेस के बागी उम्मीदवार की मौजूदगी से कांग्रेस को ही फायदा हुआ था. हालांकि, बागी उम्मीदवार पूर्व जिला प्रमुख पवन कुमार रोकिड़या अपनी ताकत दिखाने में तो कामयाब रहे, किंतु बागी की गैर मौजूदगी में कांग्रेस में संभावित भितरघात का अप्रत्यक्ष लाभ जो भाजपा को मिल सकता था, नहीं मिला? इसके बाद हुए विस चुनाव में यहां कांग्रेस का बागी उम्मीदवार नहीं था, नतीजा- भाजपा जीत गई!
इसलिए यह कहना कि बागी हमेशा नुकसान कर सकते हैं, सही नहीं है. सवाल यह है कि- राजस्थान में बागी बिगाड़ेंगे या संवारेंगे सियासी समीकरण?
तो, इसकी संभावना हर विस क्षेत्र के उम्मीदवार की क्षमता, कार्यकर्ताओं की नेता या दल के प्रति निष्ठा, सामाजिक समीकरण, भितरघात की तीव्रता, चुनावी इतिहास आदि के सापेक्ष अलग-अलग रहने की संभावना है!
राजस्थान में इस बार भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दलों में बागियों की अच्छी खासी संख्या रही है. दोनों दलों ने अपने बागियों को नामांकन वापस लेने की अंतिम तारीख तक मनाने की कोशिश की, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सुनहरे सियासी भविष्य के सपने भी दिखाए गए, बावजूद इसके दोनों ही दलों में अच्छी खासी संख्या में बागी मौजूद हैं.
एक दर्जन नेता पार्टी से बाहर
भाजपा ने तो पहले चरण में तकरीबन एक दर्जन नेताओं, जिनमें एमएलए और मंत्री भी शामिल हैं, को बाहर का रास्ता दिखा दिया है. सियासी संकेत यही हैं कि विस चुनाव में मौजूद बागी उम्मीदवार हार-जीत की गणित को प्रभावित जरूर करेंगे, खासकर उन क्षेत्रों में जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है!