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राजस्थान चुनावः हार-जीत के चक्रव्यूह में उलझे सीएम उम्मीदवार?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: December 3, 2018 07:28 IST

भाजपा में सीएम पद के लिए वसुंधरा राजे का नाम पहले से घोषित है। वे पिछली बार झालरापाटन से 60 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत गई थीं।

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राजस्थान में विस चुनाव के बाद कौन बनेगा सीएम का सवाल तो अभी सवाल ही है, लेकिन इससे पहले का प्रश्न यह है कि जो सीएम पद के उम्मीदवार हैं, उनके विस क्षेत्र का क्या है चुनावी इतिहास और ताजा सियासी हवा क्या संदेश दे रही है?

भाजपा में सीएम पद के लिए वसुंधरा राजे का नाम पहले से घोषित है। वे पिछली बार झालरापाटन से 60 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत गई थीं। वैसे तो इस वक्त सत्ता विरोधी लहर है, लेकिन सीएम उम्मीदवार को लोग अपने ही क्षेत्र में हरा दें, यह थोड़ा मुश्किल है, हालांकि कांग्रेस ने उनके खिलाफ मानवेन्द्र सिंह को चुनावी मैदान में उतार कर सीएम राजे की आसान जीत पर प्रश्नचिन्ह जरूर लगा दिया है?

वैसे तो राजस्थान में राजपूत समाज भाजपा का परंपरागत मतदाता रहा है जिसे राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने मजबूत आधार दिया था, परन्तु सीएम राजे के राज से पद्मावत प्रकरण, आनंदपाल एनकाउंटर जैसे मुद्दों के कारण राजपूत समाज लंबे समय से नाराज है।

इस नाराजगी का ही नतीजा है कि प्रमुख राजपूत संगठन- करणी सेना, राजपूत सभा आदि ने मानवेन्द्र सिंह का समर्थन किया है। जाहिर है, इससे राजे की मुश्किलें और भी बढ़ेंगी। हालांकि, मानवेन्द्र सिंह के लिए भी यह सियासी जंग आसान नहीं है, यह बात वे स्वयं भी जानते हैं और इसीलिए वे कहते हैं- मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को उनके गढ़ में हराना मुश्किल काम है, लेकिन वे लड़ने और जीतने के लिए यहां हैं। झालावाड़ आजाद होगा, नारे के साथ उनका कहना था कि वे अपनी प्रबल प्रतिद्वंद्वी को चुनौती देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

उल्लेखनीय है कि भाजपा के प्रमुख नेता जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र सिंह चुनाव से कुछ समये पहले ही भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए थे, लेकिन वे कहते हैं- जब उन्हें सीएम राजे के खिलाफ लड़ने के लिए कहा गया तो उन्होंने एक सेकंड में इस चुनौती को स्वीकार कर लिया।

बहरहाल, सीएम राजे के लिए इस बार का चुनाव 2013 जैसा आसान नहीं है, किन्तु वे हार जाती हैं तो यह एक चमत्कार ही होगा!

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरदारपुरा से चुनाव लड़ रहे हैं। वे पिछली बार 2013 में भाजपा की जोरदार लहर के बावजूद 18 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत गए थे। वर्ष 1999 में गहलोत यहां से पहला चुनाव लड़े थे और अब तक यहां से लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। इस बार भी भाजपा ने उनके सामने फिर से शंभूसिंह खेतासर को ही चुनावी मैदान में उतारा है। हालांकि, अशोक गहलोत के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष राजनीतिक विरोधी तो बहुत हैं, लेकिन उन्हें हराना आसान नहीं है!

कांग्रेस में ही सीएम पद के दूसरे अघोषित उम्मीदवार कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट पहले कभी विधानसभा चुनाव नहीं लड़े हैं। इस बार उन्हें सामाजिक समीकरण के चलते सुरक्षित समझी जाने वाली सीट टोंक से उम्मीदवार बनाया गया है, परन्तु भाजपा ने उनके खिलाफ प्रमुख नेता यूनुस खान को चुनावी मैदान में उतार कर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।

वैसे तो भाजपा ने राजस्थान में किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है, किन्तु सचिन पायलट को घेरने के इरादे से खान को उम्मीदवार बनाना कितना सही निर्णय है, यह चुनावी नतीजों में ही साफ होगा। टोंक में गुर्जरों की अच्छी खासी आबादी है तो सियासी विरोधी मीणाओं की जनसंख्या भी कम नहीं है, लेकिन इस बार का नतीजा मुस्लिम मतदाताओं पर निर्भर है, वे जिसका साथ देंगे वही यह सियासी जंग जीत जाएगा।

इन तीन प्रमुख नेताओं के अलावा भी कई नेताओं के नाम सीएम पद के लिए चर्चा में हैं, किन्तु किसी विषम सियासी परिस्थिति में ही उनके सिर पर सत्ता का साफा बंध सकता है!

टॅग्स :विधानसभा चुनाववसुंधरा राजेभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)कांग्रेसराजस्‍थान चुनाव
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